
RCP-Pk
बिहार चुनाव से पहले इस बार सियासत में कुछ अलग ही बयार बह रही है। ये बयार ऐसी है जो सालों पुराने कट्टर दुश्मनों को दोस्त बना दे रही है। वो दुश्मन जिनके कभी दोस्त बनने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी,वो आज सत्ता के लिए एक दूसरे के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। पुरानी दुश्मनी भूलाकर एक दूसरे से गले मिल रहे हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है, RCP-Pk के साथ। सियासत के ये दो योद्धा अब एक हो गए हैं। लेकिन सवाल उठता है कि, ये किस गठबंधन को फायदा और किसको नुकसान पहुंचाने के मकसद से एक हुए हैं।

पटना: जब भी किसी राज्य में चुनाव होता है, या फिर सरकार बननी होती है, तो बहुत कुछ ऐसा देखने को मिलता है, जो आपकी सोच से हटकर होता है। बिहार में होने वाले चुनाव से पहले भी कुछ ऐसा ही समीकरण दिखाई पड़ रहा है। 2025 का बिहार चुनाव कई कारणों से याद किया जाएगा। मसलन अगर महागठबंधन की बात करें, तो यहां इस बार सब कुछ आरजेडी के हाथों में फिलहाल तो दिखाई नहीं पड़ रहा है। कांग्रेस भी फ्रंटफुट पर बैंटिग करती हुई दिखाई पड़ रही है। अपना जनाधार बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने कन्हैया को आगे किया है।

राहुल की हर महीने सभा या रैली आयोजित की जा रही है। जिससे आने वाले वक्त में आरजेडी पर दबाव बनाया जा सके। इधर एनडीए में ऐसे तो सब कुछ ठीक है। लेकिन आला कमान की तरफ से यहां भी मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के नाम का ऐलान नहीं किया गया है। हां नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात जरूर कही जा रही है। लेकिन इन सबके अलावा जिस कारण से बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को याद किया जाएगा। उसकी वजह RCP-Pk की दोस्ती। जिसकी कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी।
कैसे साथ आ गए दो धुर विरोधी?
इस समय बिहार की सियासत में अगर किसी चीज की चर्चा है तो वो है RCP-Pk के साथ आने की। अभी भी बिहार के लोगों को इस बात का यकीन नहीं हो रहा है कि, सियासत के दो किनारे एक हो गए हैं। यहां सवाल उठता है कि, आखिर ऐसा क्या था जो RCP-Pk को साथ ले आया। और इन दोनों को साथ लाने में पर्दे के पीछे कौन है। क्या ये पूरी सियासत महागठबंधन ने बिछाई थी, या फिर तेजस्वी और राहुल की धार कम करने के लिए एनडीए ने ये सियासी ताना बाना बुना है।

फिलहाल अभी ये तस्वीर साफ नहीं हो पाई है कि, ये खेला आखिर कैसे हुआ है।लेकिन जिसने भी इसकी बिसात बिछाई है, उसने बहुत सोच-समझकर चाल चली है, ये तय है। बता दें कि, नीतीश कुमार ने जब RCP को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था, तो उन्होंने बिहार में संगठन को मजबूत करने के लिए बहुत काम किया था।लेकिन जैसे ही नीतीश ने प्रशांत किशोर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष(Pk )बनाया। दोनों के बीच 36 का आंकड़ा हो गया। जिसका असर पार्टी पर भी दिखा, और आखिरकार सीएम नीतीश ने दोनों को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
नीतीश की दी चोट से घायल हैं RCP- Pk
जैसा कि आप जानते हैं कि,RCP-Pk दोनों ही नेता जेडीयू और नीतीश कुमार से खैर खाए हुए हैं। लिहाजा नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करना इन दोनों नेताओं के मिलन का पहला उद्देश्य हो सकता है। इसके लिए प्रशांत किशोर(Pk )ने जनसुराज नाम से पार्टी बनाई थी..लेकिन अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ सकता..शायद ये बात Pk को समझ में आ गई। तभी उन्होंने अपने धुर विरोधी RCP की पार्टी को अपने साथ मिला लिया।जिससे कि, नीतीश की जड़ को कमजोर किया जा सके। लेकिन सियासी पंडित मानते हैं कि, असल खिचड़ी कुछ और है। राजनीतिक जानकारों की माने तो RCP- Pk के साथ आने से नीतीश कुमार के वोट में फर्क पड़े न पड़े,लेकिन बीजेपी को मजबूती जरूर मिलेगी।
महागठबंधन पर भारी न पड़े जाए RCP- Pk की जोड़ी
वहीं अगर महागठबंधन की बात करें, तो इस गठबंधन से कहीं कहीं उसे भी खतरा है,क्योंकि Pk युवाओं को अपनी तरफ खींच रहे हैं। उनके साथ कुछ अनुभवी नेता भी जुड़ गए हैं। यानि प्रशांत किशोर के पास सियासी कौशल के साथ युवाओं की टीम भी है।जो आरजेडी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। अब देखना ये होगा कि, चुनाव के वक्त RCP-Pk किस दल के लिए घातक और किस दल के लिए फायदेमंद साबित होते हैं। और क्या इन दोनों के साथ आने से बिहार में बीजेपी का मकसद पूरा होगा? कहने का सार क्या है, आप जैसे समझदार पाठक आसानी से समझ सकते हैं।