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Sambhal Beggar Rehabilitation: भीख मांगने वालों को मकान, रोजगार और बच्चों की शिक्षा का सहारा
लोकेशन-संभल। संवाददाता-रामपाल सिंह
कभी सड़क किनारे झोली फैलाकर लोगों की रहमत का इंतज़ार करते ये चेहरे, अब आत्मसम्मान से जीना सीख रहे हैं। उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में जिला प्रशासन ने जो किया है, वह न केवल एक प्रशासनिक पहल है, बल्कि इंसानियत का सबसे भावुक उदाहरण है। इस पहल का नाम है – beggar rehabilitation.
146 परिवार, 146 कहानियाँ — आँसुओं से संघर्ष तक का सफर
जिले में सर्वे के दौरान प्रशासन को 146 ऐसे परिवार मिले जो भीख मांगकर पेट भर रहे थे। इनमें मासूम बच्चे, बुज़ुर्ग और महिलाएं सभी शामिल थे। लेकिन अब इनकी ज़िन्दगी बदल रही है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि भीख मांगने वालों को प्रशासन मकान, रोजगार और बच्चों की पढ़ाई जैसी बुनियादी ज़रूरतें इतनी संवेदनशीलता से देगा। इसे ही कहते हैं असली beggar rehabilitation.
डीएम की दिल छू लेने वाली पहल: बच्चों को मिली शिक्षा की रोशनी
संभल के डीएम ने बताया कि जिले में भीख मांगने वाले 264 बच्चों के लिए अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था शुरू की गई है। ये वही बच्चे हैं जो कभी किताबों को सिर्फ दुकानों की खिड़कियों में देखा करते थे। अब उन्हीं के हाथों में स्लेट और पेन है। जब कोई बच्चा पहली बार “अ आ इ” बोलता है, तो सिर्फ अक्षर नहीं, उम्मीदें जागती हैं। जिलाधिकारी की इस कोशिश पर ये कहना तो बनता है, किये है असली beggar rehabilitation ।
अस्थाई नहीं, स्थायी समाधान: मकान, रोजगार और आत्मनिर्भरता की राह
प्रशासन ने अब तक 29 परिवारों को अस्थाई आवास भी उपलब्ध कराए हैं। पुरुषों को स्किल डेवलपमेंट के ज़रिए काम पर लगाया जा रहा है और महिलाओं को माइक्रो फाइनेंस के ज़रिए छोटी-छोटी स्वरोजगार योजनाओं में जोड़ा जा रहा है। यह कोई सरकारी औपचारिकता नहीं, बल्कि ज़िंदगी की नई शुरुआत है।
जब संस्थाएँ बनीं फरिश्ता
इस पहल में जिले की दो सामाजिक संस्थाएँ और एक सुगर फैक्ट्री भी साझेदार बनीं। किसी ने शिक्षा का जिम्मा उठाया, किसी ने राशन दिया तो किसी ने रोजगार के संसाधन जुटाए। यह एक beggar rehabilitation मॉडल बनता जा रहा है जो पूरे देश के लिए मिसाल है।
एक अपील – ज़रा नज़र घुमाइए, शायद कोई ज़िंदगी आपको पुकार रही हो
डीएम ने अपील की है कि अगर किसी को भी कोई भीख मांगता बच्चा या परिवार दिखे, तो फौरन प्रशासन को सूचना दें। यह अपील केवल प्रशासनिक कदम नहीं है, यह इंसानियत का आह्वान है। शायद हम सब मिलकर किसी की ज़िंदगी बदल सकें।
जब सरकार संवेदनशील होती है, तब बदलाव मुमकिन होता है
संभल की यह beggar rehabilitation पहल सिर्फ नीति नहीं, करुणा है। यह उस बच्चे की मुस्कान है जो अब स्कूल जा रहा है, उस माँ की राहत है जो अब हाथ फैलाने के बजाय हाथ से कुछ बना रही है, और उस पिता की उम्मीद है जो अब मजदूरी से अपने बच्चों को खाना खिला पा रहा है। अगर इसे एक प्रशासनिक नहीं, मानवीय क्रांति कहें तो गलत नहीं होगा।

 
         
         
         
        