प.बंगाल के SIR से विपक्ष के 5 भ्रम और BJP के 2 दावों की खुली पोल !

प.बंगाल के SIR से विपक्ष के 5 भ्रम और BJP के 2 दावों की खुली पोल !

पश्चिम बंगाल में SIR, करीब 58 लाख नाम वोटर लिस्ट से कटे 

पश्चिम बंगाल में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिव्यू (SIR) का पहला ड्राफ्ट सामने आने के बाद इस पूरी प्रक्रिया को लेकर चल रही सियासी बहस को ठोस तथ्यों का आधार मिल गया है। ड्राफ्ट आंकड़ों ने एक तरफ विपक्ष द्वारा फैलाए गए कई डर और भ्रम को कमजोर किया है, तो दूसरी ओर बीजेपी के कुछ बड़े दावों की भी हवा निकाल दी है।

ख़बर है कि राज्य में कुल 7.66 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 58 लाख नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं। इनमें करीब 24 लाख मृत20 लाख प्रवासी12 लाख मिसिंग और लगभग 1.38 लाख डुप्लीकेट या बोगस वोटर शामिल हैं। साथ ही, लगभग 1.33 करोड़ मतदाता ऐसे हैं जिन्होंने अभी SIR से जुड़ी औपचारिकताएं पूरी नहीं की हैं, जिनमें करीब 20 लाख नए वोटर भी शामिल हैं।

SIR से जुड़े विपक्ष के 5 बड़े भ्रम

1. क्या SIR मुसलमानों को निशाना बनाने की साजिश थी?

विपक्ष का सबसे बड़ा आरोप यही रहा कि SIR का मकसद मुस्लिम मतदाताओं को टारगेट करना है। लेकिन ड्राफ्ट आंकड़े इस दावे को कमजोर करते हैं।
बंगाल की 80% मुस्लिम-बहुल सीटों पर औसत डिलीशन मात्र 0.6% रहा। अधिकतर मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में नाम कटने की दर 10% से कम रही। इसके उलट, हिंदी भाषी और प्रवासी आबादी वाले शहरी इलाकों में डिलीशन कहीं ज्यादा दर्ज किया गया।

2. क्या SIR, NRC का छुपा हुआ रूप है?

SIR को NRC से जोड़कर देखा गया और इसे नागरिकता जांच की प्रक्रिया बताया गया। जबकि हकीकत ये है कि SIR का उद्देश्य वोटर लिस्ट को शुद्ध करना है, न कि नागरिकता तय करना।
अगर ये NRC जैसा कदम होता, तो मुस्लिम बहुल इलाकों में इसका सबसे ज्यादा असर दिखता, जबकि आंकड़े इसके उलट तस्वीर पेश करते हैं।

3. नाम कट गया तो क्या वोट का अधिकार हमेशा के लिए चला गया?

ये भी कहा गया कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से नाम कटना स्थायी नुकसान है। जबकि सच ये है कि ड्राफ्ट लिस्ट अस्थायी होती है
हर मतदाता को क्लेम और ऑब्जेक्शन दाखिल करने का पूरा मौका मिलता है। दस्तावेज़ देने पर नाम दोबारा जुड़ सकता है। बिहार में इसका उदाहरण साफ दिखा, जहां पहले 65 लाख नाम कटे थे, लेकिन अंतिम सूची में ये संख्या घटकर 48 लाख रह गई।

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4. पारदर्शिता और कानूनी सुरक्षा नहीं है?

विपक्ष ने SIR की प्रक्रिया को अपारदर्शी बताया। जबकि चुनाव आयोग के दिशानिर्देश साफ हैं—

  • हर डिलीशन से पहले नोटिस
  • दो-स्तरीय अपील व्यवस्था
  • न्यायिक निगरानी
    इसके अलावा, राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्तBLA (Booth Level Agent) की भूमिका भी पूरी प्रक्रिया में तय रही है।

5. क्या 30% वोटरों का मास डिलीशन होगा?

विपक्ष का दावा था कि SIR से 30% तक वोटरों के नाम कट जाएंगे। जबकि बंगाल में केवल 7.6% वोटरों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट से हटाए गए।
बिहार में भी ये आंकड़ा करीब 6% ही रहा। यानी 30% नाम कटने का दावा तथ्यों से कोसों दूर है।

SIR से जुड़े बीजेपी के 2 दावे जो कमजोर पड़े

1. SIR से घुसपैठियों की बड़े पैमाने पर पहचान

बीजेपी नेताओं का दावा था कि SIR के जरिए एक करोड़ तक बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए सामने आएंगे।
लेकिन ड्राफ्ट आंकड़ों में हटाए गए 58 लाख नामों में से:

  • करीब20 लाख प्रवासी निकले
  • केवल38 लाख को बोगस या डुप्लीकेट माना गया

ये आंकड़ा बीजेपी के बड़े-बड़े दावों से मेल नहीं खाता।

2. सीमावर्ती जिलों में सबसे ज्यादा असर

मालदा, मुर्शीदाबाद और नादिया जैसे सीमावर्ती जिलों को लेकर कहा गया था कि वहीं सबसे ज्यादा नाम कटेंगे।
हकीकत ये है कि इन जिलों में कुछ प्रशासनिक गड़बड़ियां जरूर मिलीं, लेकिन सबसे ज्यादा डिलीशन हिंदी भाषी शहरी इलाकों में दर्ज हुआ।

बंगाल SIR के ड्राफ्ट नतीजों ने साफ कर दिया है कि इस प्रक्रिया को लेकर फैलाए गए कई सियासी डर और आरोप तथ्यों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।
ड्राफ्ट लिस्ट से नाम कटना अंतिम फैसला नहीं है, न ही ये किसी एक समुदाय को निशाना बनाने का पुख्ता सबूत देता है। बिहार और पश्चिम बंगाल के अनुभव बताते हैं कि SIR को राजनीतिक चश्मे से देखने के बजाय, इसे मतदाता सूची को दुरुस्त करने की एक प्रशासनिक प्रक्रिया के रूप में देखना ज्यादा उचित है।

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