जिन Rajiv Gandhi का किया था विरोध, उन्ही के समर्थन से बनाई सरकार… महज़ 3 महीने के लिए PM बने देश के 8वें प्रधानमंत्री ‘चंद्रशेखर’ की कहानी
New Delhi – प्रधानमंत्री पर हमारी Special Series के इस खास एपिसोड में आज हम बात करने वाले हैं देश के आठवें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह की. अस्सी का दशक जाते-जाते देश की राजनीति में सियासी भूचाल मचा हुआ था. उठापटक का दौर जारी थी. बोफोर्स कांड, मंडल-कमंडल की राजनीति, राम मंदिर निर्माण जैसे कई मुद्दे थे जो सरकार बना रहे थे और गिरा रहे थे. देश में चारों ओर अशांति फैली थी. लेकिन सियासतदानों को बस कुर्सी की पड़ी थी.
गिरी VP की सरकार, खड़ा हुआ संकट

अस्सी का दशक खत्म हुआ और नब्बे आते ही VP Singh की सरकार 11 महीने चलने के बाद गिर गई. देश के सामने फिर ‘प्रधान’ संकट खड़ा था. वहीं सियासी सूरमा फिर से चुनाव करवाने की तिगड़म लगा रहे थे. एक दिन अचानक पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी के करीबी आरके धवन Chandrasekhar के पास पहुंचते हैं. वो कहते हैं कि Rajiv Gandhi आप से मिलना चाहते हैं. चंद्रशेखर ने कुछ सोचा फिर उनके साथ चल दिए…
राजीव चंद्रशेखर से मिलते ही पूछते हैं कि – क्या आप सरकार बनाएंगे.?
चंद्रशेखर बोले – ‘सरकार बनाने के लिए मेरे पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है’.
राजीव ने कहा – ‘आप सरकार बनाइए, हम आपको बाहर से समर्थन देंगे’.
इस तरह कभी कांग्रेस का विरोध करके चुनाव जीतने वाले Chandrasekhar को आखिरकार कांग्रेस के समर्थन से ही सरकार बनानी पड़ी. कुछ पत्रकारों ने Chandrasekhar के पीएम बनने के बाद Rajiv से सवाल किया – आप इस सरकार को कितने दिन तक चलाएंगे? Rajiv ने जवाब दिया – ‘वीपी सिंह सरकार से एक महीने ज्यादा’… खैर नई सरकार तो बन गई लेकिन ये वाकई VP Singh की ग्यारह महीने की सरकार से ज्यादा चली या नहीं, इसके बारे में आपको आगे बताएंगे. उससे पहले बताते हैं कि जिन परिस्थितियों में Chandrasekhar की सरकार बनी, तब देश में क्या हालात थे.?
मंडल-कमंडल का सियासी भूचाल

दरअसल Chandrasekhar के PM बनने से पहले जनता दल के VP Singh देश के प्रधानमंत्री थे… उन्हें BJP और वाम दलों के समर्थन से सरकार तो बना ली थी लेकिन उसे चला पाना बेहद मुश्किल हो रहा था. VP Singh ने 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करके देश में सियासी भूचाल ला दिया. मंडल कमीशन के तहत पिछड़े वर्ग के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. उस वक्त VP Singh ने एक बयान भी दिया था जो काफी चर्चाओं में रहा. उन्होने कहा था “हमने मंडल रूपी बच्चे को मां के पेट से बाहर निकाल दिया है… अब कोई माई का लाल इसे वापस मां के पेट में नहीं डाल सकता. ये बच्चा अब प्रोग्रेस करेगा”.
सवर्ण समाज का प्रदर्शन, आडवाणी की रथयात्रा

VP Singh के इस फैसले से नाराज़ होकर देशभर के सवर्ण समाज के लोगों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया… देश दो टुकड़ों में बंट गया था. एक फैसले का स्वागत कर रहा था तो दूसरा विरोध. मंडल कमीशन की सिफारिश BJP के भी गले से नीचे नहीं उतर रही थी. वो वीपी सरकार से अलग होना चाहती थी लेकिन एक डर था. वो ये, कि कुछ महीनों में ही सरकार गिराने से जनता में गलत संदेश जाएगा. लिहाज़ा VP Singh की मंडल की राजनीति के खिलाफ भाजपा ने कमंडल की राजनीति शुरू कर दी. पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी गुजरात से अयोध्या तक रथयात्रा लेकर निकले तो VP Singh के कहने पर बिहार के सीएम लालू यादव ने उन्हे गिरफ्तार करवा दिया… इससे बीजेपी नेता भड़क गए साथ ही अब उन्हे गठबंधन तोड़ने का बढ़िया मौका मिल गया. बीजेपी ने तुरंत VP Singh से अपना समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिरा दी. वीपी को इस्तीफा देना पड़ा.
चंद्रशेखर ने बनाई अलग पार्टी

