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Lal Bahadur Shastri

Lal Bahadur Shastri

क्यों Indira Gandhi ने रोते हुए कहा था “अब आप ये मुल्क संभालिए”? Lal Bahadur Shastri, PM Series-2.

कैसे टहलते हुए Lahore पहुंच गई थी Lal Bahadur Shastri की सेना?

New Delhi – “जय जवान, जय किसान” ये नारा साल 1965 में आज़ाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था. अपने पिछले आर्टिकल में हमने बात की थी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित Jawahar Lal Nehru की. आज बात करेंगे दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की. वो साठ का दशक था. भीरत चीन से युद्ध हार चुका था. हार के लिए कांग्रेस के लोगों ने नेहरू को ही ज़िम्मेदार ठहराया. ये बात नेहरू को खाए जा रही थी. वो बीमार रहने लगे. एक साल कश्मीर भी जाकर रहे. लेकिन फिर भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए और 27 मई 1964 को चल बसे. सबके सामने बस एक ही सवाल था, कि अब कौन देश की बागडोर संभालेगा.? तब आंसुओं से भरी इंदिरा ने शास्त्री जी से कहा था “अब आप ही मुल्क संभालिए”. बताया जाता है कि उस वक्त के Congress President K. Kamaraj भारत के अगले प्रधानमंत्री चुनने की पटकथा लिख रहे थे. उनके हाथ में सब कुछ था लेकिन पार्टी के दूसरे नेताओं की सहमति भी ज़रूरी थी. कामराज ने नेहरू के निधन के अगले दिन से ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकें शुरू कर दीं. उसी दिन 18 OBC और SC सांसदों ने पीएम पद के लिए Babu Jagjivan Ram का नाम आगे किया लेकिन उन्हे ज्यादा समर्थन नहीं मिला. उसी समय कुछ पत्रकारों ने मोरारजी देसाई से पूछा कि क्या आप पीएम बनने जा रहे हैं? वो बोले “अगर जनता की मर्जी है तो मैं इसके लिए चुनाव लड़ने को तैयार हूं”. जब यही सवाल कांग्रेस अध्यक्ष कामराज से पूछा गया तो उन्होंने एक दिन और इंतज़ार करने को कहा. देर शाम कामराज ने मोरारजी से फोन पर काफी देर बात की… मोरारजी को लगा कि अब तो उनका पीएम बनना तय है, लेकिन ऐसा हो न सका.

कैसे Lal Bahadur Shastri बने देश के दूसरे प्रधानमंत्री?

Indira Gandhi & Lal Bahadur Shastri

‘Lal Bahadur Shastri: A Life of Truth in Politics’ में चंद्रिका प्रसाद श्रीवास्तव लिखते हैं कि – “नेहरू की मौत के 3 दिन बाद, 30 मई 1964 को CWC की बैठक से पहले ही PM का नाम तय हो चुका था. जब Indira Gandhi और Lal Bahadr Shastri की मुलाकात हुई तो शास्त्री जी ने इंदिरा से पूछा कि आप क्यों नहीं चुनाव लड़तीं? इस पर इंदिरा ने कहा कि मैं अभी पिता की मौत के सदमे में हूं. इस वक्त चुनाव लड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकती. तब इंदिरा ने रुआसी भरी आवाज़ में कहा – अब आप ही मुल्क संभालिए. अगले ही दिन 1 जून 1964 को हुई बैठक में तय किया गया कि कांग्रेस अध्यक्ष कामराज जो भी फैसला लेंगे वही माना जाएगा. 2 जून को कार्यकारी PM Gulzari Lal Nanda ने प्रधानमंत्री पद के लिए शास्त्री जी का नाम प्रस्तावित किया. तो मोरारजी देसाई के सामने सहमति जताने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. इस तरह शास्त्री निर्विरोध प्रधानमंत्री चुने गए और 9 जून 1964 को उन्होने देश के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. तो दोस्तों इस तरह शास्त्री जी के रूप में देश को मिला भारत का दूसरा प्रधानमंत्री…

