Rajiv Gandhi की कुर्सी छीनी, आडवाणी की यात्रा रुकवाई… सिर्फ 11 महीने तक PM रहे देश के सबसे ‘विवादास्पद’ PM की कहानी
New Delhi : प्रधानमंत्री पर हमारी Special Series में आज हम बात करने वाले हैं देश के सातवें प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह यानि VP Singh की जिन्होने सिर्फ 11 महीने तक देश की कमान संभाली थी लेकिन इन 11 महीनों में वो सबसे विवादित सरकार थी. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसके बारे में आपको एक-एक कड़ी जोड़कर बताएंगे. सबसे पहले शुरू करते हैं कि कैसे उन्होंने अपने PM पद की लालसा में तत्कालीन प्रधानमंत्री Rajiv Gandhi के लिए मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर दिया था. और फिर कैसे दूसरों का खेल बिगाड़ कर PM की कुर्सी तक पहुंचे.
जयचंद से वीपी सिंह की तुलना

ये बात 16 मई 1987 की भरी दोपहर की है… तब राजधानी दिल्ली के Boat Club Ground में कांग्रेस की विशाल रैली थी. PM Rajiv Gandhi उस रैली में भाषण देने वाले थे. ऐसे में रक्षा मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके VP Singh को लगा कि उन्हें भी इस रैली में शामिल होना चाहिए. स्वभाव से ज़िद्दी तो वो थे ही. लिहाज़ा चिलचिलाती धूप में सिर पर गमछा लपेटे सबसे आगे की लाइन में जाकर बैठ गए. राजीव गांधी ने भाषण देना शुरू किया, जो वीपी के सीने पर तीर की तरह लगा… राजीव ने कहा – “आज हमें ये याद रखना है कि कैसे हमारे बीच से मीर जाफर और जयचंद जैसे लोग उठे थे. उन्होने भारत को बेचने और कमजोर करने के लिए हर गलत काम किया. हमें उनको करारा जवाब देना होगा”. राजीव का इशारा VP Singh की तरफ ही था. वो उसी वक्त रैली छोड़कर चले गए और मन ही मन तय कर चुके थे कि कैसे भी करके Rajiv Gandhi को PM पद से हटाकर रहेंगे.
बोफोर्स कांड ने बढ़ाई मुश्किलें

दरअसल साल 1986 में भारत सरकार और स्वीडन की हथियार बनाने वाली एक कंपनी AB Bofors के बीच 1,437 करोड़ रुपए की डील हुई थी. इस डील के तहत उस कंपनी ने Indian Army को 155mm की 400 Howitzer Gun जिसे बोफोर्स तोप भी कहा जाता था, उन 400 तोपों की सप्लाई भारत को दी जानी थी. लेकिन इस डील के एक साल बाद एक Swedish Radio Channel ने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि इस डील के लिए भारत के नेताओं और सेना के अफसरों को मोटी रिश्वत दी गई है. कुछ दावे ऐसे भी थे कि राजीव सरकार में रक्षामंत्री रह चुके VP Singh ने PM से पूछे बिना ही HDW सबमरीन के रक्षा सौदे की जांच शुरू करवा दी थी. इस बारे में जब Rajiv को पता चला तो वो काफी नाराज हुए. पार्टी के लोग VP Singh का विरोध करने लगे. जिसके बाद उन्हे 12 अप्रैल 1987 को रक्षामंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा.
राजीव ने पार्टी से निकाला
पार्टी छोड़ने से पहले तक VP Singh राजीव के खिलाफ माहौल तैयार कर चुके थे. लिहाज़ा मुद्दा गरमाया और विपक्षी दलों समेत VP अब पुरज़ोर तरीके से Rajiv Gandhi पर निशाना साधने लगे. इसके बाद उन्हें पार्टी से भी बाहर कर दिया गया. VP Singh ने जन मोर्चा नाम से अपनी पार्टी बना ली, लेकिन कुछ समय बाद जन मोर्चा का विलय जनता दल में हो गया और इस तरह अब VP Singh खुलकर विपक्षी दलों का साथ देने लगे. बताया जाता है कि VP ने बोफोर्स कांड के दम पर 1989 का चुनाव लड़ा क्योंकि उनके पास और तो कोई बड़ा मुद्दा था नहीं. इसलिए उन्होने उस वक्त देश के हर नागरिक को इस भ्रष्टाचार के बारे में बताने के लिए बकायदा पूरा कैंपेन चलाया और नारा दिया ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’.
स्विस बैंक के खुफिया खाते का खुलासा

