पीलीभीत के पूरनपुर क्षेत्र में हर साल अस्थाई Sharda River Pontoon Bridge बनाया और हटाया जाता है, लेकिन दशकों से एक स्थाई पुल की मांग अधूरी है। इस साल भी 15 जून को पुल हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जिससे ट्रांस शारदा क्षेत्र के 17 गांवों का संपर्क फिर से कट गया है। नेताओं के वादों और प्रशासन की रफ्तार पर अब जनता को सीधा सवाल है — विकास की फाइलें कब बहाव पार करेंगी?
पीलीभीत से रिपोर्ट।संवाददाता सकुश मिश्रा
विकास देखना है? तो पीलीभीत चले आइए — जहां पुल नहीं, सिर्फ घोषणाएं बनती हैं
अगर आपको आज के “नए भारत” में विकास की असल तस्वीर देखनी हो, तो राजधानी से 300 किलोमीटर दूर पीलीभीत के पूरनपुर में कदम रखिए। यहां शारदा नदी जब उफनती है, तो सिर्फ पानी नहीं, बल्कि नेताओं के वादों को भी बहा ले जाती है। यहां Sharda River Pontoon Bridge हर साल की तरह फिर डूब गया है।Sharda River में आए Flood के कारण धनारा घाट का पेंटून पुल उखाड़ने का आदेश जारी कर दिया गया। पुल हटेगा, जनता फिर से फंसेगी — जैसे हर साल होता है।क्या मज़ाक है ना! ये 2025 है, लेकिन धनारा घाट पर अब तक एक स्थाई पुल नहीं बन पाया। और ये वो इलाका है, जहां से कभी वरुण गांधी सांसद थे, अब जितिन प्रसाद सांसद हैं। दोनों ने ‘विकास’ के इतने बुलेट प्रूफ वादे किए कि जनता को यकीन हो गया था — पर हुआ वही जो हर मानसून में होता है: पानी आया, पुल गया, जनता ठगी रह गई।
15 जून, 2025 की शाम 6 बजे तक धनाराघाट का यह अस्थायी पुल हटा लिया जाएगा, क्योंकि शारदा नदी उफान पर है। नतीजा? नेहरोसा, राणा प्रताप नगर, कुठिया गुदिया, विजय नगर जैसे 17 ग्राम पंचायतों के लोग या तो नावों के सहारे जिंदगी चलाएंगे, या तहसील मुख्यालय पहुँचने के लिए 130 किमी का चक्कर काटेंगे। 30 किमी की दूरी 130 किमी में बदल जाए, और सरकार को फर्क न पड़े—यह है पीलीभीत का ‘विकास मॉडल’! सवाल यह है कि दशकों से स्थायी पुल की माँग को कागज़ों की फाइलों में क्यों दफनाया जा रहा है? हमारे सांसद-विधायक, जो वोट माँगने में माहिर हैं, आखिर इस ‘पुल’ को बनाने में क्यों फिसड्डी हैं?
Sharda River Flood में बहती है सिर्फ जनता की उम्मीद, नेता तो बचे रहते हैं
हर साल की रस्म है—15 नवंबर को Sharda River Pontoon Bridge बनता है, 15 जून को हटता है। इस बार तो हद हो गई, पुल दो महीने देरी से बना, और अब बाढ़ के डर से समय से पहले उखाड़ा जा रहा है। ट्रांस-शारदा के लोग इस अस्थायी ढांचे के भरोसे हैं, लेकिन इसके हटते ही उनकी दुनिया सिमटकर नावों तक रह जाती है। 130 किमी का वैकल्पिक रास्ता—संपूर्णानगर, पलिया, मैलानी, खुटार होते हुए—किसानों, मज़दूरों और व्यापारियों की जेब और समय, दोनों की चोरी है। और हमारे नेता? वे तो रैलियों में ‘विकास’ का ढोल पीटते हैं, लेकिन धनाराघाट पर स्थायी पुल की फाइल वन विभाग के एनओसी के बहाने धूल खा रही है। क्या पीलीभीत के लोग सिर्फ़ नावों और टूटी सड़कों के हकदार हैं, या नेताओं की मेहरबानी का इंतज़ार करने के अलावा इनके पास कोई चारा नहीं है?