Chandrasekhar भी अपने 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए और अपनी अलग समाजवादी जनता पार्टी बना ली. जिस कांग्रेस का विरोध करके जनता दल सत्ता में आई थी, उसी के समर्थन से Chandrasekhar PM बन गए. राजनीतिक गलियारे में सवाल उठे तो चंद्रशेखर ने जवाब दिया – “मंडल के विरोध में देशभर में लोग मर रहे हैं. इस माहौल में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाना बिलकुल जायज है. मैं अमन चैन वापस लाना चाहता हूं. समय की मांग को देखते हुए कांग्रेस के साथ सरकार बना रहा हूं”.
अब चंद्रशेखर के बारे में जानिए

UP के बलिया में जन्मे Chandrasekhar के राजनीतिक सफर की शुरुआत समाजवादी आंदोलन से हुई थी… इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान उनकी रैली में अच्छी-खासी भीड़ जुटा करती थी. उनके बेटे Neeraj Shekhar के मुताबिक ‘चंद्रशेखर रोजाना 8-10 किलोमीटर पैदल चला करते थे और उनके चलने की स्पीड इतनी तेज होती थी कि कोई भी उनके साथ कदम मिलाकर चल नहीं पाता था’. सबसे खास बात जो उन्हे बाकि सब प्रधानमंत्रियों से अलग बनाती है, वो ये कि Chandrasekhar कभी मंत्री नहीं रहे. वो सीधा देश के प्रधानमंत्री बने थे.
तीन महीने में काग्रेंस ने खींचा ‘हाथ’
मगर सरकार को बने तीन महीने भी नहीं हुए थे कि कांग्रेस ने Chandrasekhar सरकार से समर्थन वापस ले लिया… अल्पमत में आने से Chandrasekhar को 6 मार्च 1991 को इस्तीफा देना पड़ा. फिर अगले प्रधानमंत्री चुने जाने तक उन्होंने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर ये पद संभाला. पत्रकार रामबहादुर राय को दिए इंटरव्यू में वो कहते हैं – “जिस दिन मैं प्रधानमंत्री बना था उस दिन देश में कई जगह कर्फ्यू लगा था… मंडल आयोग की सिफारिश के खिलाफ भड़के युवा आत्मदाह कर रहे थे. सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. दूसरी तरफ मुझे सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं था. मन में ये डर था कि सरकार ज्यादा दिन तक चल नहीं पाएगी. फिर भी मुझे विश्वास था कि कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकल आएगा. मगर ऐसा हुआ नहीं और मुझे इस्तीफा देना पड़ा”.
3 महीने देशवासियों पर छोड़ी अमिट छाप

भले ही तीन महीने में देश के आठवें प्रधानमंत्री Chandrasekhar की सरकार गिर गई थी लेकिन उन तीन महीनों में उन्होने देशवासियों पर एक अमिट छाप छोड़ी थी. भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद भी Chandrasekhar की बोलचाल और पहनावे में कोई बदलाव नहीं आया था. देश-विदेश में भी वो अपनी खरी जुबान में बात किया करते थे… पत्रकार संतोष भारतीय अपनी किताब में उनसे जुड़ा एक किस्सा बताते हैं – “पीएम बनते ही चंद्रशेखर कॉमनवेल्थ सम्मेलन में भाग लेने मालदीव की राजधानी माले पहुंचे थे. वहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से उनकी मुलाकात हुई…
Chandrasekhar ने नवाज़ के कंधे पर हाथ रखकर कहा – आप बहुत बदमाशी करते हैं.
नवाज ने तुरंत जवाब दिया – आप मेरी बदमाशी की वजह ही दूर कर दीजिए.
Chandrasekhar ने पूछा- आप वजह बताइये अभी दूर कर देते हैं.
नवाज बोले – आप हमें कश्मीर दे दें, बदमाशी दूर हो जाएगी.
Chandrasekhar ने कुछ देर नवाज की तरफ देखा और बोले– जाओ आपको कश्मीर दिया…
ये बात सुन कर नवाज शरीफ की तो जैसे लॉटरी लग गई थी.
नवाज बोले – चलिए एक कमरे में बैठकर बात करते हैं और कागजी काम करवाते हैं.
Chandrasekhar – इतनी भी क्या जल्दी है. बस इतना याद रखें कि हम कश्मीर के साथ आपको अपने देश के 15 करोड़ मुसलमान भी देंगे. आपको उन्हें भी अपने साथ लेना होगा. ये बात सुन कर शरीफ को झटका लगा… पूछने लगे इसका क्या मतलब है?

