UP पंचायत चुनाव से पहले सपा–कांग्रेस की दोस्ती टूटने का कारण जानिए !
उत्तर प्रदेश (UP) की सियासत में एक बार फिर करवट बदल रही है। 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती देने वाली सपा–कांग्रेस की जोड़ी अब पंचायत चुनाव से पहले ही अलग हो गई है। जिस “दो लड़कों की जोड़ी” की चर्चा खूब होती थी, वही जोड़ी आज पंचायत चुनाव के मोर्चे पर बिखरी दिखाई दे रही है।

कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वो यूपी पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी, जबकि सपा पहले ही इन चुनावों से दूरी बनाने का संकेत दे चुकी है। दिलचस्प बात ये है कि सिर्फ सपा-कांग्रेस ही नहीं, बल्कि एनडीए के सहयोगी दल भी बीजेपी से अलग अकेले मैदान में उतरने का मन बना चुके हैं। इससे 2026-27 की राजनीतिक आंधी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
UP में इसलिए टूटी सपा-कांग्रेस की दोस्ती !
दिल्ली में सोनिया गांधी के आवास पर हुई बैठक के बाद कांग्रेस ने यूपी पंचायत चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया। पार्टी मानती है कि ये चुनाव उसके लिए अपनी जमीनी ताकत नापने का सबसे बड़ा मौका है।
कांग्रेस का मानना है कि गठबंधन के तहत पंचायत चुनाव लड़ने से उसका संगठन बढ़ नहीं पाएगा और कार्यकर्ताओं को मौक़े नहीं मिल पाएंगे। इसलिए पार्टी ने पंचायत स्तर पर अपनी अलग पहचान और राजनीतिक जमीन मजबूत करने का फैसला लिया है।

हालांकि 2027 विधानसभा चुनाव के लिए सपा और कांग्रेस अभी भी गठबंधन के पक्ष में बताई जा रही हैं, लेकिन पंचायत चुनाव के नतीजे ये तय करेंगे कि ये दोस्ती आगे कितनी कायम रहती है।
UP में एनडीए के सहयोगी भी BJP से अलग क्यों लड़ रहे?
बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस), आरएलडी, निषाद पार्टी और सुभासपा—चारों ने पंचायत चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा कर दी है।
इसके पीछे प्रमुख कारण हैं:
- संगठन की ताकत को स्वतंत्र रूप से परखना
- अपनेकार्यकर्ताओं को अधिक टिकट देना
- 2027 विधानसभा चुनाव से पहलेबार्गेनिंग पावर बढ़ाना
- पंचायत स्तर से जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को साधना

हालांकि पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं होते, लेकिन जिला पंचायत सदस्य और अध्यक्ष के चुनाव में दलों की सक्रियता उनकी स्थानीय पकड़ को उजागर करती है।
UP पंचायत चुनाव कब होंगे?
राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अप्रैल से जुलाई 2026 के बीच होने हैं।
- ग्राम प्रधानों का कार्यकाल:26 मई 2026
- ब्लॉक प्रमुखों का कार्यकाल:19 जुलाई 2026
- जिला पंचायत अध्यक्षों का कार्यकाल:11 जुलाई 2026
यूपी में लगभग:
- 57,694 ग्राम पंचायतें
- 74,345 बीडीसी सदस्य
- 3,011 जिला पंचायत सदस्यचुने जाएंगे।
ये आंकड़े बताते हैं कि पंचायत चुनाव कितना विशाल और राजनीतिक रूप से निर्णायक है।
क्यों सभी दल अपनाए हुए हैं ‘एकला चलो’ की रणनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यूपी पंचायत चुनाव को 2027 विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
मुख्य कारण हैं:
1. जमीनी स्तर पर ताकत मापने का अवसर
पंचायत चुनाव दलों को बूथ और गांव स्तर पर अपनी असल ताकत जानने का मौका देता है।
2. कार्यकर्ताओं को मौका
गठबंधन में टिकट बंटवारे की समस्या रहती है। इसलिए दल पंचायत चुनाव में अकेले उतरकर अपने वफादार कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारते हैं।
3. 2027 के लिए जातीय समीकरण मजबूत करना
यूपी में विधानसभा की दो-तिहाई सीटें ग्रामीण इलाकों में हैं। पंचायत चुनाव इन क्षेत्रों का राजनीतिक मूड साफ कर देते हैं।
4. राजनीतिक मोलभाव बढ़ाना
जो दल पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेगा, उसकी 2027 के लिए बार्गेनिंग पावर बढ़ जाएगी—चाहे गठबंधन में हो या बाहर।
UP में क्या पंचायत चुनाव ही तय करेंगे 2027 का रास्ता?
पंचायत चुनाव से मिलने वाला वोट पैटर्न दलों को ये समझने में मदद करता है कि:
- कौन-सी जातियों में पकड़ मजबूत है?
- किन क्षेत्रों में प्रदर्शन अच्छा या कमजोर रहा?
- कौन-से चेहरे 2027 में विधानसभा उम्मीदवार बन सकते हैं?
अगर कोई दल पंचायत चुनाव में दम दिखाता है, तो उसकी राह 2027 तक काफी आसान हो जाती है।
यूपी की राजनीति में पंचायत चुनाव सिर्फ स्थानीय चुनाव नहीं, बल्कि 2027 की बड़ी जंग का ट्रेलर हैं। सपा-कांग्रेस की दोस्ती में दरार हो या एनडीए के सहयोगियों का “एकला चलो”—हर दल अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में जुटा है। पार्टी सिंबल भले न हों, लेकिन ये चुनाव तय करेंगे कि कौन 2027 में कितना दम रखता है।
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