Prayagraj में UPSC छात्र के खौफनाक कदम के पीछे क्या है असली वजह ? समझिए !
बीते हफ्ते प्रयागराज (Prayagraj) से एक ऐसी खबर सामने आई जिसने समाज और पीड़ित परिवार दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया। अमेठी का रहने वाला 22 वर्षीय यूपीएससी (UPSC) अभ्यर्थी, जो खुद को लड़की मानता था, ने यूट्यूब वीडियो और गलत सलाह के आधार पर खुद ही अपना प्राइवेट पार्ट काटने की कोशिश की। खून अधिक बहने के बाद उसकी हालत बिगड़ गई और उसे स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, जहां प्लास्टिक सर्जरी की गई। डॉक्टरों का कहना है कि वह जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर से जूझ रहा था।
यह घटना दिखाती है कि बिना सही जानकारी और काउंसिलिंग के ऐसे खतरनाक कदम उठाए जा सकते हैं। साथ ही, यह सवाल भी उठता है कि आखिर जेंडर डिस्फोरिया क्या है और इसे सही तरीके से कैसे संभाला जाना चाहिए।
जेंडर और सेक्शुअलिटी में अंतर
- जेंडर आइडेंटिटी: आप खुद को किस रूप में पहचानते हैं – पुरुष, महिला या अन्य।
- सेक्शुअलिटी: आप किसकी ओर आकर्षित होते हैं।
जब किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी मानसिक पहचान उसके जन्म के समय दिए गए सेक्स से अलग है, तो इसे जेंडर डिस्फोरिया कहा जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति अपने शरीर से असहज या नफरत महसूस कर सकता है।

क्यों होती है ये उलझन?
मनोचिकित्सकों के अनुसार इसके कई कारण हो सकते हैं:
- दिमाग की संरचना या हार्मोनल बदलाव
- बचपन का माहौल
- समाज के नियम और दबाव
टीनएज में यह समस्या ज्यादा होती है क्योंकि उस समय हार्मोन्स तेजी से बदलते हैं। अगर शरीर और मन की पहचान मेल न खाए तो डिप्रेशन, तनाव और आत्मघाती विचार आ सकते हैं।
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन कहती है कि ऐसे युवाओं में अपने शरीर से नफरत और दूसरे जेंडर बनने की इच्छा आम लक्षण हैं। भारत में सामाजिक दबाव और जानकारी की कमी इस उलझन को और बढ़ा देती है।
क्यों जरूरी है काउंसिलिंग?
विशेषज्ञ मानते हैं कि जेंडर डिस्फोरिया कोई बीमारी नहीं बल्कि पहचान का मिसमैच है।
- काउंसिलिंग से व्यक्ति अपनी भावनाओं को समझ पाता है।
- परिवार और समाज का सहयोग बेहद जरूरी है।
- सही डॉक्टर की मदद से सुरक्षित और बेहतर विकल्प चुने जा सकते हैं।
पहचान अपनाने की प्रक्रिया
- मनोचिकित्सक मूल्यांकन – छह महीने या उससे ज्यादा समय की हिस्ट्री चेक होती है।
- सोशल ट्रांजिशन – कपड़े, नाम और व्यवहार बदलकर नए जेंडर को महसूस करना।
- हार्मोन थेरेपी – विशेषज्ञ डॉक्टर की देखरेख में दवाएं।
- सर्जरी – अंतिम चरण, जो बेहद जटिल और महंगी होती है।
जेंडर चेंज सर्जरी कितनी कठिन?
- मेल टू फीमेल सर्जरी में पेनिस की स्किन से वैजाइना बनाई जाती है।
- यह 4–8 घंटे की सर्जरी है।
- भारत में प्राइवेट अस्पतालों में इसकी लागत 5–10 लाख रुपये तक हो सकती है।
- सर्जरी के बाद दर्द, इंफेक्शन और मानसिक बदलाव की चुनौती रहती है।
कानूनी प्रक्रिया
ट्रांसजेंडर पर्सन्स एक्ट, 2019 के तहत:
- सर्जरी से पहले ट्रांसजेंडर सर्टिफिकेट लेना जरूरी है।
- इसके लिए जिला मजिस्ट्रेट (DM) से आवेदन किया जाता है।
- राष्ट्रीय पोर्टल transgender.dosje.gov.in पर फॉर्म भरना होता है।
- मनोचिकित्सक और सर्जन की रिपोर्ट के बाद ही अनुमति मिलती है।
Prayagraj की घटना, जेंडर डिस्फोरिया को समझना जरूरी
प्रयागराज की घटना बताती है कि जेंडर डिस्फोरिया को गंभीरता से समझना बेहद जरूरी है। यह मानसिक उलझन किसी की जान तक ले सकती है अगर समय पर सही इलाज और काउंसिलिंग न मिले। समाज को चाहिए कि वह ऐसे युवाओं को सहयोग और संवेदनशीलता दे, ताकि वे सुरक्षित तरीके से अपनी पहचान जी सकें।

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