‘ARAB NATO’ की चर्चा तेज: मिस्र ने दी सैनिक और मुख्यालय देने की पेशकश
मध्य पूर्व और इस्लामी जगत में सुरक्षा ढांचे को लेकर एक नई पहल सामने आई है। कतर की राजधानी दोहा में हुए आपातकालीन अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन में नेताओं ने सामूहिक रक्षा तंत्र बनाने पर जोर दिया। इस दौरान मिस्र ने एक ऐसे गठबंधन का प्रस्ताव रखा, जिसे अनौपचारिक रूप से “अरब नाटो” (ARAB NATO) कहा जा रहा है।
बैठक की पृष्ठभूमि
दोहा बैठक इजरायल द्वारा हाल ही में हमास नेताओं पर किए गए हवाई हमलों के बाद बुलाई गई थी। इसमें 40 से ज्यादा मुस्लिम देशों के नेता शामिल हुए, जिनमें पाकिस्तान और तुर्की भी मौजूद थे।
- पाकिस्तान, जो एकमात्र परमाणु-सशस्त्र मुस्लिम देश है, ने इजरायली योजनाओं पर नज़र रखने के लिए जॉइंट टास्क फोर्स बनाने का सुझाव दिया।
- तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने इजरायल पर आर्थिक दबाव डालने की अपील की।
- इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद अल-सुदानी ने सामूहिक सुरक्षा ढांचे की वकालत की और कहा कि किसी भी अरब देश की सुरक्षा सभी की साझा जिम्मेदारी है।

मिस्र का प्रस्ताव
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने गठबंधन के लिए अपने देश की ताकत पेश करते हुए कहा कि:
- 20,000 सैनिकों की शुरुआती तैनाती मिस्र करेगा।
- गठबंधन का मुख्यालय काहिरा में बनेगा।
- मिस्र का एक चार सितारा जनरल पहला कमांडर होगा।
सऊदी अरब को डिप्टी कमांड की भूमिका दी जा सकती है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन जैसे खाड़ी देशों से फंडिंग और तकनीकी सहयोग मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
पुरानी पहल में नई जान
दरअसल, 2015 में शर्म अल-शेख में हुए अरब लीग सम्मेलन में पहली बार जॉइंट अरब फोर्स का विचार आया था। लेकिन क्षेत्रीय मतभेदों और संप्रभुता संबंधी चिंताओं के कारण यह योजना ठंडी पड़ गई। दोहा हमलों के बाद इस विचार को फिर से गति मिली है।
इजरायल विरोध नहीं, सामूहिक रक्षा पर जोर
गठबंधन को इजरायल के खिलाफ सीधे आक्रामक समझौते के रूप में नहीं, बल्कि डिफेंसिव मूव के तौर पर पेश किया गया है। इसका उद्देश्य आतंकवाद, सुरक्षा खतरों और अस्थिरता फैलाने वाली ताकतों से निपटना है।
आलोचनाएं और चुनौतियां
हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं।
- कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बैठक से ज्यादा प्रतीकात्मकता निकली, ठोस कदम नहीं।
- हुसैन अबूबक्र मंसूर जैसे विशेषज्ञों ने इसे अरब जगत की गहरी विभाजन रेखाओं का संकेत बताया।
- जॉन्स हॉपकिन्स के अर्थशास्त्री स्टीव हेन्के ने इसे “भौंकने वाला, काटने वाला नहीं” कहकर खारिज किया।
ARAB NATO और शक्ति संतुलन
अगर यह गठबंधन आकार लेता है, तो यह न केवल मध्य पूर्व की शक्ति संतुलन को बदल सकता है बल्कि अमेरिका पर सुरक्षा की निर्भरता भी कम कर सकता है। लेकिन फिलहाल यह विचार ज्यादा राजनीतिक बयानबाजी और रणनीतिक संकेत भर लगता है।
कुल मिलाकर, ‘अरब नाटो’ का प्रस्ताव अभी शुरुआती चरण में है। यह देखना अहम होगा कि क्या अरब और मुस्लिम देश वास्तव में एकजुट होकर इसे ठोस रूप देंगे, या यह पहल भी पहले की तरह कागज़ों और बयानों तक सीमित रह जाएगी।
