PMO के नाम में बदलाव, सिस्टम में बदलाव के बड़े संकेत
केंद्र सरकार ने शासन को नई पहचान देने की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अंतर्गत बन रहे नए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) का नाम अब ‘सेवा तीर्थ’ रखा गया है। ये सिर्फ नाम बदलने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि शासन के मूल मंत्र — सेवा, कर्तव्य और जिम्मेदारी — को दर्शाने वाला प्रतीक माना जा रहा है।
क्यों बदला गया PMO का नाम?
नया नाम ‘सेवा तीर्थ’ प्रधानमंत्री कार्यालय को सिर्फ प्रशासनिक भवन नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा का केंद्र बताता है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार,
- शासन की सोच कोसेवा-प्रधान दिखाना
- सत्ता के दंभ की जगह कर्तव्य और जिम्मेदारी को महत्व देना
- प्रशासनिक संस्थानों को जनता सेजुड़ा और पारदर्शी महसूस कराना
इन्हीं उद्देश्यों के साथ ये बदलाव किया गया है।

नाम बदलने की बड़ी कड़ी: कई भवनों और मार्गों का नया रूप
ये बदलाव अकेला नहीं है। हाल के वर्षों में देश के कई अहम सरकारी परिसरों और सड़कों को नए नामों से नवाज़ा गया है, ताकि शासन की नई कार्यप्रणाली और सोच को आसानी से समझा जा सके।
1. देशभर के राजभवन अब कहलाएंगे “लोक भवन”
सरकार चाहती है कि इन भवनों की पहचान सत्ता से नहीं, बल्कि जनता से जुड़े स्थान के रूप में बने। इसीलिए राजभवन—जहां राज्यपाल निवास और कामकाज करते हैं—अब “लोक भवन” कहलाने लगे हैं।
2. प्रधानमंत्री आवास मार्ग—अब ‘लोक कल्याण मार्ग’
पहले जहां पीएम आवास रोड जिसे ‘7 रेसकोर्स रोड’ के नाम से जाना जाता था, अब उसका नाम लोक कल्याण मार्ग रखा गया है, जो जनता के कल्याण का संदेश देता है।

3. राजपथ से ‘कर्तव्य पथ’ तक
दिल्ली का ऐतिहासिक राजपथ, जो लंबे समय से औपनिवेशिक नाम का प्रतीक था, अब कर्तव्य पथ कहलाता है—जिसका संदेश स्पष्ट है: देश सेवा ही सर्वोच्च कर्तव्य है।
4. केंद्रीय सचिवालय—अब ‘कर्तव्य भवन’
केंद्रीय सचिवालय, जहां देश की प्रशासनिक रीढ़ संचालित होती है, उसे नया नाम कर्तव्य भवन मिला है। सरकार का कहना है कि ये नाम नौकरशाही के लिए एक नया नैतिक संदेश लेकर आता है—
कर्तव्य सर्वोपरि।
नाम बदलाव में छिपा संदेश
इन सभी नए नामों—”सेवा तीर्थ”, “लोक भवन”, “लोक कल्याण मार्ग”, “कर्तव्य पथ” और “कर्तव्य भवन”—का मकसद एक ही है:
- सत्ता नहीं, सेवा
- अधिकार नहीं, कर्तव्य
- दूरी नहीं, लोक-संपर्क
- औपचारिकता नहीं, पारदर्शिता
PMO के नाम का बदलाव, बड़ा संदेश
सरकार का कहना है कि ये बदलाव भविष्य के भारत के शासन मॉडल को दर्शाते हैं, जिसमें प्रशासन को जन-सेवा का माध्यम माना जाएगा, न कि शक्ति का प्रतीक। प्रधानमंत्री कार्यालय का नया नाम ‘सेवा तीर्थ’ भारतीय प्रशासनिक ढांचे में एक प्रतीकात्मक लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव है। ये नए भारत की उस सोच को प्रतिबिंबित करता है जिसमें सरकार स्वयं को जनता की सेवा हेतु समर्पित संस्था के रूप में प्रस्तुत कर रही है। आने वाले समय में ये देखा जाना दिलचस्प होगा कि ये बदलाव शासन के व्यवहार और कामकाज में कितना गहरा असर छोड़ते हैं।
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