 
                  Terror of Guldar: गन्ने के खेतों में छिपा खामोश हत्यारा!
सूरज ढल चुका था – बिजनौर के नहटौर थाना क्षेत्र के मंडोरी गांव में एक अजीब-सी खामोशी पसरी थी। गन्ने के खेतों के बीच हवा में सनसनाहट थी, मानो कोई अनजाना खतरा अंधेरे में सांस ले रहा हो। शाम के 7 बजे…10 साल की मासूम कनिका अपने घर के पास गन्ने के खेत में शौच के लिए गई। मां-बाप को क्या पता था कि यह उसकी आखिरी सैर होगी? अचानक गन्ने के पत्तों की सरसराहट तेज हुई… एक गुलदार—जंगल का खामोश शिकारी—अंधेरे से निकलकर कनिका पर झपटा। मासूम कनिका की चीख हवा में गूंजी – लेकिन गुलदार उसे अपने जबड़ों में जकड़कर जंगल की गहराइयों में गायब हो गया।

Terror of Guldar: कनिका तो मिली – लेकिन सांसें थम चुकी थीं
ग्रामीणों का शोर, लाठियां, और टॉर्च की रोशनी…जंगल में रात भर कनिका के लिए सर्च ऑपरेशन चला। सैकड़ों लोग रात भर खेतों और जंगलों में कनिका को ढूंढते रहे। हर कदम पर डर था कि कहीं गुलदार फिर न लौट आए। सुबह की पहली किरण के साथ … गांव से आधा किलोमीटर दूर एक गन्ने के खेत में फिर जो दिखा – उसने सबके दिल दहला दिए। कनिका का अधखाया शव, खून के धब्बों और गुलदार के पंजों के निशानों के बीच पड़ा था। गांव में मातम छा गया। मां की चीखें और बाप की सिसकियां हवा में गूंज रही थीं, जबकि गुस्साए ग्रामीणों ने वन विभाग के खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिए – “वन विभाग हाय-हाय!”
Terror of Guldar: कनिका से पहले कनिष्का.. साहब मगर सो रहे!
यह कोई पहली घटना नहीं थी। ठीक एक साल पहले इसी गांव में मुकेश कुमार की बेटी कनिष्का भी गुलदार का शिकार बनी थी। दो साल में दो मासूम बच्चियों की जान लेने वाला यह शिकारी बार-बार मंडोरी गांव को क्यों निशाना बना रहा है? ग्रामीणों का गुस्सा वन विभाग पर फूट रहा है जो उनकी नजर में कुम्भकर्णी नींद में सोया है। 
गांव के लोग खबरीलाल डिजिटल के रिपोर्टर से बोले- “हमने बार-बार शिकायत की…पिंजरे लगाने को कहा, लेकिन कोई सुनता ही नहीं!”
Terror of Guldar: बिजनौर क्यों इतना गुलदार के हमलों का शिकार?
बिजनौर में गुलदारों के हमले की वजहें जटिल हैं – जो प्रकृति और इंसान के टकराव की कहानी बयां करती हैं:
- जंगल का सिकुड़ना:बिजनौर के आसपास के जंगल, जैसे अमानगढ़ टाइगर रिजर्व और जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, मानव अतिक्रमण के कारण सिकुड़ रहे हैं। गुलदारों का प्राकृतिक आवास कम होने से वे खेतों और गांवों में भटकने को मजबूर हैं।
- आसान शिकार:गन्ने के खेत गुलदारों के लिए छिपने की आदर्श जगह हैं। ये खेत न केवल शिकार को छिपाने में मदद करते हैं, बल्कि मवेशियों और इंसानों को आसान शिकार बनाते हैं।
- टाइगर का खौफ: जंगलों में बाघों का दबदबा गुलदारों को गांवों की ओर धकेल रहा है। बाघों से डरकर गुलदार आबादी वाले इलाकों में शरण लेते हैं, जहां वे कुत्तों, मवेशियों और कभी-कभी इंसानों पर हमला करते हैं।
- वन विभाग की निष्क्रियता:ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग की ओर से ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। पिंजरे लगाने, गश्त बढ़ाने, या ड्रोन निगरानी जैसे उपाय अपर्याप्त हैं।
- बढ़ती गुलदार आबादी: वन विभाग के अनुसार, बिजनौर में 300 से 500 गुलदार हैं, जो गन्ने के खेतों में स्थायी रूप से डेरा डाले हुए हैं। उनकी बढ़ती संख्या और भोजन की कमी उन्हें आक्र ामक बना रही है।
तो सवाल है कि होना क्या चाहिए – किस किसको क्या करना चाहिए? फिलहाल तो वन विभाग को तत्काल पिंजरे लगाने, ड्रोन निगरानी बढ़ाने, और रात में गश्त करने की जरूरत है। जबकि जंगल से लगे इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को चाहिए कि वो समूह में खेतों में जाएं और बच्चों को अकेले ना छोड़ें – ये बताने का जिम्मा भी वन विभाग और प्रशासन के अधिकारियों का है। साथ ही जंगल संरक्षण और गुलदारों को आबादी से दूर रखने की दीर्घकालिक और ठोस योजना भी सरकार को बनाने की जरूरत है।

 
         
         
        