 
                  मौत के डर में जी रहा है Taliban का सुप्रीम लीडर मुल्ला हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा
अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज़ तालिबान (Taliban) का सर्वोच्च नेता मुल्ला हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा इन दिनों अपने जीवन की सबसे बड़ी चिंता में घिरा हुआ है — मौत का डर। जिस कट्टरपंथी संगठन के जरिए वह अफगानिस्तान पर हुकूमत चला रहा है, आज उसी संगठन का सुप्रीम लीडर अपने ही देश में छिपकर जी रहा है, वह भी हर दिन ठिकाना बदलते हुए।
ट्रंप की धमकी और हिबतुल्लाह की बेचैनी
अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में तालिबान को सीधे तौर पर धमकी दी है। उनका साफ कहना है कि अगर तालिबान ने बग्राम एयरबेस अमेरिका को नहीं सौंपा, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। ट्रंप ने चेतावनी दी कि वह देखेंगे कि अमेरिका क्या कर सकता है। ट्रंप की इन बयानों के बाद तालिबान में खलबली मच गई है, और इसका सबसे बड़ा असर मुल्ला हिबतुल्लाह पर पड़ा है, जो अब अपना सुरक्षित ठिकाना खोजने में व्यस्त हैं।
हर दिन बदल रहा है घर
सूत्रों के मुताबिक, अखुंदज़ादा आमतौर पर तीन ठिकानों पर रहा करता था:
- मंदिगक इलाका
- ऐनो मीना में अब्दुल रज़ीक अचकज़ई का घर
- कंधार आर्मी कोर का पुराना मुख्यालय
लेकिन पिछले तीन दिनों से उसका कोई अता-पता नहीं है। यहां तक कि तालिबान के आंतरिक सूत्र भी उसके वर्तमान ठिकाने को लेकर अनिश्चित हैं। ये स्थिति बताती है कि तालिबान प्रमुख अब खुद को भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा।

साप्ताहिक बैठकें भी रद्द
मुल्ला हिबतुल्लाह हर हफ्ते उलेमा परिषद के साथ बैठक किया करता था, लेकिन इस हफ्ते यह बैठक अचानक रद्द कर दी गई है। अफगानिस्तान इंटरनेशनल के सूत्रों का दावा है कि पहले उसकी उपस्थिति सार्वजनिक रूप से जानी जाती थी, लेकिन अब उसकी गतिविधियों पर निगरानी रखना भी मुश्किल हो गया है।

नरम पड़ा Taliban का बयान
ट्रंप की धमकियों के बाद तालिबान प्रशासन ने एक नरम सुर में बयान जारी किया। बयान में कहा गया कि अमेरिका ने दोहा समझौते के तहत यह वादा किया था कि वह अफगानिस्तान की संप्रभुता और राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ न तो बल प्रयोग करेगा, न ही किसी प्रकार की धमकी देगा।
तालिबान की इस सावधानीभरी प्रतिक्रिया से साफ है कि उन्हें ट्रंप की धमकी हल्के में नहीं लेनी चाहिए और शायद लिया भी नहीं गया।
मुल्ला अखुंदज़ादा का इतिहास
- जन्मस्थान: कंधार, अफगानिस्तान
- प्रारंभिक जीवन: 1980 के दशक में रूस के खिलाफ अफगान जिहाद में शामिल
- 1994 में तालिबान में शामिल हुए, मुल्ला उमर के नेतृत्व में
- सैन्य अदालत के प्रमुख के रूप में शुरू की तालिबान में सक्रिय भूमिका
- 2021 में अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद, वह तालिबान का सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता बन गया
पिछले 15 सालों से वह बलूचिस्तान के कचलक क्षेत्र में एक मस्जिद में धार्मिक सेवा दे रहा था। लेकिन सत्ता में आने के बाद वह गोपनीय जीवन जीने लगा और अब, बचने के लिए छिपता फिर रहा है।
Taliban पर डर का साया, सत्ता का संकट
मुल्ला हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा की मौजूदा स्थिति यह साफ दिखाती है कि कट्टरपंथ से सत्ता तो पाई जा सकती है, लेकिन शांति और सुरक्षा नहीं। जब एक देश का सर्वोच्च नेता खुद हर दिन अपनी जान बचाने के लिए ठिकाने बदलता है, तो यह उस शासन की कमजोरी और अस्थिरता का प्रतीक बन जाता है। ट्रंप की चेतावनियों और अमेरिका की सख्ती ने तालिबान शासन को भीतर से हिला दिया है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में क्या वाकई कोई बड़ा अमेरिकी कदम तालिबान शासन के खिलाफ उठाया जाएगा, या यह डर यूं ही बना रहेगा।

 
         
         
         
        
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