लाहौर पहुंची भारतीय सेना और Pakistan को दिखाई औक़ात

India-Pakistan War वो साल 1965 था… छोटे से कद के सीधे सादे सरल स्वभाव वाले लाल बहादुर शास्त्री नए प्रधानमंत्री बन चुके थे. उसी दौरान पाकिस्तान को एक शरारत सूझी. पाक राष्ट्रपति General Mohammad Ayub Khan को लगा कि भारत से कश्मीर छीनने का ये सुनहरा मौका है. इसी गलतफहमी और जल्दबाज़ी में पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर लॉन्च कर दिया और Jammu-Kashmir में अपनी सेना घुसा दी. इस नापाक हरकत का India ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया. 1 महीने के अंदर पाकिस्तानियों को भारत से खदेड़ा गया और भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई. इसके बाद शास्त्री जी ने दिल्ली के राम लीला मैदान में एक बड़ी रैली करते हुए देश को संबोधित किया और कहा – पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान कहते थे कि “वो टहलते हुए दिल्ली पहुंच जाएंगे. जब यही इरादा है तो हम भी थोड़ा टहल लिए और लाहौर पहुंच गए… मैं समझता हूं कि इसमें हमने कोई गलत बात तो नहीं की”. उसी मंच से पाकिस्तान को लताड़ते हुए शास्त्री जी ने कहा कि “हम भी हथियारों का जवाब हथियारों से देना जानते हैं”. अब लुटा पिटा पाकिस्तान भागा-भागा अमेरिका की गोद में जाकर बैठ गया और कूटनीतिक तौर पर भारत को घेरने की कोशिश करने लगा.

अमेरिका की धमकी का डट कर किया सामना

Rise of Green Revolution in India.

भारत उस समय गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था. उस वक्त हमें America से अनाज आयात करना पड़ता था. दुर्भाग्य से उसी साल देश में भयंकर सूखा पड़ा. मौसम ने भी हमारा साथ नहीं दिया. जिसका फायदा पाकिस्तान के उस वक्त के दोस्त अमेरिका ने उठाया. तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन (Lyndon B. Johnson) ने भारत को गेहूं की सप्लाई बंद करने की धमकी दी. शास्त्री जी को ये धमकी बहुत बुरी लगी. उन्होंने अंदाज़ा लागाया कि अगर देशवासी हफ्ते में एक वक्त खाना ना खाएं तो अनाज संकट से निपटा जा सकता है. उनके बेटे अनिल शास्त्री के मुताबिक ये फैसला लेने से पहले उन्होंने अपनी पत्नी ललिता शास्त्री को फोन किया और पूछा कि “अगर आज शाम हमारे घर में खाना न बने तो क्या होगा? ललिता शास्त्री ने कहा कोई दिक्कत नहीं होगी”. शास्त्री जी ने कहा कि “मैं देखना चाहता हूं कि मेरे बच्चे एक वक्त का उपवास करके भूखे रह सकते हैं या नहीं”. जो तय हुआ था वही किया गया. शास्त्री जी के घर उस रात खाना नहीं बना. सभी लोग भूखे पेट सोए. अगले दिन शास्त्री जी ने देशवासियों से कहा कि “क्या वो देशहित में सप्ताह में सिर्फ एक समय उपवास कर सकते हैं”. ये पहली बार था जब किसी देश के प्रधानमंत्री ने अपनी जनता से भूखा रहने की अपील की थी. लेकिन पूरे देश ने उनकी बात को बाइज़्ज़त माना था. इसी घटना के बाद अक्टूबर 1965 में आकाशवाणी पर पहली बार शास्त्री जी ने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया था. इस नारे के पीछे उनका मकसद भारत को आत्मनिर्भर बनने दिशा में पहला कदम था.

जब रूस के प्रधानमंत्री ने शास्त्री को बताया Super Communist…

Indo-Pak Agreement, Tashkent.

ये घटना साल 1966 की है… सोवियत संघ यानि आज के रूस ने भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान को समझौते के लिए ताशकंद बुलाया था. रूस बेहद ठंडा मुल्क है ये तो हम सब जानते हैं. लिहाज़ा ताशंकद की सर्दी से बचने के लिए शास्त्री जी अपना खादी का ऊनी कोट साथ ले गए थे. इस कोट में शास्त्री को देखकर रूस के प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसिगिन (Alexei Kosygin) को लगा कि ये कोट ताशकंद की सर्दी के लिए नाकाफी होगा. इसलिए उन्होंने शास्त्री जी के लिए काला गर्म कोर्ट भिजवाया. कोसिगिन को उम्मीद थी कि शास्त्री उनका दिया हुआ कोट ज़रूर पहनेंगे, लेकिन अगले दिन फिर शास्त्री फिर वही खादी का कोट पहने हुए दिए. कोसिगिन ने पूछा- “Mr. Prime Minister… क्या आपको वो कोट पसंद नहीं आया”. शास्त्री जी बोले “कोट अच्छा है लेकिन मैंने उसे अपने एक स्टाफ मेंबर को उधार दे दिया है. इतनी भीषण सर्दी में उसके पास पहनने के लिए कोई गर्म कपड़ा नहीं था. मैं भविष्य जब भी किस ठंडे देश की यात्रा करूंगा, आपके उपहारस्वरूप कोट का उपयोग ज़रूर करूंगा”. शास्त्री जी की सादगी कोसिगिन को इस कदर भा गई कि उनके सम्मान में एक कल्चरल इवेंट रखा गया. इवेंट में स्पीच देते हुए कोसिगिन ने कहा कि “हम तो सिर्फ कम्युनिस्ट हैं, लेकिन शास्त्री जी सुपर कम्युनिस्ट हैं”.

