 
                  Shimla Building Collapse हादसे ने फिर साबित कर दिया कि विकास के नाम पर लापरवाही कितनी भारी पड़ सकती है। राहत की बात बस इतनी है कि समय रहते इमारत खाली कराई गई, वरना फोर-लेन सड़क तो बनती रहती, पर कई घर उजड़ जाते। अब गांववाले फोर-लेन परियोजना, NHAI और प्रशासन से सवाल पूछ रहे हैं — क्या अगला नंबर हमारा है?
🏚️ वादियों में सुकून, घरों में मलबा — चामयाना का कड़वा सच!
शिमला की हसीन वादियों में जहां लोग सुकून ढूंढने आते हैं, वहीं चामयाना गांव के लोगों के घर सुकून समेत जमींदोज़ हो रहे हैं। सोमवार सुबह यहां एक पांच मंजिला इमारत ऐसे बैठ गई जैसे जिम्मेदार अफसर फाइलों पर बैठ जाते हैं — ढेर सारा वजन, और जीरो जवाबदेही!
🏚️ किस्मत से खाली, वरना शिमला की सर्द हवा में मातम ही मातम होता
रविवार शाम को किसी फरिश्ते ने फुसफुसा दिया — ‘भाग लो भाई, दीवारें जवाब दे रही हैं!’ — और मकान को खाली करवा लिया गया। वरना सोमवार की सुबह इमारत के मलबे से सिर्फ चीखें निकलतीं। फिलहाल कोई जानी नुकसान नहीं, पर नुकसान है — भरोसे का, घर का, नींद का!
फोर-लेन परियोजना: प्रगति की सड़क या बर्बादी का बाइपास?
इमारत की मालकिन रंजना वर्मा और गांववाले कह रहे हैं — हमारे घरों के नीचे खुदी सड़क, ऊपर से बरसात, और बीच में जिम्मेदारों की चुप्पी — यही वजह है कि दीवारें दरक गईं, नींव खिसक गई। पंचायत उप-प्रधान यशपाल वर्मा भी खुलकर बोले — ‘NHAI और ठेकेदार ने कागज पर सुरक्षा गारंटी दी थी, ज़मीन पर कुछ नहीं किया।’
🧱 इमारत गिरी, उम्मीदें भी — बाकी घरों में भी दरारें
जो पांच मंजिला इमारत गिरी, उसके पड़ोस के घरों में भी डर और दरारें दोनों गहरी हो गई हैं। लोग डरे हैं कि अगला नंबर उनका न हो। ऊपर से बारिश, नीचे से खुदाई — और अफसर कहें कि सब बढ़िया है — ये खेल शिमला वालों ने खूब देख लिया है।
प्रशासन देख रहा है… लोग भाग रहे हैं Shimla Building Collapse
प्रशासन कह रहा है कि हालात पर ‘नज़र’ रखी जा रही है — यानी जो दीवारें दरक रही हैं, उन्हें बस घूरा जा रहा है। उधर गांववाले सुरक्षा और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं — क्योंकि भरोसा तो पहले ही मलबे में दब चुका है।
🏠 फोर-लेन की कीमत क्या सिर्फ दीवारों से चुकानी होगी?
चामयाना के लोग पूछ रहे हैं — विकास की फोर-लेन क्या सिर्फ गाड़ियों के लिए है? जिनकी छतें, नींव और ज़िंदगी इसकी जद में आ गईं, उनका क्या होगा? सड़क चौड़ी हो रही है, पर भरोसा सिकुड़ रहा है। रंजना वर्मा जैसी कई महिलाएं अब मलबे के ढेर पर बैठकर अपने बच्चों के सिर पर छत की गारंटी मांग रही हैं — जो कागजों पर तो खूब मोटी है, पर हकीकत में रेत सी ढह गई।
अब नहीं जागे तो कल मलबा खुद बोल उठेगा! Shimla Building Collapse
गांववालों ने प्रशासन से साफ कहा है — खतरे में पड़े घरों की तुरंत जांच हो, मुआवजा मिले और सुरक्षित जगह बसाया जाए। नहीं तो आज एक इमारत गिरी है, कल पूरा गांव उखड़ जाएगा। सवाल सीधा है — क्या विकास के नाम पर लोगों को अपने ही घर से बेघर कर देना ही नए भारत की तरक्की है?
खबरीलाल की खरी-खरी: Shimla Building Collapse
फोर-लेन बननी चाहिए — पर घर ढहाकर नहीं! सवाल ये है कि विकास की सड़क पर किसकी नींव खिसक रही है — मिट्टी की, या सिस्टम की?

 
         
         
         
         
         
        