VP Singh राजनीति में इतने चतुर और मंझे हुए खिलाड़ी थे कि चुनाव प्रचार के दौरान एक कागज अपनी जेब में लेकर चलते थे और जब भी कहीं भाषण देते थे तो कहते कि मेरे पास स्विस बैंक का वो अकाउंट नंबर है, जिसमें बोफोर्स घोटाले के पैसे जमा हैं. उस समय के वरिष्ठ पत्रकारों की मानें तो 3 नवंबर 1988 को पटना में एक चुनावी रैली के दौरान VP Singh ने Rajiv Gandhi के स्विस बैंक के खुफिया खाते का राज खोलने का दावा किया था. इसके अगले दिन एक वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने जनसत्ता अखबार में लिखा “Swiss Bank Corporation के इस खाते का नंबर 99921 PU है. इस खाते में बोफोर्स सौदे के कमीशन में मिले 3,20,76,709 Swedish Krona हैं”. यानि भारतीय करेंसी में तब के 8 करोड़ रुपए. VP Singh कहते हैं कि ये खाता Lotus के नाम पर है. अगर ये बात गलत निकली तो वो संन्यास ले लेंगे”. उनके मुताबिक Lotus और Rajiv का मतलब एक ही होता है.
कांग्रेस के साथ हो गया ‘खेला’
बोफोर्स कांड को लेकर खूब शोर शराबे के बीच वो साल गुज़र गया… लेकिन इसका बड़ा असर 1989 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर पड़ा. VP Singh देश की जनता को बोफोर्स में हुए घोटाले का यकीन दिला पाने में कामयाब हुए और उस चुनाव में कांग्रेस के साथ खेला हो गया. चुनाव में 198 सीटें जीत कर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी तो बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से बहुत पीछे रह गई थी. वहीं बोफोर्स के मुद्दे पर चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक गठबंधन नेशनल फ्रंट को बहुमत मिला था. इस पार्टी में शामिल जनता दल को 143, भाजपा को 85 और वाम पंथी दलों को 52 सीटें मिलीं थीं. इसके अलावा दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों को 9 सीटें मिलीं थीं. इन सीटों का कुल जोड़ 289 बनता है जो बहुमत के जादुई आंकड़े से 17 सीटें ज्यादा था. अब बहुमत तो मिल गया… लेकिन कशमकश ये थी कि पीएम कौन बनेगा.?
चौ. देवीलाल की चाल से ‘कमाल’

कांग्रेस के खिलाफ 1989 का लोकसभा चुनाव बहुत सारी पार्टियों ने मिलकर लड़ा था. इसी वजह से 3 दिनों तक संसदीय दल की बैठक टलती रही. 30 नवंबर 1989 को चंद्रशेखर अपने आवास 3 South Avenue Lane पर कुछ बड़े नेताओं से इस पर चर्चा कर रहे थे. उसी समय ओडिशा भवन में भी एक बड़ी बैठक चल रही थी. इसमें देवीलाल के सहारे VP Singh को प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी कर रहे थे. उस मीटिंग में देवीलाल, अरुण नेहरू, कुलदीप नैय्यर और बीजू पटनायक मौजूद थे. इस बैठक के बारे में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर लिखते हैं, “बैठक में देवीलाल ने कहा कि VP एक अच्छे PM साबित होंगे, लेकिन परेशानी ये है कि मैंने चंद्रशेखर को जुबान दी है इसलिए मैं भी मुकाबले में उतरूंगा. अगर वीपी को PM नहीं बनाया गया तो पार्टी टूट जाएगी. ये बात वहां बैठे हर नेता को पता थी. इसके बाद देवीलाल ने चंद्रशेखर को ओडिशा भवन बुलाया. वहां आकर चंद्रशेखर ने कहा कि संसदीय बैठक में देवीलाल का नाम प्रस्तावित किया जाएगा, जिसका अप्रूवल मैं दूंगा. चंद्रशेखर की बात सुन कर उस वक्त तो सबने हामी भर दी. लेकिन चंद्रशेखर की गैर-मौजूदगी में VP को ही प्रधानमंत्री बनाने की कवायद शुरू हो गई”. इसके बाद जिस तरह की शातिर चालें चली गईं उसमें चंद्रशेखर उलझ कर रह गए.
मैं ताऊ ही बना रहना चाहता हूं…

