Sambhal Temple Dispute
Sambhal Temple Dispute ने धार्मिक आस्था और सरकारी मंशा के टकराव को उजागर कर दिया है। माता भगवंतपुरवाली देवी मंदिर, बहजोई (संभल) में मंदिर ट्रस्ट उस सत्संग भवन के निर्माण का विरोध कर रहा है, जो वंदन योजना की दो करोड़ की धनराशि से मेला भूमि पर बिना सहमति के शुरू हुआ है। ट्रस्ट ने नगर पालिका पर अवैध कब्जे और मंदिर सौंदर्यकरण की राशि के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। जबकि प्रशासन अपनी पुरानी आदत के अनुसार आदेशों की गेंद ऊपर-नीचे पास कर रहा है। यह Sambhal Temple Dispute अब सिर्फ निर्माण विवाद नहीं, एक गंभीर धार्मिक-प्रशासनिक टकराव बन चुका है, जिसमें जनता जवाब मांगती है ,और सिस्टम चुप है ।
✍️ संवाददाता: रामपाल सिंह
लोकेशन: संभल
मंदिर में देवी नहीं, अब बुलडोज़र का वास?Sambhal Temple Dispute
“मेला भूमि”, नाम सुनते ही दिमाग में रंग-बिरंगे झूले, प्रसाद की कतार और भक्ति की गूंज आती है…
लेकिन संभल के माता भगवंतपुरवाली देवी मंदिर की मेला भूमि आज सरकारी बुलडोजर और टेंडरधारी ठेकेदारों के हवाले है।
और इस बार ये हनुमान चालीसा नहीं, “निर्माण कार्य प्रारंभ” वाला बोर्ड लेकर आए हैं।

वंदन योजना: भक्ति के नाम पर निर्माण की गड्डी!Sambhal Temple Dispute
मुख्यमंत्री की वंदन योजना के तहत मंदिर परिसर के सौंदर्यकरण के लिए आई 2 करोड़ रुपये की धनराशि, अब ट्रस्ट की नजर में एक ‘ब्यूटी पार्लर से निकली जेसीबी’ बन चुकी है।
क्योंकि सौंदर्यकरण के नाम पर गाटा संख्या 633 की मेला भूमि में बिना मंदिर ट्रस्ट की अनुमति के सत्संग भवन खड़ा किया जा रहा है।
अब सवाल है – देवी के मंदिर का सौंदर्य बढ़ेगा, या मेला भूमि का भू-स्वामित्व बदलेगा?
Sambhal Temple Dispute-ट्रस्ट बोला – “पालिका को भेजिए वापस!”
मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष अरुण गोस्वामी –
“हमने मां भगवंतपुरवाली देवी की पूजा करके धरना शुरू किया है।
और यह पूजा अब सिर्फ आरती की नहीं, धरना की अनुष्ठान बन गई है।”
ट्रस्ट के सदस्यों का कहना है कि मेला भूमि पर सत्संग भवन बनाना धार्मिक आस्था और जमीन के नियमों – दोनों का उल्लंघन है।
ट्रस्ट का आरोप है कि पालिका शासन के पैसे से कब्जे का खेल खेल रही है और शासन-प्रशासन की मिलीभगत से मेला भूमि का नक्शा बदलवाने की कोशिश हो रही है।

Sambhal Temple Dispute-प्रशासन की चुप्पी = स्वीकृति?
ट्रस्ट के बार-बार विरोध और शिकायतों के बावजूद
नगर पालिका, ईओ और डीएम साहब तीनों अब तक
या तो ‘निर्देश दे चुके हैं’ या
‘निर्देश मिलने का इंतजार कर रहे हैं’।
ठेकेदार बोल रहे हैं – “हमें ईओ ने भेजा है।”
ईओ बोल रहे हैं – “डीएम साहब ने कहा है।”
और डीएम साहब शायद भगवंतपुर से ‘डिस्कनेक्ट’ मोड पर हैं।
यह प्रशासनिक गाथा अब सत्संग भवन नहीं, ‘अस्थायी कब्जे की स्थायी कहानी’ बन गई है
Sambhal Temple Dispute🔥 जनता के सवाल:
जब मंदिर के नाम से पैसा आया, तो मेला भूमि क्यों खोदी गई?
जब ट्रस्ट की अनुमति नहीं, तो निर्माण वैध कैसे?
क्या सरकारी योजनाओं का मतलब है – ‘कागज़ पर मंदिर, ज़मीन पर कब्ज़ा’?
🔥Sambhal Temple Dispute
जब मंदिर की घंटियों को कंक्रीट के हथौड़े दबा दें,
जब भक्ति की भूमि को ठेके और टेंडर निगल जाएं,
जब “निर्देशों के नाम पर” घूमाया जाए—
तो समझ लीजिए कि
देवी की मूर्ति वहीं है, लेकिन मंदिर अब पालिका की जेब में है।
मंदिर की चौखट पर बैठे ट्रस्ट के लोग अब आरती नहीं,
अपनी ज़मीन का मोल पूछ रहे हैं।
और जनता सवाल कर रही है –
“आस्था भी अब सरकारी टेंडर से मापी जाएगी क्या?”