Lal Bahadur Shastri की मौत पर रहस्य बरकरार!

समय का कालचक्र देखिए… कौन जानता था वो दौरा लाल बहादुर शास्त्री की जिंदगी का आखिरी दौरा होगा? 10 जनवरी के दिन ताशकंद में Indo-Pak Agreement पर साइन हुए थे जिसके बाद सोवियत संघ ने होटल ताशकंद में एक पार्टी रखी थी. शास्त्री जी कुछ देर वहां रुके फिर अपने सहायकों के साथ अपने कमरे में चले गए. रात 10 बजे के बाद उन्होने खाना परोसने को कहा. शास्त्री जी डिनर कर ही रहे थे कि फोन की घंटी बजी. फोन दिल्ली से उनके एक सहायक वेंकटरमन का था. उन्होने बताया कि देश के कुछ राजनीतिक दलों ने भारत-पाक समझौते की आलोचना की है. वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि “ये बात सुन कर शास्त्री जी टेंशन में आ गए. अगले दिन उन्हे Afghanistan जाना था जिसकी पैकिंग चल रही थी. ताशकंद के समय के हिसाब से रात 1.30 बजे जगन्नाथ सहाय ने शास्त्री जी को लॉबी में लड़खड़ाते हुए देखा. बहुत मुश्किल से उन्होंने कहा कि डॉक्टर साहब कहां हैं? इतने में शास्त्री जी ने अपना हाथ दिल के पास रखा और अचेत हो गए. शास्त्री जी के डॉक्टर RN Chugh ने तुरंत आते ही उनकी पल्स चेक की और शास्त्री जी के निधन की पुष्टि की. औपचारिकता पूरी करने के लिए रूस के भी डॉक्टर बुलाए गए. शास्त्री जी को इंजेक्शन दिए गए लेकिन उनके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. अगले ही दिन उनका पार्थिव शरीर भारत लाया गया. रहस्यमई तरीके से हुई शास्त्री जी की मौत भारत के सिए बहुत बड़ा झटका था. मामला खूब गर्माया, खूब हंगामा हुआ लेकिन नतीजा कुछ ना निकला. तत्कालीन सरकार ने उनके शरीर का पोस्टमॉर्टम तक करवाना ज़रूरी नहीं समझा”. उनकी मौत के करीब 11 साल बाद साल 1977 में पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार आई. जनता पार्टी की सरकार ने शास्त्री जी मौत मामले की जांच के लिए Raj Narayan Committee बनाई गई. सबसे पहले उनके निजी डॉक्टर RN चुघ को पूछताछ के लिए बुलाया जाना था, लेकिन एक कार एक्सीडेंट में उनकी भी मौत हो चुकी थी.. यही हाल उनके सहायक रामनाथ का भी हुआ जो सड़क हादसे में बुरी तरह चोटिल हुए और उनकी याद्दाश्त चली गई. कमेटी की रिपोर्ट का हाल भी ढाक के तीन पात हो कर रह गया और शास्त्री जी की मौत का रहस्य आज तक बरकरार है. लेकिन उन्हे आज भी उनकी सरलता, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प के लिए याद किया जाता है. इसीलिए हर साल 2 अक्टूबर को देश में गांधी जयंती के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती भी मनाई जाती है. खुद देश के मौजूदा Prime Minister Narendra Modi आज भी कई मंचों पर शास्त्री जी की सादगी, देश के प्रति उनके समर्पण की मिसाल देते हैं और कहते हैं कि भारत की प्रगति में शास्त्री जी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.