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मंदिर की मेला भूमि बची, लेकिन पालिका की नीयत उजागर हो गई!
Sambhal temple land dispute की इस जमीनी लड़ाई में आस्था की जीत हुई है और प्रशासन की गरिमा बची है — लेकिन साथ ही नगर पालिका की साजिश की परतें भी नंगी हो गई हैं। मां भगवन्तपुर वाली देवी मंदिर की पवित्र मेला भूमि को सत्संग भवन के नाम पर हड़पने की जो योजना पालिका ने रची थी, वो अब डीएम की डांट से चिथड़े-चिथड़े हो गई है। मेला भूमि को ‘निर्माण स्थल’ में बदलने की इस हिमाकत को रोकने के लिए मंदिर कमेटी ने मोर्चा खोला, और डीएम ने खुद मोर्चा संभालकर नीयत की नसें टटोल डालीं।
Sambhal temple land dispute: नगर पालिका की चालें – आस्था के नाम पर प्लॉटिंग का पूरा टेंडर!
दो करोड़ का टेंडर मंदिर सौंदर्यकरण के नाम पर निकाला गया, लेकिन काम शुरू किया मेला भूमि पर। विवाद की असली जड़ यहीं है — जहां नगर पालिका ने मंदिर के नाम पर जनता की आंखों में धूल झोंकी, और सरकारी योजनाओं को अपने हिसाब से घुमा दिया। गाटा संख्या 633 जो दशकों से मेला भूमि के रूप में दर्ज है, वहां चुपचाप सत्संग भवन का नक्शा लटका दिया गया — जैसे मेला नहीं, प्रॉपर्टी मेला लगने जा रहा हो।

डीएम का डंडा चला तो पालिका EO की ज़ुबान सूख गई
गुरुवार सुबह जब ठेकेदार और मज़दूर मेला भूमि पर नींव खोदने पहुंचे, तब मंदिर कमेटी ने जोरदार विरोध किया। तनाव इतना बढ़ा कि RRF तैनात करनी पड़ी। जैसे ही मामला गर्माया, डीएम खुद मौके पर पहुंचे — और फिर जो हुआ, उसने नगर पालिका की नींव हिला दी। EO आशुतोष तिवारी और पालिका अध्यक्ष राजेश शंकर राजू को डीएम ने साफ शब्दों में कहा: “सरकार का पैसा मंदिर में लगे, जमीने कब्जाने में नहीं!”
यह सुनते ही EO की बोलती बंद हो गई और पालिका की चालें धरी की धरी रह गईं।
Sambhal temple land dispute: मंदिर कमेटी की जीत – श्रद्धा की ज़मीन बचाई
DM और मंदिर कमेटी के बीच बैठक में तय हुआ कि मेला भूमि पर कोई निर्माण नहीं होगा। मंदिर कमेटी ने इस पर सहमति जताते हुए डीएम का आभार व्यक्त किया। ट्रस्ट अध्यक्ष अरुण गोस्वामी ने बताया कि “छह महीने से पालिका इसी जमीन पर कब्जे की फिराक में थी। गाटा संख्या 638 में मंदिर है और 633 मेला भूमि के रूप में दर्ज है।” पालिका ने चालाकी से सौंदर्यकरण का नाम लेकर टेंडर पास कराया और जबरन निर्माण शुरू कर दिया। जिसका मंदिर कमेटी विरोध कर रही थी।

मंदिर कमेटी के सदस्य गौरव कांत शर्मा ने भी पालिका के इरादों पर सवाल उठाते हुए जिलाधिकारी के फैसले पर खुशी जाहिर की ।
नगर पालिका: सौंदर्यकरण की आड़ में स्थायी कब्जे की योजना?
कौन-सा सौंदर्यकरण जिसमें मंदिर छूट गया और मेला भूमि फंस गई? यही सवाल जनता के दिल में है। मेला परिसर की जमीन को लेकर पालिका की भूमिका पर गहरे सवाल उठे हैं —लोग पूछ रहे हैं कि, क्या आस्था की जमीन को सत्संग के नाम पर हड़पने की कोशिश हो रही थी? क्या दो करोड़ का बजट कोई कॉन्ट्रैक्ट डील बन गया था? और क्या EO को ये नहीं पता था कि किस गाटा में क्या दर्ज है — या फिर वो जानते हुए भी अंधे बने बैठे थे?
DM की फटकार बनी सबक, लेकिन सवाल अब भी बाक़ी हैं
फिलहाल, डीएम की दखल ने एक बड़े विवाद को टाल दिया — लेकिन ये घटना ये साफ़ कर गई कि जब तक जनता और मंदिर कमेटियां सजग न रहें, नगर पालिकाओं के नक्शे कहीं भी खिंच सकते हैं। आस्था की ज़मीन अब भू-माफियाओं के प्लानिंग बोर्ड में आ चुकी है — फर्क सिर्फ इतना है कि कभी ये माफिया निजी होते थे, अब इनके पास सरकारी टेंडर और EO की मोहर होती है।


 
         
         
         
        