 
                  पूरनपुर के missing villages ने साबित कर दिया कि कागज़ी नक्शा भी इंसाफ नहीं कर पाया। किसानों की जमीनें रहस्यमयी अंदाज़ में गायब हैं और भू-माफिया ठहाके लगा रहा है। प्रशासन कागज़ ढूंढ रहा है और गांव वाले खेत!
गांव गायब! Missing Villages ने कर दिया Mystery
गांव मौजूद,लेकिन नक्शा गायब, अरे भाई, ये क्या तमाशा है? पीलीभीत के पूरनपुर तहसील में 11 गांवों के राजस्व नक्शे गायब हो गए, जैसे WhatsApp से पुराना Status — कब डिलीट हो गया, किसी को खबर नहीं!जैसे कोई जादूगर आया और नक्शों को हवा में उड़ा ले गया!कुछ खबरों में सात गांवों की बात है, तो कुछ में ग्यारह। अब ये सात-ग्यारह का खेल क्या है, ये तो प्रशासन ही जाने। लेकिन हकीकत ये है कि खमरिया पट्टी, मुजफ्फरनगर, किशनपुर, खिरकिया बरगदिया, नवदिया मुस्तकीन, नरायणपुर, गदिहर, चतीपुर, भगवतीपुर, बबरौआ और बागर — जैसे गांवों के नक्शे गायब हैं,मतलब नाम तो हैं, पर कागज़ों में नहीं! हां, कुछ स्रोतों में सिंघाड़ा उर्फ ताटरगंज, बैलहा, और बमनपुर भगीरथ का भी जिक्र है। यानी, गड़बड़झाला पूरा है! किसान हैरान हैं — “हम खेत में खड़े हैं, फसल लहरा रही है… पर सरकार कह रही है — ‘तुम तो नक्शे में ही नहीं!’
किसान बोले – “जमीन हमारी, पर सरकार का नक्शा छुट्टी पर!”
ये नक्शे कोई छोटा-मोटा कागज नहीं, जनाब! ये वो दस्तावेज हैं, जो बताते हैं कि किसकी जमीन कहां है, कितनी है, और कौन उसका मालिक है। लेकिन पूरनपुर में तो ये नक्शे पिछले 20 साल से लापता हैं, नक्शा गायब होने से किसानों की हालत ऐसी हो गई जैसे दूल्हा बारात लेकर पहुंचा हो, लेकिन मंडप का पता ही न मिले! कोई कहे – “अब खेत नापें कैसे?” तो कोई बोले – “भैया, बेचें कैसे?” खमरिया पट्टी, मुज़फ्फरनगर, किशनपुर के लोग माथा पकड़कर पूछ रहे – “हम तो यहीं हैं, पर सरकारी कागज़ पर कौन से ग्रह में हैं?”
भू-माफिया बोले – “Missing Villages का मज़ा ही कुछ और है!”
जहाँ अफसरान की सांस फूली, वहीं भू-माफिया ने जश्न मना लिया। नक्शा नहीं? तो सीमा भी नहीं! तालाब, चारागाह, गाँव की जमीन – सब पर जिसने जहां चाहा, कब्जा कर लिया। एक बाबू तो मोबाइल में नक्शा रखकर ऐसे घूमता है जैसे Tinder प्रोफाइल हो – जिसे चाहा, दिखा दिया! असली नक्शा है या Photoshop? भगवान जाने!
सरकारी प्रेस से इलाहाबाद तक – Missing Villages की तलाश में सरकारी यात्रा
मामला और दिलचस्प तब हुआ, जब तहसील की टीम रुड़की की सरकारी प्रेस में जा पहुंची। वहां से जवाब आया – “नक्शा तो इलाहाबाद गया था।” इलाहाबाद वालों ने कंधे उचकाए – “हमारे पास क्या खाक आएगा!” अफसर हाथ मलते लौट आए। गांव वहीं-के-वहीं, और नक्शा.. वो तो आज भी Missing Villages के WhatsApp ग्रुप में खोजा जा रहा है!
Missing Villages पर तहसीलदार का नया स्क्रिप्ट
तहसीलदार हबीबउर रहमान साहब बोले – “नक्शा नहीं मिला? तो नया बनवाएंगे!” किसानों ने सिर खुजाया – “नया नक्शा बनेगा, मगर पुराना खेत कहां मिलेगा?” अब हालत ये – गांव गायब, नक्शा गायब और भरोसा भी गायब! सरकारी दफ्तर में सिर्फ आश्वासन की फोटोकॉपी दिख रही है।
Missing Villages: चौपाल की चटपटी गपशप
गांव की चौपाल पर अब नई ठिठोली चल रही है —
“अरे काका, गांव नक्शे से गायब हो गया?”
काका बोले — “अरे बेटा, गांव तो यहीं है, नक्शा जेब में भू-माफिया के पल्लू में बंधा घूम रहा है!”
बच्चे हंसी उड़ाते — “दद्दा, कहीं गांव भी दिल्ली-मुंबई घूमने तो नहीं गया?”
चौधरी तंज कसते — “सरकारी अफसर लोग कह रहे हैं खोज जारी है, लेकिन लगता है गांव को भी सरकारी नौकरी मिल गई — आना ही नहीं वापस!”
गांव के बुजुर्ग बोले — “जब तक नक्शा नहीं मिलेगा, Missing Villages ऐसे ही किस्सों में जिंदा रहेंगे — असली खेत पर तो किसी और का झंडा फहर रहा है!”
आखिर Missing Villages को ढूंढेगा कौन?
तो भइया, पूरनपुर तहसील के Missing Villages अब मजाक भी हैं और सिरदर्द भी। किसान, अफसर, मीडियावाले सब घूम रहे हैं। कहीं नक्शा प्रिंटर में तो नहीं फंसा? या भू-माफिया ने पुराना पेपर चाय बनाने में लगा दिया? जो भी हो, गांव वाले परेशान हैं – और Missing Villages का रहस्य जस का तस!

 
         
         
         
        