 
                  Sambhal News: वंश गोपाल तीर्थ में जन्माष्टमी पर पूजा का विशेष महत्व
Sambhal News: भगवान कल्कि की नगरी संभल में इस बार जन्माष्टमी का पर्व विशेष उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. नगर के मंदिरों को फूल-मालाओं से सजाया गया और जगह-जगह धार्मिक आयोजन हो रहे हैं. श्रद्धालुओं ने योगिराज भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन को धूमधाम से मनाते हुए पूरे शहर को भक्ति रंग में रंग दिया.
वंश गोपाल तीर्थ बना आस्था का केंद्र
जन्माष्टमी के अवसर पर संभल स्थित भगवान कृष्ण की चरणस्थली वंश गोपाल तीर्थ पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी. सुबह से ही यहां भक्त भगवान की पूजा-अर्चना में लीन दिखे. मंदिर में पालना सजाया गया, जिसमें भगवान कृष्ण को झुलाया गया. धार्मिक मान्यता है कि यहां संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है.

पौराणिक मान्यता से जुड़ा स्थल
पौराणिक ग्रंथों विष्णु पुराण और स्कंद पुराण में वंश गोपाल तीर्थ का उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर उन्हें संभल लेकर आए थे. यहीं कदंब के विशाल वृक्ष के नीचे उन्होंने विश्राम किया था और रुक्मिणी से ये भी कहा था कि उनका अगला अवतार कल्कि रूप में इसी संभल में होगा.
हर युग में अलग नाम से प्रसिद्ध रहा संभल
मान्यता है कि संभल हर युग में अलग-अलग नाम से जाना गया. सतयुग में इसे सत्यवृत, त्रेतायुग में महत्गिरि, द्वापर युग में पिंगल, और वर्तमान में इसे संभल के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि संभल को धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.

तीर्थ और परिक्रमा का महत्व
संभल में कुल अड़सठ तीर्थ और उन्नीस कूप बताए जाते हैं. वंश गोपाल तीर्थ से ही संभल की परिक्रमा प्रारंभ होती है. श्रद्धालु यहाँ स्थित कदंब के वृक्ष की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. कहा जाता है कि यही वृक्ष वह साक्षी है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने विश्राम किया था.

जन्माष्टमी पर संभल का वंश गोपाल तीर्थ न केवल धार्मिक उत्सव का केंद्र है, बल्कि श्रद्धालुओं की आस्था और पौराणिक मान्यताओं का भी साक्ष्य है कल्कि अवतार से जुड़ी मान्यता और भगवान कृष्ण की चरणस्थली के कारण ये तीर्थस्थल देशभर के भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.

 
         
         
         
        