पाकिस्तान के साथ सीजफायर नहीं POK चाहती थी जनता…!
पहले पहलगाम हमला,फिर ऑपरेशन सिंदूर और अब सीजफायर। पहलगाम हमले के बदले के रूप में ऑपरेशन सिंदूर की जीतनी तारीफ की जाए कम है। लेकिन उसके बाद जो होना चाहिए था, वो नहीं हुआ। कहने का मतलब ये है कि, सीजफायर से पहले पाकिस्तान को मटियामेट कर देना चाहिए था। कुछ ऐसा कर देना चाहिए था कि, वो दोबारा खड़ा न हो सके। POK से कम भारत को कुछ मंजूर नहीं करना चाहिए था। भारत के जनता की भी यही आवाज थी।
सेना ने दिखाया अदम्य साहस
इसमें कोई दो राय नहीं है कि, हमारी बहादुर सेना ने पाकिस्तान के कई ऐयरबेस और आतंकी ठिकाने नष्ट कर दिये। लेकिन सवाल है क्या इतना काफी था। शिमला समझौता रद्द करके जो कार्रवाई पाकिस्तान ने शुरू की थी, क्या उसका यही अंत था? क्या एक बार फिर बात जहां से शुरु हुई थी वहीं पहुंच गई? इधर भारत ने भी जिस मकसद के लिए ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया गया था, क्या वो पूरा हो गया ? क्या हमने पाकिस्तान में बैठे सभी आतंकियों का खात्मा कर दिया? क्या उनके सभी आतंकी ठिकाने नष्ट कर दिये ? जवाब है नहीं । तो फिर ऐसे आधी-अधूरी कार्रवाई का क्या मतलब? आखिर हमने POK क्यों नहीं लिया?
पूरा हो गया हिंदुस्तान का असल मकसद ?
जब भारत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, तो लोगों को लगा कि, सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के दौरान जो नहीं हो पाया था, वो इस बार होगा। यानि पाकिस्तान से आतंकियों का सफाया तो होगा ही। साथ ही में POK भी भारत के कब्जे में जाएगा।इसमें दो राय नहीं है कि, POK पर भारत का कब्जा होना चाहिए। जिसकी बात सालों से मोदी सरकार करती आई है। बाकायदा संसद और चुनावी रैलियों में पीएम मोदी,गृहमंत्री अमित शाह,रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह खुद इस बात का ऐलान कर चुके हैं। साफ कह चुके हैं कि, पीओके भारत का हिस्सा है,और हम इसे लेकर रहेंगे। चाहे इसके लिए हमें कितना ही बड़ा बलिदान क्यों ने देना पड़े। मोदी सरकार के हर मंत्री के जुबान पर यही बात रहती थी, लेकिन असल में जब पीओके को लेने का वक्त आया, तो मोदी सरकार ने क्यों पैर पीछे खींच लिया। आखिर क्यों उसने POK को लेने की कोशिश नहीं की? ऐसा क्या था जो उसे रोक रहा था? क्या वो चीन था?
पीओके पर कब्जे का नहीं था सही मौका?
हर हिंदुस्तानी की ये हसरत है कि, POK भारत का हिस्सा बने, और पाकिस्तान का कब्जा वहां से हटे। सालों से हम और आप इसी बात का इंतजार कर रहे हैं। मोदी सरकार आई तो लगा कि, ऐसा कुछ होगा। और जरूर होगा। मोदी सरकार के फैसले इस ओर इशारा भी करते थे। सबको लगता था कि, मोदी है तो मुमकिन है। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ही अचानक सीजफायर के ऐलान ने सबको चौका दिया। पाकिस्तान को करारा सबक सिखाए बगैर, उसके दो टुकड़े किये बगैर, उससे POK लिये बगैर सीजफायर के ऐलान के बारे में शायद आवाम ने भी नहीं सोचा था। उसे लग रहा था कि अबकी बार ऐसी सरकार है, जो सालों से भारतीयों के मन में दबी हुई इच्छा को पूरा करेगी। लेकिन मोदी सरकार ने सीजफायर का ऐलान कर मानो सबकी उम्मीदों को ही चकनाचूर कर दिया।
‘मोदी है तो मुमकिन है,अब ये कहना गलत’?
