
रेप पीड़िता
लखनऊ के आलमबाग मेट्रो स्टेशन के नीचे 4 जून 2025 की रात एक ढाई साल की बच्ची रेप पीड़िता बन गई। इस दिल दहलाने वाली घटना ने न केवल मानवता को शर्मसार किया, बल्कि समाज, कानून और व्यवस्था के चेहरे से नकाब उतार दिया। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में रेप पीड़िता की सर्जरी हुई, लेकिन उसकी हालत इतनी नाजुक है कि डॉक्टरों के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें साफ दिखती हैं। यह कहानी सिर्फ एक मासूम की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की है जो बार-बार ऐसी घटनाओं को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है।
रेप पीड़िता की हालत: चिकित्सकीय चुनौती और तथ्य
रेप पीड़िता की हालत इतनी गंभीर थी कि उसके शरीर के नाजुक हिस्सों में गहरे जख्म थे। मेडिकल भाषा में इसे ‘थर्ड डिग्री इंजरी’ कहा गया, जिसे डॉक्टर ‘सबसे जटिल’ मामला मानते हैं। बच्ची के मूत्रमार्ग, मलमार्ग और गर्भाशय को गंभीर नुकसान पहुंचा था, जिससे इन्फेक्शन का खतरा कई गुना बढ़ गया है।बच्ची को लगातार निगरानी में रखा जा रहा है,अभी एक हफ्ते और उसके लिए काफी क्रिटिकल हैं।
ये कोई पहला मामला नहीं है, साल दर साल रेप के आकंड़े बढ़ रहे हैं,जो पुलिस प्रशासन की सच्चाई बयां कर रहे हैं।
आंकड़े जो सच्चाई बयां करते हैं
बढ़ते अपराध: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2023 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल करीब 31,000 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें से 12% पीड़ित 14 साल से कम उम्र के बच्चे हैं।उत्तर प्रदेश में 2023 में 16,500 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज हुए, जो देश में सबसे ज्यादा हैं।
नाबालिगों पर खतरा: NCRB के मुताबिक, 2023 में 4,000 से अधिक नाबालिग रेप पीड़िताओं के मामले सामने आए, जिनमें से 20% मामले 6 साल से कम उम्र के बच्चों के थे।
न्याय में देरी: POCSO एक्ट के तहत फास्ट-ट्रैक कोर्ट होने के बावजूद, 65% मामले 1 साल से अधिक समय तक लंबित रहते हैं।
कानून-व्यवस्था की नाकामी: रेप पीड़िता के सवाल
आलमबाग जैसे व्यस्त इलाके में रेप पीड़िता के साथ ऐसी बर्बरता ने पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। सीसीटीवी फुटेज में दिखा कि आरोपी बच्ची को गोद में उठाकर ले गया, लेकिन कोई उसे रोक नहीं सका। पुलिस ने 24 घंटे में आरोपी का एनकाउंटर कर दिया, लेकिन क्या यह इंसाफ है?
सुरक्षा की कमी: लखनऊ जैसे शहर में रात 2:50 बजे मेट्रो स्टेशन जैसे सार्वजनिक स्थान पर पुलिस गश्त क्यों नहीं थी? सीसीटीवी की निगरानी क्यों नाकाम रही?
प्रशासनिक ढील: उत्तर प्रदेश में 2023 में बलात्कार के 16,500 मामलों में से केवल 25% में सजा हुई। बाकी मामलों में या तो सबूतों की कमी थी या जांच में लापरवाही।
सामाजिक जिम्मेदारी: समाज की चुप्पी भी उतनी ही जिम्मेदार है। कोई राहगीर, कोई दुकानदार, कोई गार्ड—क्यों नहीं रुका?
रेप पीड़िता की जंग: एक मासूम की पुकार
रेप पीड़िता की मासूम आंखें आज हमसे सवाल कर रही हैं। वह बच्ची, जिसने अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखा, आज दर्द और तकलीफ की गहरी खाई में है। KGMU के डॉक्टर दिन-रात उसकी सांसों को बचाने में जुटे हैं, लेकिन यह जंग सिर्फ चिकित्सकीय नहीं, सामाजिक और कानूनी भी है।
चिकित्सकीय चुनौती: KGMU में निशुल्क इलाज एक उम्मीद की किरण है, लेकिन बच्ची की नाजुक हालत और भविष्य की जटिल सर्जरी चिंता का विषय हैं।
सामाजिक दायित्व: हमें बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए जागरूकता अभियान, गुड टच-बैड टच की शिक्षा, और सख्त निगरानी की जरूरत है।
कानूनी सुधार: POCSO एक्ट को और प्रभावी बनाने के लिए त्वरित जांच और सजा की प्रक्रिया को मजबूत करना होगा।
क्या है समाधान?
सुरक्षा बढ़ाएं: सार्वजनिक स्थानों पर सीसीटीवी, लाइटिंग और पुलिस गश्त को अनिवार्य करें।
जागरूकता अभियान: स्कूलों और समुदायों में बच्चों और अभिभावकों को सुरक्षा के प्रति जागरूक करें।
कठोर सजा: रेप पीड़िता के मामलों में बिना देरी के सजा सुनिश्चित हो।
समाज का योगदान: हर नागरिक को ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठानी होगी। चुप्पी अपराध को बढ़ावा देती है।
रेप पीड़िता के लिए इंसाफ की लड़ाई
यह ढाई साल की रेप पीड़िता सिर्फ एक बच्ची नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी का प्रतीक है। उसकी जिंदगी की जंग KGMU के बेड पर जारी है, लेकिन असली जंग सड़कों, थानों और समाज में लड़ी जानी है। आइए, इस मासूम के लिए प्रार्थना करें और एक ऐसे समाज के लिए काम करें जहां कोई बच्ची रेप पीड़िता न बने। यह हमारा खुद से वादा होना चाहिए—