 
                                                      
                                                Pilibhit: 3-Month-Old Baby Girl Thrown by father
Pilibhit Crime-उसने जब इस दुनिया में अपनी नन्ही आँखें खोली होंगी, तो शायद सोचा होगा कि एक पिता की गोद दुनिया की सबसे महफूज पनाहगाह होती है। उसे क्या पता था कि वही गोद, वही हाथ, एक दिन सिर्फ इसलिए उसके दुश्मन बन जाएंगे क्योंकि उसने एक बेटी के रूप में जन्म लिया है। पीलीभीत से आई ये खबर आपकी आँखों को नम कर देगी और आपकी रूह को झकझोर कर यह पूछने पर मजबूर कर देगी कि हम कैसे समाज में जी रहे हैं? एक बाप ने अपनी तीन महीने की मासूम बच्ची को बेड पर पटक दिया,और मां के साथ हैवानियत की उसे बयां नहीं किया जा सकता।
Pilibhit Crime: वो बाप नहीं, बेटी का जल्लाद था… फरहान!
बेटी जब पैदा होती है, तो सबसे पहले उसके रोने की आवाज़ सुनकर मां रोती है… और बाप मुस्कुराता है।
बेटी जब उंगली पकड़ती है, तो बाप पूरी दुनिया छोड़ देने को तैयार हो जाता है।
लेकिन फरहान?
उसने तो बाप शब्द की तौहीन कर दी…
तीन महीने की नन्ही जान को अपनी बीवी की गोद से उठाया, और बिस्तर पर पटक दिया…
बिस्तर नहीं, मानो मौत की चौकी थी…
क्यों?
क्योंकि वो बेटा नहीं थी!
क्योंकि फरहान को वंश चलाने वाला वारिस चाहिए था, गोद में मुस्कुराती बच्ची नहीं।
Pilibhit Crime: बेटी को फेंका, जैसे कोई खराब सामान हो…
तीन महीने की बच्ची कुछ बोल नहीं सकती थी, लेकिन उसकी आंखों में सवाल थे।
क्या सिर्फ इसलिए उसे पटक दिया गया क्योंकि उसने लड़की बनकर जन्म लेने की ‘गलती’ कर दी?
उसकी हड्डियों में दूध की जगह अभी ममता दौड़ रही थी,
लेकिन फरहान जैसे नरपिशाच के लिए वो सिर्फ एक ‘बोझ’ थी।
जब मां ने रोका, तो उसे पीटा गया।
कपड़े फाड़े गए, बदन को नोचा गया।
औरत होने की सज़ा, बेटी पैदा करने की सज़ा, इंसानियत की सज़ा—सब एक साथ दी गईं।
बेटी वो होती है, जो बाप की मुस्कान होती है… पर फरहान के लिए वो कलंक थी!
हर बेटी के पीछे एक बाप होता है जो कहता है—”मेरी रानी आ गई।”
वो स्कूल छोड़ने जाता है, हाथ पकड़कर चलना सिखाता है।
लेकिन फरहान?
उसने तो बाप नामक रिश्ते को दलदल बना दिया।
जिस बेटी को सीने से लगाकर दिल धड़कता है, उसे इसने ज़मीन पर फेंक दिया।
क्योंकि वो ‘लड़की’ थी…
बेटा चाहिए था, जो ‘नाम’ बढ़ाए…
Pilibhit Crime: FIR दर्ज, अस्पताल में मां-बेटी, पर सोच अब भी ICU में है!
हां, पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है।
डॉक्टर कह रहे हैं—“बच्ची की हालत स्थिर है।”
पर क्या फरहान की सोच भी स्थिर हो गई है?
क्या उसकी मां गुलशन, बहन सिम्मी और देवर उवेश को भी ज़रा सा पछतावा है?
नहीं…
क्योंकि ये वही समाज है,
जो ‘बेटी बचाओ’ का पोस्टर लगाकर बेटियों को ही गटर में फेंक देता है।
Pilibhit Crime बताता है कि अस्पताल में सिर्फ शरीर जाता है,
सोच को ICU में भर्ती करने वाला कोई कानून नहीं बना।
बेटी बचाओ सिर्फ टैगलाइन है, पीलीभीत की सच्चाई में बेटी ‘माफ नहीं’ की जाती!
सरकारी स्कूलों की दीवारें रंगी हैं—“बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ” से।
नेता भाषणों में चिल्लाते हैं—“बेटी नहीं होगी तो बहू कहां से लाओगे?”
लेकिन जब फरहान ने अपनी बेटी को फेंका,
तो न कोई महिला आयोग आया, न कोई मंत्री।
सन्नाटा गूंज रहा है पीलीभीत की गलियों में,
क्योंकि बेटी सिर्फ टीवी एड में प्यारी होती है,
असल ज़िंदगी में वो आज भी बोझ है।
ये है हमारी असलियत, और Pilibhit Crime उसका सबसे खौफनाक चेहरा।
तीन महीने की बच्ची अब भी कांप रही है—न मां की गोद में, न बाप की याद में…
वो मासूम बच्ची अस्पताल में है।
उसकी धड़कनों में अब भी बिस्तर की गूंज है,
जहां उसकी पीठ से ज़्यादा आत्मा चोटिल हुई थी।
डॉक्टर कहते हैं—“बच गई।”
पर हम पूछते हैं—“किससे?”
उस बाप से?
जो बेटी को न पहचान सका, न समझ सका?
जिसे गोद में मुस्कराती जान भी भारी लगती है?
ऐसे फरहान को बाप कहना, हर बाप का अपमान है।
अगर आप चुप हैं, तो फरहान के बराबर खड़े हैं…
ये खबर सिर्फ एक FIR की नहीं,
ये खबर आपके ज़मीर की है।
अगर आप अब भी खामोश हैं,
अगर आपकी आंखें नम नहीं, और मुट्ठियां बंद नहीं…
तो जान लीजिए—फरहान अकेला नहीं है।
वो हर घर में है, हर सोच में है, हर ताने में है।
बेटी बचानी है तो नारा नहीं, जज़्बा चाहिए।
वरना अगली बार कोई और फरहान, किसी और गोद को लहूलुहान करेगा।

 
         
         
         
        