 
                  बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को लेकर SC का योगी सरकार को झटका. अध्यादेश पर उठाए सवाल. गोस्वामी समाज में खुशी. कल फिर सुनवाई.
मथुरा से अमित शर्मा की रिपोर्ट…

New Delhi : वृंदावन के Banke Bihari Mandir Corridor को लेकर एक बहुत बड़ी खबर सामने आई है और ऐसा लग रहा है जैसे श्री बांके बिहारी ने आखिरकार अपने भक्तों की फरियाद सुन ली है. जैसा कि आप जानते हैं कि मथुरा के वृंदावन में बनने वाले श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के खिलाफ पिछले 66 दिनों से गोस्वामी समाज का प्रदर्शन चालू है. ऐसे में आज 4 जुलाई को देश की सर्वोच्च अदालत Supreme Court ने उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका दे दिया है. कोर्ट ने यूपी सरकार के बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 पर सवाल उठाते हुए मंदिर फंड के उपयोग की अनुमति देने वाले 15 मई 2025 के फैसले को वापस लेने का मौखिक प्रस्ताव रखा है. साथ ही मंदिर प्रबंधन के लिए एक समिति गठित करने का सुझाव दिया है जिसकी अध्यक्षता एक सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज करेंगे. मामले की अगली सुनवाई मंगलवार 5 अगस्त 2025 को होगी.
कोर्ट में किसने क्या कहा?
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जल्दबाजी में लागू किए गए अध्यादेश पर सवाल उठाए… यह अध्यादेश वृंदावन स्थित Banke Bihari Mandir के प्रबंधन को सरकारी नियंत्रण में लाने के लिए लाया गया था. कोर्ट ने कहा कि 15 मई के फैसले में मंदिर के ₹262.5 करोड़ के फंड के उपयोग की अनुमति “गोपनीय तरीके” से दी गई क्योंकि प्रभावित पक्षों (गोस्वामी परिवार) को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया.
गोस्वामी समाज के वकील की दलील

याचिकाकर्ता श्याम दीवान और गोस्वामी परिवार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता नरेंद्र गोस्वामी ने तर्क दिया कि “मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है और सरकार इस पर अपरोक्ष रूप से नियंत्रण करने की कोशिश कर रही है. सरकार हमारे धन पर कब्जा कर रही है. मंदिर निजी है”. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, “जब लाखों श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, तो इसे निजी कैसे कह सकते हैं? प्रबंधन निजी हो सकता है, लेकिन देवता निजी कैसे हो सकता है? मंदिर की आय केवल प्रबंधकों की जेब में नहीं जानी चाहिए बल्कि इसका उपयोग मंदिर के विकास और श्रद्धालुओं के कल्याण के लिए होना चाहिए”. जस्टिस सूर्यकांत ने सरकार के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अध्यादेश को “छिपकर” लागू करना और कोर्ट से अनुमति लेना अनुचित है. उन्होंने पूछा, “सैकड़ों वर्षों से चल रहे मंदिर के लिए इतनी जल्दबाजी क्यों? अध्यादेश आपातकालीन उपायों के लिए होता है”.
कोर्ट में यूपी सरकार का पक्ष
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल KM Nataraj ने कहा कि “सरकार का इरादा मंदिर के धन को हड़पने का नहीं बल्कि इसे मंदिर के विकास और कॉरिडोर निर्माण के लिए इस्तेमाल करने का है”. हालांकि कोर्ट ने सरकार से इस मामले में और स्पष्टीकरण मांगा और निर्देश लेने के लिए समय दिया.
कॉरिडोर का प्रस्तावित समाधान

Supreme Court ने सुझाव दिया कि मंदिर का प्रबंधन एक समिति को सौंपा जाए जिसकी अध्यक्षता एक सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज करें… यह समिति तब तक मंदिर का प्रबंधन देखेगी, जब तक इलाहाबाद हाईकोर्ट अध्यादेश की वैधता पर अंतिम फैसला नहीं देता. कोर्ट ने संकेत दिया है कि सभी संबंधित याचिकाओं को हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया जा सकता है. आपको बता दें सुनवाई के बाद गोस्वामी परिवार और उनके समर्थकों में सरकार के रुख पर कोर्ट की टिप्पणियों से प्रसन्नता देखी गई… वे इसे अपने पक्ष में एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं.

 
         
         
        