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Stray Cattle UP:उत्तर प्रदेश में गौवंश संरक्षण का सरकारी दावा हकीकत में खोखला साबित हो रहा है। गांव-गांव में बेसहारा छुट्टा गौवंश सड़कों और खेतों में खुलेआम घूम रहे हैं। कभी घर-आंगन की शान रहे ये मवेशी अब किसान के लिए आफत बन चुके हैं — फसल चौपट, सड़क हादसे और गांव की शांति बर्बाद।
Stray Cattle UP: गौवंश की आंखों में भूख, गांव की गलियों में अपमान
कभी गांव का श्रृंगार माने जाने वाले गाय-बैल आज गांव वालों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। पर सवाल ये है — क्या कसूर है इस मासूम गौवंश का? किसान, मजदूर जब तक खेत में काम था, दूध था, बैल खेत जोतते थे, तब तक सब पालते रहे। जैसे ही मशीनें आईं, दूध देने की उम्र निकली — सड़कों पर छोड़ दिया। आज हाल ये कि हजारों की तादाद में गाय-बैल यूपी की सड़कें और खेतों में लाठी खाते घूम रहे हैं। सरकार कहती है — गौशाला है! पर कौन सी? कहां है? क्या उनमें सच में जगह है?
🐂 Stray Cattle UP: गौशाला कागज में भरी, जमीन पर खाली
सरकार की फाइलों में हर जिले में गौशाला बन गई है। बरेली मंडल के तराई जनपद पीलीभीत की बात करें तो जिले में करीब 50 से अधिक गौशालाएं दर्ज हैं, जिनमें लगभग छ हजार पशु संरक्षित बताए जाते हैं। लेकिन गांव वालों से पूछो — कहते हैं, ‘भैया! हमारी गौशाला में तो चारा नहीं, भूसा नहीं, बजट है तो सिर्फ अधिकारी खा जाते हैं।’ सड़कों पर घूमते बैल खुद गवाही हैं कि सरकारी दावे कितने खोखले हैं। आलम ये कि कोई बीमार या हिंसक सांड गांव में घुस जाए तो लोग उसे भगाते फिरते हैं। पकड़ो तो कहां रखो? कोई गांव दूसरा गांव का पशु नहीं लेता। सिस्टम बोलता है — ‘गौशाला में जगह नहीं।’
Stray Cattle UP: किसानों की फसल पर ‘चरागाह’ बना खेत
अब जरा किसान की सुनिए — खेत में खून-पसीने से बोई फसल। रात भर खेत में पहरा। फिर भी झुंड के झुंड बैल-गाय खेत में घुसते हैं, खेत को उजाड़ कर चले जाते हैं। कहीं किसान लाठी लेकर भिड़ता है तो कहीं हादसे में जान चली जाती है। बुजुर्ग से लेकर बच्चा तक हर किसान, हर गांव वाला इसी डर में जी रहा — ‘फसल बचेगी कि नहीं?’ ये वही यूपी है जहां सियासत में हर मंच से गाय पर भाषण होता है। भाषण के बाद गाय फिर सड़क पर — और किसान फिर बर्बादी पर।
Stray Cattle UP: प्रशासन और सरकार का ढोंग
प्रशासन हर बार मीटिंग बुलाता है। अधिकारी आदेश निकालते हैं — ‘गौवंश पकड़ो, गौशाला भेजो!’ पर हकीकत? प्रधान फोटो खिंचवा लेता है। सचिव रिपोर्ट बना देता है। जिले में आंकड़े भेज दिए जाते हैं — ‘इतने गोवंश पकड़े गए।’ गांव में हकीकत वही — सड़कों पर बेसहारा पशु। वोट आते ही गाय माता याद आती है। वोट कटते ही गौवंश फिर लावारिस। इस सिस्टम ने इंसानियत को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है — क्योंकि जानवर भी इंसान के छोड़े हुए हैं।

 
         
         
         
        