 
                  Hotel Name का वही पुराना फार्मूला फिर चल पड़ा। पिछली बार कोर्ट, झंडा, बैनर – सब चला। इस बार संभल में मीट गायब, पनीर हाजिर, और होटल वाले बोले – ‘साहब सही कह रहे हैं।’कांबड़ यात्रा में नाम भी बचेगा, धंधा भी — पर मीट नहीं!
साहब का वही पुराना Hotel Name फरमान लौट आया
संभल वालों!
साहब ने फिर से वही ताज़ा फरमान सुना दिया — ‘कांबड़ के रास्ते Hotel Name लिखवाओ, नॉनवेज को ताला लगाओ!’
पिछली बार भी यही स्क्रिप्ट चली थी — होटल वाले कोर्ट भागे थे, पोस्टर फाड़े थे, ‘धंधा देखो भाई’ की दुहाई दी थी।
पिछली बार कोर्ट गया था Hotel Name, अब खुद ही बोल पड़े मालिक

याद कीजिए — इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला गया था, दलील दी गई थी ‘ये तो भेदभाव है जी!’
अबकी बार वही संभल के कई मुस्लिम होटल वाले खुद कह रहे हैं — ‘साहब ठीक कह रहे हैं, कांबड़ वाले भक्त नाराज़ नहीं होने चाहिए।’
कई होटल वालों ने तो ‘मीट नहीं मिलेगा, पनीर चलेगा’ वाला बोर्ड भी छपवा लिया। एक ने तो होटल पर ताला ही मार दिया — ‘भक्त खुश तो हम खुश!’
Hotel Name से भक्तों को मिलेगी राहत?
सरकार को लगता है Hotel Name रहेगा तो कांबड़ यात्री बेफिक्र रहेंगे — ‘कहीं गलती से कबाब न खा लें!’
मीट गायब, शाही पनीर हाजिर — यही कांवड़ मेन्यू रहेगा।
और मजेदार ये कि जिस Hotel Name पर पिछली बार हंगामा हुआ, इस बार सब चुपचाप सहमत। विरोधियों को चुप कराने के लिए ‘नाम से पहचान’ वाला फंडा फुल ऑन!
Hotel Name का फायदा, मीट गायब – राजनीति चालू

कांवड़ यात्रा के बहाने Hotel Name फिर से चुनावी पोस्टर जैसा टूल बन गया —
सरकार बोले – ‘आस्था से बड़ा कुछ नहीं।’
विरोधी बोले – ‘मीट हटाकर वोट जोड़ लो।’
होटल वाले बोले – ‘धंधा कटेगा तो कटे, कांबड़ वाला खुश तो सब खुश!’
Hotel Name पर सियासत का गरम तड़का
पिछली बार जब यही Hotel Name वाला फरमान आया था, तब विपक्ष ने तगड़ा हल्ला काटा था — कोर्ट-कचहरी से लेकर टीवी डिबेट तक ‘धर्म के नाम पर दुकान बंदी’ का राग अलापा गया।
सपा से लेकर कुछ सेक्युलर टाइप नेता इसी पर वोटों की रोटी सेंकने निकले थे। मगर इस बार मामला थोड़े अलग साज में पक रहा है — होटलवाले खुद लाइन में हैं, भक्तों को खुश करने को तैयार हैं, और विपक्ष मुंह ताक रहा है — बोलें तो क्या बोलें?
Hotel Name बनेगा पंचायत में वोट बैंक की चाभी?

कांबड़ यात्रा के रास्ते Hotel Name बोर्ड और मीट बैन — ये खेला जितना धार्मिक है, उतना ही पंचायत चुनाव की चौसर भी।
ग्रामीण बेल्ट में कांबड़ यात्री बड़ा वोट बैंक हैं — सत्ताधारी खेमा जानता है कि Hotel Name से भक्त खुश, पंचायत की गद्दी पक्की!
इस बार विरोध में खड़ा होने वाला भी डर रहा है — कहीं पनीर के चक्कर में वोट न उड़ जाएं।
मतलब साफ — Hotel Name का बोर्ड जितना चमकेगा, उतना ही सरकार का खाता भी!

 
         
         
         
        