बात 1 दिसंबर 1989 की है… संसद के सेंट्रल हॉल में जनता दल की संसदीय बैठक बुलाई गई. इसमें VP Singh, देवीलाल, मधु दंडवते, अजीत सिंह और जनता दल के सभी सांसद और दिग्गज नेता पहुंचे. उस बैठक में खुद को PM पद का सशक्त उम्मीदवार मानने वाले चंद्रशेखर भी बैठक में पहुंचे थे. चंद्रशेखर उस वक्त मलेरिया बुखार में तप रहे थे. इस बैठक को आयोजित करने की जिम्मेदारी चंद्रशेखर के करीबी यशवंत सिन्हा को सौंपी गई थी. यशवंत सिन्हा ने अपनी किताब ‘रेलेंटलेस’ में लिखते हैं, “संसदीय दल की बैठक शुरू होते ही मधु दंडवते ने VP Singh से प्रस्ताव रखने के लिए कहा. वीपी तेजी से खड़े हुए और उन्होने ताऊ देवीलाल को पीएम बनाने का प्रस्ताव रखा. इसके बाद हॉल में दो-चार तालियां बजीं. इसके बाद देवीलाल खड़े हुए और बोले मुझे हरियाणा में ताऊ कहते हैं… यहां भी मैं ताऊ ही बना रहना चाहता हूं. मैं अपना नाम वापस लेता हूं और VP Singh के नाम का सुझाव देता हूं. क्योंकि देश वीपी को पीएम बनते देखना चाहता है… इसके बाद हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. बस फिर क्या था. अजीत सिंह ने इस प्रस्ताव कासमर्थन किया और दंडवते ने वीपी के निर्वाचन की घोषणा कर दी. ये सब देख कर चंद्रशेखर भड़क उठे और अपना शॉल संभालते हुए बैठक से जाते-जाते बोले मुझे ये फैसला मंज़ूर नहीं है… मुझे कहा गया था कि देवीलाल को नेता चुना जाएगा, लेकिन मेरे साथ धोखा हुआ है. मैं बैठक से जा रहा हूं”.
VP बने PM, देवीलाल Deputy PM
अगले ही दिन 2 दिसंबर को VP Singh के शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन होता है. तत्कालीन राष्ट्रपति RK वेंकटरमण ने वीपी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवाई, लेकिन यहां भी एक खेल हो गया… कल तक Tau Devilal वीपी के लिए PM पद छोड़ने के लिए तैयार थे लेकिन आज वो Deputy PM बनने के लिए अड़ गए. VP ने उनकी मांग पूरी भी कर दी. इसी के साथ VP Singh को पीएम बनाने की पूरी व्यूह रचना करने वाले अरुण नेहरू और कुलदीप नैय्यर को भी बड़े पदों का सुख मिला. वीपी ने मुस्लिमों और जम्मू-कश्मीर को साधने की कोशिश के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद को गृह मंत्री बनाया. वो चाहते थे कि मुफ्ती मोहम्मद के जरिए मुस्लिमों में संदेश जाए कि उनकी पहुंच काफी ऊपर तक है. लेकिन आगे चलकर यही सईद उनकी सरकार जाने की वजह बन गए…
आतंकियों को छोड़ना पड़ा भारी