लोगों का ये कहना है, कि, बीजेपी ने ये नारा दिया था कि, मोदी हैं तो मुमकिन है। लेकिन अब शायद ऐसा नहीं लगता है। क्योंकि उन्हें ऑपरेशन सिंदूर के बाद मोदी सरकार से जो उम्मीद थी, वो पूरी नहीं हुई। सीजफायर के उल्लंघन के बाद भी पाकिस्तान को छोड़ देना कहीं से सही नहीं ठहराया जा सकता है। कायदे से तो होना ये चाहिए था कि, जब पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन हमलों की नाकाम कोशिश की, उसी वक्त उसका फन कुचल देना चाहिए था।उसे घर में घुसकर मारना चाहिए था। लेकिन भारत ने संयमित कार्रवाई की। जिसका नतीजा ये हुआ कि, हारने के बाद भी पाकिस्तान की आवाम जीत का जश्न मना रही है। भारत की जनता को मुंह चिढ़ा रही है।
अमेरिका को क्यों नहीं लगाई फटकार?
हैरानी की बात तो ये है कि, पाकिस्तान के साथ जंग हमारी हो रही थी, और सीजफायर का ऐलान अमेरिका कर रहा था। वो अमेरिका जो भारत का सच्चा दोस्त होने का दावा करता है। वो अमेरिका जिसके राष्ट्रपति पीएम मोदी के सच्चे दोस्त कहे जाते हैं। उसी अमेरिका ने भारत की किरकिरी करा दी। जहां उसे भारत के साथ खड़े होकर पाकिस्तान की बैंड बजानी चाहिए थी। चीन को सबक सिखाना चाहिए था, वहां वो भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराकर उसका क्रेडिट लेने में जुटा था। तभी तो जिस सीजफायर का ऐलान भारत और पाकिस्तान को करना चाहिए था,उसका ऐलान अमेरिका ने कर दिया।
सीजफायर के ऐलान का नहीं था ये सही वक्त?
भारत ने ऐसे समय सीज फायर किया,जब देश का जोश आसमान पर था। हर भारतवासी पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए मर-मिटने को तैयार था। लेकिन अचानक सीजफायर के ऐलान ने सभी को चौंका दिया। कहां तो हर हिंदुस्तानी को उम्मीद थी कि,मोदी सरकार पाकिस्तान के दो टुकड़े कराकर ही दम लेगी। और कहां मोदी सरकार ने सुथली बम वाला काम कर दिया। जो केवल शोर करने का काम करता है। सीजफायर समझौते के बाद पाकिस्तान ने जब एक बार फिर भारत पर ड्रोन अटैक किया,उसी वक्त सरकार को ये ठान लेना चाहिए था कि, अब पाकिस्तान को छोड़ना नहीं है। लेकिन हमारी सरकार उसे सीजफायर की गंभीरता समझा रही थी। ये बता रही थी कि, पाकिस्तान को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए,जिससे हालात और खराब हों।
मां भारती के सपूत पाक को कर देते खाक

जिस भारत के सपूतों में पाकिस्तान को खाक में मिलाने की ताकत हो। वो भारत अगर ऐसी बात करे तो समझ से परे हैं।अब आप गोली के बदले गोला दागने की बात करें या फिर दोबारा आतंकी हमला होने पर पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात । अब ये सारी बात बेमानी है। जनता समझ चुकी है कि,ये केवल जुबानी जमा खर्च है, क्योकि जब ये करने का वक्त था, तब आपने सीजफायर कर लिया। और अब आवाम को गोली के बदला गोला से लेने की बात कह रहे हैं। युद्ध की वकालत कोई नहीं करता, लेकिन जब पड़ोसी पाकिस्तान जैसा हो, तो पक्का इलाज जरूरी है। नहीं तो ऐसा जख्म नासूर बन जाते हैं।
चीन पाक के साथ रहेगा ये पहले से तय था
मोदी सरकार ने जब ऑपरेशन सिंदूर चलाया तो उसको मालूम था कि, चीन पाकिस्तान के साथ हर कीमत पर खड़ा रहेगा। लिहाजा आपको कार्रवाई करने से पहले सारा गुणा-गणित बैठा लेना चाहिए था। और अगर उसका हिसाब नहीं बैठ रहा था तो पाकिस्तान पर अटैक करने के बजाए पहले जमीन तैयार करनी चाहिए थी। अपने साथ फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों को खड़ाकर लेना चाहिए था। जो चीन के खिलाफ आपकी ढाल बनते। कहने का लब्बोलुआब यही है कि, मोदी सरकार ने जो किया वो सही था, लेकिन जो उसे करना चाहिए था वो नहीं करके उसने भारत के एक वर्ग को निराश किया है। निराश होने वाले इस वर्ग में हमारे और आप जैसे मोदी के कट्टर समर्थक हैं। जो इस सीजफायर को पचा नहीं पा रहे हैं। हमारे माथे पर सीजफायर का ये दाग ऐसा है जो हमें ताउम्र सहलाता रहेगा।