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फर्रुखाबाद में जब पर्ची मांगना बन गया गुनाह! न्यायालय परिसर बन गया अखाड़े का मैदान!

FIR ने कर दिया आग में घी का काम
महिला कांस्टेबल की तहरीर पर दो नामजद समेत चार वकीलों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया। वो भी सरकारी काम में बाधा डालने का। इस बात की जानकारी जैसी ही वकीलों को हुई उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया, अब तक वकील-पुलिस विवाद ने ‘संवैधानिक स्तर’ पकड़ लिया था। वकीलों ने हल्ला बोलते हुए कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन किया और ‘पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद’ के नारे लगाए। माहौल ऐसा लग रहा था मानो कोई चुनावी रैली हो।
वकील बोले: “हम साथ थे, साथ हैं, और अब बिल्कुल हड़ताल पर हैं”
वकील-पुलिस विवाद जैसे ही गर्माया, तुरंत बार एसोसिएशन की सभा बुला ली गई, जैसे संसद में आपात बैठक चल रही हो। अध्यक्ष शशि भूषण दीक्षित ने कहा, “हम साथ थे, साथ हैं, और साथ ही लड़ेंगे। 10 दिन हड़ताल हुई तो रिपोर्ट अपने आप पलट जाएगी।” यानी अब वकालत बंद, विरोध चालू! अरे वकील बाबू उन लोगों के बारे में तो सोच लेते, जिनकी तारीख लगी हुई है, किसी के घर की,किसी के जमीन की,किसी को जमानत चाहिए, तो किसी को केस दर्ज कराना है, इन सबका अब क्या होगा।
पुलिस बोली: मौखिक समझौता था, कानूनन कोई मोल नहीं
बार काउंसिल बोली: आर-पार की लड़ाई होगी
उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य अखिलेश कुमार अवस्थी ने पुलिस पर ‘निरंकुशता’ का आरोप लगाते हुए कहा कि रिपोर्ट दवाब में दर्ज की गई है। और इसे वापस लेना होगा। वहीं अधिवक्ता संगठनों ने ऐलान कर दिया — “अब आर-पार की लड़ाई होगी।” यानी इस वकील-पुलिस विवाद में दोनों पक्ष ‘न्याय’ के नाम पर न्यायालय से बाहर ही भिड़ते दिख रहे हैं।
कानून के रखवालों की जंग अब अदालत के बाहर
जहां अदालत में न्याय मिलता है, वहीं वकील-पुलिस विवाद अब एक नई न्यायिक विडंबना बन चुका है। कानून के रक्षक ही जब आमने-सामने हों, तो आम आदमी की उम्मीदें किनके दरवाजे पर जाएं?

 
         
         
         
        