Vrindavan Sewer Deaths-सेप्टिक टैंक साफ करते वक्त दो सफाईकर्मियों की मौत
Vrindavan Sewer Deaths-वृंदावन, मथुरा: पवित्र नगरी वृंदावन, जहां राधा-कृष्ण की भक्ति की गूंज हर गली में सुनाई देती है, वहां शनिवार की शाम एक हृदयविदारक हादसे ने सबको झकझोर दिया। Sewer Tank Cleaning के दौरान Toxic Gas ने दो मेहनतकश सफाई कर्मियों की जिंदगी छीन ली। नरेंद्र (40) और छोटेलाल (32), जिनके परिवारों का सहारा थे, अब केवल यादों में रह गए।
🖊️ संवादादाता-अमित शर्मा
Vrindavan Sewer Deaths: जब मौत उतर गई सीवर में
20 जून 2025।Vrindavan Sewer Deaths की सूची में आज फिर दो नाम और जुड़ गए — नरेंद्र और छोटेलाल। वृंदावन की गलियों में आज फिर वही मंजर दोहराया गया, जो इस देश के हर शहर में अनगिनत बार देखा जा चुका है—सफाई कर्मियों की मौत। एक 40 साल का पिता, दूसरा 32 साल का बेटा सा नौजवान। दोनों एक गेस्ट हाउस की गंदगी साफ करने उतरे थे, लेकिन लौटे नहीं। लौट आईं तो बस उनकी लाशें — Vrindavan Sewer Deaths की ये नई कड़ी अब सिर्फ हादसा नहीं, सड़ी हुई व्यवस्था की एक और गवाही बन चुकी है।

KD गेस्ट हाउस की गली, जहां रूम सर्विस के बदले मौत परोसी गई। प्राइवेट ठेकेदार ने इन दो मजदूरों को सीवर में उतार तो दिया, लेकिन सुरक्षा के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था — न मास्क, न ग्लव्स, न ऑक्सीजन। टैंक का ढक्कन खुला, गैस निकली, और दो ज़िंदगियाँ सिसकते हुए खत्म हो गईं।
मुआवज़ा तो मिलेगा, लेकिन जिंदगी कौन लौटाएगा?
घटना के बाद मथुरा-वृंदावन नगर आयुक्त जग प्रवेश मौके पर पहुंचे, और दो घंटे जांच में खड़े रहे। मृतकों के परिजनों को 30-30 लाख का मुआवज़ा और नगर निगम में संविदा नौकरी का वादा भी दिया गया। लेकिन क्या ये वादा उस बेटे की चीख को शांत कर सकता है, जो अब कभी ‘पापा’ नहीं कह पाएगा?

जिलाधिकारी सीपी सिंह ने आदेश दिया — अब कोई भी सीवर में उतरे, तो पहले नगर निगम की अनुमति जरूरी होगी। एसएसपी श्लोक कुमार ने कहा — केस दर्ज कर लिया गया है। लेकिन असली सवाल तो यही है कि जब कोर्ट का आदेश पहले से था, तो KD गेस्ट हाउस जैसे गैरकानूनी ठिकानों पर प्रशासन की नज़र क्यों नहीं गई?
ये मौत नहीं, हत्या है — सिस्टम की लापरवाही से की गई हत्या
Vrindavan Sewer Deaths अब एक आंकड़ा नहीं है। ये उस सड़ांध की कहानी है, जो सिर्फ सीवर में नहीं, हमारी सरकारी व्यवस्था में भरी पड़ी है। जहां गरीबों की मौत पर प्रेस रिलीज छपती है, और अमीरों के ठिकानों पर मेहंदी लगी उंगलियों से लीपापोती की जाती है।

KD गेस्ट हाउस जैसे अंधेरे ठिकाने जब तक रोशनी में नहीं लाए जाएंगे, तब तक हर शहर, हर गली में एक नरेंद्र और छोटेलाल मारे जाते रहेंगे। फर्क सिर्फ इतना होगा — नाम बदल जाएंगे, चीख वही रहेगी।
