
RiverDrowning
River Drowning: आस्था हर साल बहती है, और लापरवाही हर साल लाश छोड़ जाती है!
लोकेशन-फिरोजाबाद। संवादादता-मुकेश कुमार बघेल
River Drowning :गंगा दशहरा पर जहाँ आस्था की डुबकी लगती है, वहीं प्रशासन की लापरवाही ने इस बार 16 साल के मासूम रोहित की जान ले ली। पवित्र जल में नहाने गया रोहित, लाश बनकर घर लौटा। और प्रशासन? वह वहीं था जहाँ हर बार होता है – अपनी अकर्मण्यता में गुम, संवेदनाओं से लाचार और जवाबदेही से भागता हुआ।

River Drowning: जब वर्दी सिर्फ फोटो खिंचवाने आती है
आप सोच रहे होंगे कि पुलिस घाट पर मौजूद थी, तो मदद क्यों नहीं मिली? क्योंकि River Drowning का मुकाबला करने के लिए हमारे सिस्टम में सिर्फ वर्दी है, इंसानियत में नहीं। किशोर के डूबने पर मदद के लिए चीखते लोगों को पुलिस ने देखा ज़रूर, लेकिन मदद के नाम वो बूत बना सब कुछ बस देखता रहा। कहा तो यहां तक जा रहा है कि, घटना स्थल पर मौजूद पुलिसकर्मी लड़के को बचाने के बजाए पूरी घटना का वीडियो बना रहा था।
River Drowning: जब प्रधान बना रक्षक, और सरकार बना दर्शक
पुलिस की ऐसी संवेदनहीनता देख गांव का प्रधान मसीहा के रूप में सामने आया। फौरन तैराक को बुलवाकर रोहित को पानी से निकलवाया,लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
शव को लेकर परिजनों ने प्रशासन को दिखाया आइना

रोहित को पहले सरकारी ट्रामा सेंटर ले जाया गया –जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।परिजनों का दिल नहीं माना, तो प्राइवेट सेंटर भागे – लेकिन वहां भी मौत अटल रही।इसके बाद पुलिस ने पोस्टमार्टम की बात छेड़ी – और बस, यहीं से शुरू हुआ वो गुस्सा जिसने प्रशासन को आईना दिखाया। River Drowning अब एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं रही – यह सिस्टम के सड़ांध मारते शव की सार्वजनिक शवयात्रा बन गई।
River Drowning: जब हाईवे बना विरोध की गूंज
गुस्साए परिजन शव को लेकर हाईवे पर उतर आए, और फिर पुलिस का “शो ऑफ फोर्स” शुरू हुआ। कई थानों की फोर्स,लाउडस्पीकर, सीओ और नगर मजिस्ट्रेट—सब पहुंच गए, लेकिन तब, जब रोहित की सांसें थम चुकी थीं। आखिर इतनी देर क्यों? क्योंकि River Drowning के लिए हमारे सिस्टम के पास रोकथाम की नहीं, सिर्फ ‘हैंडलिंग’ की व्यवस्था है।

फिरोजाबाद में मरा एक किशोर, मगर जलकर खाक हुआ पूरा तंत्र
किसी का बेटा गया, किसी मां की गोद सूनी हुई—लेकिन सरकार के लिए ये सिर्फ एक आंकड़ा है।River Drowning जैसे मामलों में प्रशासन की जवाबदेही तय क्यों नहीं होती? क्या हर साल एक नई लाश चाहिए यमुना से, ताकि कोई फाइल खुल सके?या फिर हर बार जनता को खुद ही उतरना होगा मैदान में – ताकि उन्हें बताना पड़े कि जिंदा रहना उनका अधिकार है, सरकारी एहसान नहीं!

River Drowning नहीं, ये सिस्टम का हत्या प्रमाणपत्र है!
यह घटना सिर्फ एक डूबने का मामला नहीं है, ये प्रमाण है कि जब इंसान डूबता है, तो उसके साथ पूरा तंत्र भी सड़ा हुआ होता है।
River Drowning अब सिर्फ पानी में बहना नहीं – ये सत्ता की संवेदनहीनता में डूब जाना है।और अगर अब भी किसी अफसर की कुर्सी नहीं हिली, तो अगला नंबर किसका होगा – ये बताने की ज़रूरत नहीं!
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