Chandrasekhar ने बहुत बढ़िया सा जवाब देते हुए कहा – आप मुसलमान आबादी के आधार पर हमसे कश्मीर तो ले लेंगे. लेकिन भारत के हर शहर, हर गांव में मुसलमान बसते हैं. आपके कश्मीर लेते ही देश में ये मांग उठेगी कि बाकि मुसलमानों को भी यहां से निकालो. दंगे भड़क सकते हैं… मेरे पास इतनी सेना या पुलिस नहीं की इन सबको कंट्रोल कर पाऊं. ऐसे में अगर आप 15 करोड़ भारतीय मुसलमानों को साथ लेने को तैयार हैं तो मैं अभी आपको कश्मीर देने का ऐलान करता हूं.
ये जवाब सुनकर नवाज शरीफ चुप हो गए. उनके पास कोई जवाब नहीं था. बताया जाता है कि इस घटना के बाद से नवाज शरीफ Chandrasekhar को भाई साहब कहने लगे थे.
खाड़ी युद्ध और अमेरिका की मनमानी

साल 1989 से 1991 सियासी उठापटक और सरकारों की अदला बदली का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा था. उसी वक्त खाड़ी युद्ध शुरू हो गया और रही सही कसर उसने पूरी कर दी. भारतीय अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर थी और खाड़ी युद्ध के चलते तेल के दाम आसमान छूने लगे थे. भारत को तेल आयात करने के लिए दोगुना पैसा खर्च करना पड़ रहा था. India का विदेशी मुद्रा भंडार तेज़ी से खाली हो रहा था. इसके बारे में रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में लिखते हैं – इराक अमेरिका का दुश्मन था इसलिए वो भी खाड़ी युद्ध में कूद पड़ा… लेकिन उसके भारत से अच्छे संबंध थे. भारत को IMF से कर्ज की ज़रूरत थी. लेकिन IMF में दो तिहाई से ज्यादा वोट अमेरिका के थे. कर्ज मिलना मुश्किल था. ऐसे में America ने भारत के आगे एक शर्त रखी. वो ये, कि अमेरिकी जहाज इराक पर हमला करेंगे तो उसकी लैंडिग के लिए बेस और रिफ्यूलिंग की जगह भारत उसे देगा. इसके बदले में वो भारत को कर्ज दिलाएगा. मरता क्या ना कहता वाले हालात में उस वक्त PM Chandrasekhar ने अमेरिका की शर्त मान ली.
देश का सोना गिरवी रखा

हालांकि America से मिलने वाली रकम से हमे बहुत बड़ी राहत नहीं मिलने वाली थी. फिर भी Chandrasekhar ने तब अपने वित्त सलाहकार मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और RBI गवर्नर S. वेंकटरमणन से बात करके देश का सोना गिरवी रखवा दिया. तब तक 1991 का फरवरी आ गई और कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया. Chandrasekhar जून तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे और इसी दौरान सोना गिरवी रखने की डील फाइनल हुई. जुलाई में RBI ने 46.91 टन सोना गिरवी रखा और 400 मिलियन डॉलर जुटाए. तब तक देश में नरसिम्हा राव की सरकार आ चुकी थी. लेकिन बड़ी बात ये रही कि उसी साल देश की अर्थव्यवस्था सुधरने लगी और गिरवी रखा सोना वापस खरीद लिया गया.
बेहद निडर और बेखौफ थे चंद्रशेखर

इसी तरह उनके PM रहते हुए एक और किस्सा बड़ा मशहूर है. Chandrasekhar को बेहद निडर और बेखौफ नेता माना जाता था… एक बार Punjab के अलगाववादी नेता सिमरनजीत सिंह मान लंबी तलवार के साथ उनसे मिलने PM House पहुंचे. सुरक्षाकर्मियों नें उन्हे रोकते हुए कहा कि आप तलवार के साथ PM से नहीं मिल सकते. सिमरनजीत मान भी अड़े रहे और उन्होने अपनी तलवार देने से मना कर दिया. Chandrasekhar तक ये बात पहुंची तो उन्होंने मान को तलवार के साथ आने की इजाजत दे दी. PM की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनके निजी सुरक्षा अधिकारी ने सावधानी के तौर पर दरवाजा आधा खुला छोड़ दिया था. वो बाहर से ही मान पर नजर रखे हुए थे. PM से बातचीत के बीच मान ने आधी तलवार खींची और बोले- ये पुरखों से मेरे पास है और बहुत घातक है. इस पर Chandrasekhar ने कहा- इसे म्यान में रखिए मान साहब… मेरे पुरखों के घर बलिया में है और इससे बड़ी तलवार वहां मौजूद है, जो इससे ज्यादा घातक और संहारक है. ये बात सुनकर मान के तेवर नर्म पड़ गए. तो कुछ इस तरह के थे देश के आठवें प्रधानमंत्री Chandrasekhar Singh. अगली मुलाकात देश के नौवें प्रधानमंत्री के साथ…