दरअसल जिस दिन Mufti Mohammad Sayeed ने गृह मंत्रालय में कार्यभार संभाला था उसी दिन उनकी 23 साल की बेटी रूबैया सईद का किडनैप कर लिया जाता है. 8 दिसंबर 1989 के दिन रूबैया हॉस्पिटल से घर के लिए निकलती हैं कि तभी 5 अलगाववादी उन्हे अगवा कर लेते हैं. ये लोग 5 Most Wanted आतंकियों को रिहा कराने की मांग करते हैं. जिन्हे बड़ी मुश्किल से गिरफ्तार किया था. इस अपहरण की घटना पर VP ने सईद से कहा हम सभी इंटेलिजेंस एजेंसियों को इस काम पर लगाएंगे, लेकिन बेटी को कुछ नहीं होन देंगे. हालांकि लंबी बातचीत चली जिसके बाद वीपी सरकार को आतंकियों के आगे घुटने टेकने पड़े और रूबैया की रिहाई के लिए आतंकियों को छोड़ने का फैसला लिया गया. इस फैसले से VP की छवि को काफी नुकसान होता है और उनकी निंदा की जाने लगती है.
मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की
इसी तरह का एक और बड़ा किस्सा है जिसका ज़िक्र करना बेहद ज़रूरी है… उस समय पर जनता दल के ज्यादातर नेता मंडल आयोग की सिफारिश कर रहे थे. VP Singh ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर देश में तहलका मचा दिया. इसके जरिए शिक्षा और सामाजिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिल गया. इसके खिलाफ सामान्य वर्ग के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. कुलदीप नैय्यर ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में लिखते हैं, “VP Singh सबसे ज्यादा विवादास्पद नेताओं में शामिल थे. देश की राजनीति में उनका प्रभाव भले ही समाज को बांटने वाला रहा हो, लेकिन उनके कार्यकाल में ही मंडल आयोग की वो सिफारिशें लागू हुईं, जिन्हें कभी Indira Gandhi ने ताक पर रखा था. वीपी ने मुझसे कहा था कि भले ही मैने अपनी एक टांग गंवा दी हो, लेकिन गोल तो करके ही रहूंगा”.
आडवाणी को करवाया गिरफ्तार

इसी तरह साल 1990 का एक और किस्सा है जब राम मंदिर निर्माण की मांग ज़ोर पकड़ रही थी. उस वक्त बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से रथयात्रा शुरू की थी. जिसका मकसद देशभर में 10 हजार किलोमीटर का सफर करके अयोध्या पहुंचना था और राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा की जानी थी. लेकिन तब से ही मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले नेता Mulayam Singh Yadav और Lalu Yadav इस यात्रा के विरोध में थे. जिसके चलते VP ने आडवाणी को यात्रा रोकने के लिए कहा, लेकिन वो नहीं माने. उस वक्त UP CM मुलायम सिंह यादव ने बयान दिया था कि कोई परिंदा भी अयोध्या में पर नहीं मार पाएगा. इस बयान से मुलायम ने आडवाणी को अयोध्या आने की चुनौती दी थी. कहा जाता है कि VP ने तब बिहार के सीएम लालू यादव से कहा कि मुलायम तो आडवाणी को गिरफ्तार करेंगे ही, क्यों न तुम भी ऐसा करो.
BJP का समर्थन वापस, गिर गई सरकार

22 अक्टूबर 1990 को VP Singh ने लालू से सारी तैयारी सुनिश्चित करने और रात 2 बजे के बाद आडवाणी को हिरासत में लेने को कहा… क्योंकि तब तक अखबार छप चुके होते हैं और अगले दिन ज्यादा हंगामा नहीं होगा. अगले ही दिन रात के दो बजे समस्तीपुर जिले में जिला मजिस्ट्रेट RK Singh और IPS Rameshwar Oraon पुलिस फोर्स के साथ आडवाणी को हिरासत में ले लेते हैं. ये मामला तब काफी भड़क गया था. हिंदुओं की भावनाएं आहत हुईं. VP की इस हरकत से नाराज होकर भाजपा ने केंद्र सरकार से हाथ खींच लिया. भाजपा के इस फैसले के बाद वीपी के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. लेकिन साथी दलों ने सलाह दी कि वो अविश्वास प्रस्ताव तक पद पर बने रहें और फिर वो हुआ जिसके बारे में हमने आपको शुरुआत में ही बताया था. VP Singh की सरकार गिर गई. जनता दल टूट गया और इस तरह देश के 7th Prime Minister VP Singh सिर्फ 11 महीने तक ही PM पद पर बने रह सके. अगले एपिसोड में बात देश के 8वें प्रधानमंत्री की. और अगर आप छठे PM Rajiv Gandhi के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो नीचे दिए Link पर Click करें.
