Asrani Passes Away: नहीं रहे असरानी, हिन्दी सिनेमा के ‘जेलर साहब’ ने हमेशा के लिए कहा अलविदा
मुंबई, 20 अक्टूबर 2025 — हिन्दी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और मशहूर कॉमेडियन गोवर्धन असरानी (Govardhan Asrani) अब इस दुनिया में नहीं रहे। दिवाली के दिन, सोमवार को उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। 84 वर्ष की उम्र में असरानी ने चुपचाप, बिना किसी शोर-शराबे के इस दुनिया को अलविदा कहा, जैसा कि उनकी अंतिम इच्छा थी।
फेफड़ों की बीमारी से चल रहे थे पीड़ित
पिछले कुछ दिनों से असरानी की तबीयत खराब चल रही थी। उन्हें फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं के चलते आरोग्य निधि अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की लगातार कोशिशों के बावजूद, 20 अक्टूबर की दोपहर उन्होंने दम तोड़ दिया। उनके मैनेजर बाबुभाई थीबा ने उनके निधन की पुष्टि की।

Govardhan Asrani शांतिपूर्वक हुआ अंतिम संस्कार
परिवार के अनुसार, असरानी चाहते थे कि उनके निधन के बाद कोई हो-हल्ला न हो। इसी इच्छा का सम्मान करते हुए, परिवार ने उसी दिन सांताक्रूज वेस्ट स्थित शास्त्री नगर श्मशान में चुपचाप उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार में केवल परिवार और कुछ करीबी लोग ही मौजूद थे।
Govardhan Asrani का यादगार करियर
1 जनवरी 1941 को जयपुर में जन्मे असरानी ने सेंट जेवियर्स स्कूल और राजस्थान कॉलेज से पढ़ाई की थी। अभिनय की दुनिया में उन्होंने 1967 में फिल्म हरे कांच की चूड़ियां से कदम रखा। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 400 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया।
शोले का ‘जेलर’ – जो अमर हो गया
असरानी का सबसे चर्चित किरदार फिल्म शोले (1975) में निभाया गया जेलर का रोल था। उनका डायलॉग “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” आज भी लोगों के चेहरों पर मुस्कान ला देता है। ये किरदार न केवल हास्य का प्रतीक बना, बल्कि हिन्दी सिनेमा में एक पहचान भी।

हर पीढ़ी के दिलों पर राज
चाहे चुपके चुपके हो, रफू चक्कर, अमर अकबर एंथनी या भूल भुलैया — असरानी ने हर दौर की फिल्मों में अपनी कॉमिक टाइमिंग और भावपूर्ण अदायगी से लोगों को गुदगुदाया भी और रुलाया भी। वो उन चुनिंदा कलाकारों में थे जिन्होंने पांच दशकों से भी अधिक समय तक फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय योगदान दिया।
असरानी का निजी जीवन
असरानी ने 1973 में अभिनेत्री मंजू बंसल से विवाह किया था। उनका एक बेटा नवीन असरानी है, जो पेशे से डेंटिस्ट हैं और अहमदाबाद में रहते हैं। उनके पिता एक कारोबारी थे और परिवार में तीन भाई व चार बहनें थीं।
अभिनय से अलग भी एक सीख
असरानी का जीवन केवल अभिनय का उदाहरण नहीं, बल्कि सादगी, अनुशासन और विनम्रता का भी प्रतीक था। अपनी अंतिम इच्छा में भी उन्होंने शांति और सरलता को प्राथमिकता दी, ये दिखाते हुए कि वो न केवल अभिनय में महान थे, बल्कि इंसानियत में भी उतने ही ऊंचे।
गोवर्धन असरानी का जाना केवल एक अभिनेता का जाना नहीं है, ये हिन्दी सिनेमा की एक पूरी पीढ़ी के अंत जैसा है। उन्होंने हमें हँसाया, सोचने पर मजबूर किया और अभिनय को एक नया दृष्टिकोण दिया। आज जब हम उन्हें याद करते हैं, तो न केवल उनका चेहरा बल्कि उनकी आवाज़, उनका अंदाज़ और उनकी इंसानियत भी याद आती है।
हिन्दी सिनेमा ने आज अपना एक अनमोल रत्न खो दिया है।
उनकी आत्मा को शांति मिले।
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