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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: तेजस्वी पर Prashant Kishor का तीखा हमला – निशाने पर नीतीश भी
Bihar Assembly Election 2025 की सरगर्मी के बीच सियासी बयानबाजी चरम पर पहुंचती दिख रही है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के “सूत्र” वाले बयान पर तीखा पलटवार किया है। Prashant Kishor ने Tejashwi Yadav की भाषा को “अशोभनीय” करार दिया।
ये कलम नहीं, कट्टा वाले लोग – Prashant Kishore
सुपौल के छातापुर में अपनी बिहार बदलाव यात्रा के दौरान पत्रकारों से बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा – “तेजस्वी यादव की भाषा उनके संस्कार, संस्कृति और बैकग्राउंड को दर्शाती है। उनसे ऐसी ही भाषा की उम्मीद की जा सकती है। ये लोग कलम वाले नहीं – कट्टा वाले हैं।” उन्होंने तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद यादव के शासनकाल का जिक्र करते हुए कहा कि उस दौर में बिहार को “कट्टा, अपहरण और लूटमार” के लिए जाना जाता था। Prashant Kishor ने चेतावनी दी कि अगर RJD सत्ता में आई – तो बिहार फिर से “कट्टा बेचने वाला और लूटमार वाला प्रदेश” बन जाएगा।

Prashant Kishore का नीतीश कुमार पर भी तंज
Prashant Kishor ने मुख्यमंत्री Nitish Kumar पर भी गंभीर आरोप लगाए। Prashant Kishor ने दावा किया कि नीतीश अब “शारीरिक और मानसिक रूप से अचेत अवस्था” में हैं और उनके करीबी तीन-चार भ्रष्ट अफसर और नेता राज्य को लूट रहे हैं। Prashant Kishor ने कहा – “नीतीश सरकार में अब न इच्छाशक्ति है, न नैतिकता। पुलिस पंगु है, जनता असुरक्षित है, और नेतृत्व भ्रमित। जब तक बिहार को नया मुखिया नहीं मिलेगा, हालात और बिगड़ेंगे।” उन्होंने जन सुराज को बिहार की जनता के लिए एकमात्र विकल्प बताया।
तेजस्वी का ‘सूत्र-मूत्र’ बयान – बड़ा सियासी संग्राम
Tejashwi Yadav ने 13 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘सूत्र-मूत्र’ वाला बयान दिया था। मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं पर सवाल उठाने वाले “सूत्रों” को तेजस्वी ने “मूत्र” कहा और तब से उनके इस बयान पर भारी विवाद हो रहा है। Tejashwi Yadav ने कहा था – “ये वही सूत्र हैं जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान लाहौर, कराची और इस्लामाबाद पर कब्जा किया था। हम ऐसे सूत्रों को मूत्र मानते हैं – जिससे दुर्गंध फैलती है।”
Bihar Election – बीजेपी और जेडीयू का भी पारा गरम
Tejashwi Yadav के बयान पर बीजेपी और जेडीयू ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। बीजेपी ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री निखिल आनंद ने तेजस्वी की शिक्षा पर सवाल उठाते हुए कहा – “तेजस्वी सूत्र को मूत्र मानते हैं, तो हम उनके ज्ञान को कचरा मानते हैं। उनकी सीमित शिक्षा के कारण ऐसी जुबानी चूक होती है।”
बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि तेजस्वी का मीडिया पर हमला “पत्रकारिता की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों” के खिलाफ है। उन्होंने तेजस्वी से बिना शर्त माफी की मांग की। तेजस्वी ने जवाब में बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि वह गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा जैसे मुद्दों पर बात नहीं करती – बल्कि अफवाहें फैलाती है। उधर जेडीयू भी तेजस्वी पर बरस रही है। कह रही है कि Tejashwi Yadav की भाषा “घरेलू स्तर की अशोभनीयता” को दिखाती है।

चुनाव का शोर – फुल फॉर्म में Prashant Kishor
बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं – वैसे-वैसे नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो रही है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, नीतीश कुमार की जेडीयू और तेजस्वी यादव की RJD के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। Prashant Kishor नीतीश और तेजस्वी दोनों को निशाने पर ले रहे हैं – प्रशांत किशोर बिहार की जनता से नेताओं की भाषा और व्यवहार के आधार पर उनके इरादों को परखने की अपील कर रहे हैं।
Prashant Kishor कह रहे हैं – “जो नेता गाली जैसी भाषा का इस्तेमाल करता है, उससे संवेदनशील शासन की उम्मीद नहीं की जा सकती।” याद दिला दें कि Prashant Kishor की जन सुराज पार्टी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है और खुद को नीतीश और तेजस्वी के विकल्प के रूप में पेश कर रही है – वहीं बीजेपी और जेडीयू गठबंधन (NDA) तेजस्वी की भाषा और RJD के “जंगलराज” की छवि को मुद्दा बना रहा है। दूसरी ओर – तेजस्वी बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर नीतीश सरकार को घेर रहे हैं।
Bihar Election – जुबानी जंग में असल मुद्दे हो रहे गायब!
Bihar Election – क्या कहता है जनता का मूड?
बिहार के चुनावी माहौल के बीच हाल के एक सर्वे में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार बताया गया – जबकि प्रशांत किशोर दूसरे और नीतीश कुमार तीसरे स्थान पर हैं। लेकिन चुनावी रणनीतिकार कहते हैं कि नीतीश की घटती लोकप्रियता और तेजस्वी के विवादित बयानों से जन सुराज को नया मौका मिल सकता है। बिहार की जनता अब बदलाव की तलाश में है – और यह चुनाव न केवल नेताओं, बल्कि उनके विचारों और भाषा की भी परीक्षा होगी। हालांकि सियासत और क्रिकेट दोनों ही में ये कहा जाता है कि जब तक आखिरी ओवर की आखिरी गेंद ना पड़ जाए – तब तक मैच के नतीजे के बारे में सोचना जल्दबाजी होती है।
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Written by khabarilal.digital Desk
🎤 संवाददाता: सुजीत सागर
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