पीलीभीत का विकास एक ऐसा नाटक है, जिसमें स्क्रिप्ट तो शानदार है, लेकिन मंच पर कुछ होता नहीं। 2023 के उत्तर प्रदेश योजना विभाग के आंकड़े चीख-चीखकर बताते हैं कि पीलीभीत ग्रामीण सड़कों (महज़ 62% पक्की, राज्य औसत 78%) और बुनियादी सुविधाओं में फिसड्डी है। ट्रांस-शारदा के 40% गाँवों में सालभर की कनेक्टिविटी का सपना भी नहीं। योगी सरकार ने 2024 में धनाराघाट पर स्थायी पुल के लिए 269 करोड़ रुपये का ऐलान किया, लेकिन 360 पेड़ काटने का एनओसी अब तक नहीं मिला। टेंडर लटके, जनता ठगी गई। 2023 में ग्रामीण बुनियादी ढांचे के लिए 15% बजट बढ़ा, पर CAG की 2024 की रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ़ 20% फंड खर्च हुआ। फिर पैसा कहाँ गया? शायद नेताओं की रैलियों और होर्डिंग्स पर! पूरनपुर-धौरी-कंचनपुर रोड पर 314 करोड़ की लागत से दूसरा पुल बनाने का वादा भी कागज़ों में ही अटका है।
वरुण गांधी जब सांसद थे, तो विकास का सपना दिखाया, लेकिन ट्रांस-शारदा के लोग आज भी नावों पर लटके हैं। अब जितिन प्रसाद आए, तो क्या बदला? उनके दौरे और ट्वीट्स तो खूब वायरल होते हैं, लेकिन स्थायी पुल की फाइल वायरल होने की बजाय धूल चाट रही है। पीलीभीत के विधायक भी कमाल के हैं—चुनाव में वादों की बाढ़, और बाद में सन्नाटा। पीलीभीत गन्ना उत्पादन और टाइगर रिज़र्व के लिए मशहूर है, लेकिन बरेली और मुरादाबाद जैसे जिलों से कोसों पीछे, जहाँ स्थायी पुल दशकों से हैं।Sharda River में Flood हर साल आती है, लेकिन जनता के लिए सरकार की संवेदनाएं कभी नहीं आतीं। शायद पुल पर पत्थर नहीं, नेताओं की नीयत की कमी है जो आज तक निर्माण नहीं हो पाया।
Sharda River Pontoon Bridge हटा, जनता की उम्मीदें डूबीं
Sharda River Pontoon Bridge के हटने से ट्रांस-शारदा का हर घर संकट में है। किसान इंद्रदीप सिंह जैसे लोग बताते हैं कि APMC तक फसल ले जाना अब सपना है, नुकसान तय है। मरीज़ों को अस्पताल ले जाने के लिए नावों का जोखिम उठाना पड़ता है। नेपाल सीमा पर चौकसी भी प्रभावित होती है, क्योंकि नेपाल ने अपनी सीमा पर स्थायी पुल बना लिए, और हम? हम तो पेंटून पुल के भरोसे! नेताओं के लिए यह कोई मुद्दा नहीं, क्योंकि उनके हेलिकॉप्टर नदियाँ पार कर लेते हैं। लेकिन जनता? वह तो शारदा की लहरों में फंसी है।
वरुण गांधी हों या जितिन प्रसाद, हर नेता ने पीलीभीत को ‘विकास का ताज’ पहनाने का वादा किया, लेकिन हकीकत में सिर्फ़ कागज़ी ताज मिला। वन विभाग का एनओसी बहाना है, या सरकार की नाकामी का पर्दा? पीलीभीत के लोग पूछते हैं—हमारा विकास कब? क्या स्थायी पुल सिर्फ़ चुनावी जुमला है?
Sharda River Pontoon Bridge का हर साल डूबना पीलीभीत के विकास का मज़ाक उड़ाता है। सांसद-विधायक के वादे हवा-हवाई, और जनता नावों के सहारे। स्थायी पुल बनाना कोई मंगल मिशन नहीं, फिर देरी क्यों? पीलीभीत के लोग अब और वादों की नाव में नहीं बैठना चाहते। नेताओं, अब तो जागो, या फिर जनता खुद अपनी नाव खेने को मजबूर होगी!
Sharda River Flood हर साल आती रहेगी, लेकिन जब तक नेता सिर्फ उद्घाटन की राजनीति और फोटो खिंचवाने की योजनाएं बनाते रहेंगे, पूरनपुर की जनता इसी तरह अपनी तकदीर को रोती रहेगी।