
Sambhal Accident
संभल में दर्दनाक हादसा, ट्रक की टक्कर में एक युवक की मौत, पीछे छूट गए तीन मासूम चेहरे और एक बेबस मां।
📍 लोकेशन,संभल
🎤रिपोर्टर,रामपाल सिंह
Sambhal Accident:जब घर लौटते रास्ते पर सांसें थम गईं…
मंगलवार की सुबह संभल जिले में मुरादाबाद-आगरा हाईवे पर एक ऐसा हादसा हुआ जिसने सुल्तानपुर खुर्द गांव की पूरी रफ्तार थाम दी। 25 साल का राजेश यादव चन्दौसी से लौट रहा था, तभी सोत नदी के पुल के पास उसकी कार को तेज रफ्तार ट्रक ने सामने से टक्कर मार दी(Sambhal Accident)। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि कार का अगला हिस्सा चकनाचूर हो गया।
अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टर ने जो कहा, उसने एक मां की ममता, पत्नी का सुहाग और तीन मासूमों की ज़िंदगी छीन ली — “अब ये नहीं रहा…”
एक ‘पिता,एक पति’ का सफर सड़क पर ही खत्म हो गया।
Sambhal Accident:अब किसे कहेंगे “पापा”?
राजेश अपने पीछे तीन बच्चे छोड़ गया है — 6 साल का बड़ा बेटा, 4 साल का मंझला और सिर्फ एक साल का छोटा बच्चा। तीनों को नहीं पता कि अब उनके लिए “पापा” सिर्फ एक नाम रह गया है, एक तस्वीर रह गई है।
राजेश खेती करता था। वही कमाता था, वही घर चलाता था। बीवी बब्ली अब बार-बार बेहोश हो रही है। अस्पताल की ज़मीन पर गिरती है, फिर उठती है — लेकिन सवाल वही रहता है — अब इन बच्चों का क्या होगा?
हादसे ने नहीं, हालातों ने मारा है
बताया जा रहा है कि, राजेश सोमवार को गुन्नौर में शादी में गया था। वहीं से भाई के साले को छोड़ने चन्दौसी गया और मंगलवार सुबह लौटते वक़्त ये हादसा हो गया। गांव के लोगों ने कहा — “राजेश बहुत शरीफ लड़का था। ज़िम्मेदार, मेहनती, और परिवार को लेकर बेहद सजग।”
अब सरकार की चुप्पी, प्रशासन की उदासीनता और सिस्टम की सर्द हवा इस घर में सिर्फ आंसू छोड़ गई है।
किसे परवाह कि तीन छोटे बच्चे अब बाप के बिना कैसे पलेंगे? कौन उनके स्कूल की फीस भरेगा? कौन उन्हें खिलाएगा? कौन उन्हें बचपन देगा?
अब तस्वीरें मुस्कराती हैं, लोग नहीं
राजेश की एक मुस्कुराती तस्वीर अब दीवार पर टंगी है। घर में सिर्फ सन्नाटा है। तीनों बच्चे बार-बार दरवाज़े की तरफ देखते हैं — शायद पापा आ जाएं। लेकिन अब वहां सिर्फ सन्नाटा है, सिर्फ मां के आंसू हैं।
ये सिर्फ एक मौत नहीं, एक पिता की गैरमौजूदगी है — जो हर रोज़, हर पल खलेगी।
Sambhal Accident:कौन उठाएगा ज़िम्मेदारी?
सरकार और प्रशासन की तरफ से अब तक कोई मदद की घोषणा नहीं हुई है। क्या इन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी सिर्फ उनकी मां की रह जाएगी? या कोई आगे आएगा?
इस घर को अब सिर्फ मदद नहीं, सहारा चाहिए। किसी की मौत का आंकड़ा बन जाने के बजाय राजेश की कहानी चेतावनी बननी चाहिए — उन बेपरवाह ट्रकों और अनदेखी सुरक्षा व्यवस्थाओं के खिलाफ।