
Pilibhit Poison Khir
Pilibhit Poison Khir कांड ने एक बार फिर सिस्टम की सच्चाई और नेताओं के दिखावे को सामने ला दिया। पूरनपुर में खीर खाने से बीमार हुए एक ही परिवार के 10 लोग अस्पताल पहुंचे, जिनमें दो की हालत गंभीर बनी हुई है। वहीं, Netaji का “संवेदनशील” visit लोगों को ज्यादा फोटो सेशन और कम मदद जैसा लगा। सवाल अब यही है—क्या Pilibhit Poison Khir जैसी घटनाओं पर नेताजी सिर्फ हाथ हिलाने आते हैं, या पीड़ितों के लिए कुछ कर भी पाते हैं?
लोकेशन-पीलीभीत। संवाददाता-सकुश मिश्रा
पूरनपुर में खीर खाने से एक ही परिवार के 10 लोग बीमार, 2 ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे… और नेताजी सिर्फ हाल-चाल पूछकर निकल लिए!
Pilibhit Poison Khir: नेताजी आए, देखा और मीडिया को दिखाकर चले गए!
पूरनपुर की उस दर्दनाक शाम को भूल पाना शायद उस परिवार के लिए आसान नहीं होगा, जहां खीर खाते ही पूरा कुनबा अस्पताल जा पहुंचा। लेकिन नेताजी को देखिए — जैसे ही कैमरे चमके, चेहरे पर संवेदना का सॉफ्टवेयर इंस्टॉल हुआ और तुरंत हाथ जोड़ते हुए बोले: “हम परिवार के साथ हैं।”
लेकिन बड़ा सवाल है: इलाज में कोई आर्थिक मदद की? कोई सरकारी सहायता की पेशकश की? या फिर सिर्फ दिखावे के लिए अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ीं?
नेताजी का ‘मेडिकल फोटोशूट’?
Pilibhit Poison Khir की घटना के बाद विधायक बाबूराम पासवान अस्पताल पहुंचे, लेकिन वहां जो दिखा वो जनप्रतिनिधि कम, कैमरा-प्रेमी नेता ज्यादा लगे।
स्थानीय लोगों का कहना है, “नेताजी सिर्फ कैमरे के सामने हाथ पकड़ने और दो मिनट की संवेदना जताने आए थे। इलाज में एक रुपये की मदद तक नहीं दी।” हां इलाज के नाम पर सीएमओ से बात जरूर कर ली। लगे हाथ बेहतर इलाज कराने का निवेदन भी कर दिया। अरे भाई, नेताजी इतना तो कर ही सकते हैं ना, जुबान से बोलने में क्या जाता है, जेब तो ढीली नहीं हो रही थी ना।
परिवार की हालत गंभीर, नेता की भावनाएं ‘गंभीर अभिनय’
सुमेरलाल का पूरा परिवार उल्टी-दस्त और चक्कर के चलते बेदम पड़ा है। आहान (3) और श्रद्धा (6) जैसे मासूम ज़िंदगी से जूझ रहे हैं। डॉक्टर कह रहे हैं कि हालत चिंताजनक है। दोनों को जिला अस्पताल भी रेफर कर दिया गया है।
और उधर नेताजी? अस्पताल में 10 मिनट रुककर, मीडिया को दो लाइन बोलकर निकल लिए। क्या इतना ही होता है जनसेवा?
Pilibhit Poison Khir:जनता पूछ रही है: इलाज में हाथ क्यों नहीं बंटाया नेताजी?
नेताजी जी, एक सवाल है —
“केवल फोटो खिंचवाकर खबरों में आना था या वाकई मदद का मन भी था?”
जिनके बच्चे ICU में हैं, क्या उन्हें सिर्फ संवेदना से राहत मिलेगी? अगर आपकी पार्टी की सरकार है, तो तुरंत आर्थिक मदद क्यों नहीं पहुंची? लोग कह रहे हैं कि, नेताजी की संवेदना सियासत की शुगर में डूबी मिली — मीठी बातें, फीकी मदद और कैमरा-फ्रेंडली करुणा! अब जनता पूछ रही है — नेताजी, खीर में ज़हर था या राजनीति में?”गांव वाले भी अब कान में कान डालकर यही कह रहे हैं — नेताजी को तो बस खीर से फोटो चाहिए था, इलाज की चिंता तो डॉक्टर और भगवान जाने। अगर आज मीडिया न होता, तो शायद ये संवेदना भी ‘दूरदर्शन’ में बदल जाती। और जो हाल खीर का हुआ, वही हालत उस राजनीति की हो गई है जो मौके पर पहुंच तो जाती है, मगर मदद को हाथ नहीं बढ़ाती। नेताजी ने पीड़ित परिवार के इलाज के लिए कोई आर्थिक मदद दी, इसकी पुष्टि अभी तक किसी ने नहीं की। तो फिर सवाल सीधा है — क्या नेताजी केवल अस्पताल में चेहरा दिखाने आए थे या वाकई साथ में इंसानियत भी लाए थे?