
Operation Sindoor ऑपरेशन सिंदूर का बिहार चुनाव पर प्रभाव
Operation Sindoor and Pakistan Ceasefire: बिहार चुनाव 2025 में NDA को फायदा या BJP को नुकसान?
भारत के नियंत्रण रेखा (LoC) पर चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर'(‘Operation Sindoor’) के तुरंत बाद पाकिस्तान के साथ घोषित सीजफायर ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। खासकर बिहार जैसे संवेदनशील और रणनीतिक राज्य में इसका चुनावी असर गहराई से महसूस किया जा सकता है। यह सवाल ज़रूरी हो गया है कि क्या यह फैसला NDA (BJP-JDU गठबंधन) को फायदा पहुंचाएगा या फिर विपक्षी दल इस पर हमला बोलकर चुनावी समीकरण बदल देंगे?

🔶 राष्ट्रवाद बनाम यथार्थवाद की जंग: चुनावी रणभूमि में ‘Operation Sindoor’
‘Operation Sindoor’ भारत सरकार और सेना द्वारा नियंत्रण रेखा (LoC) के पार की गई एक साहसिक सैन्य कार्रवाई थी, जिसमें पाकिस्तान की ओर बने आतंकी लॉन्चपैड्स को निशाना बनाया गया। इसे भारतीय मीडिया और सरकारी मशीनरी ने राष्ट्रवादी भावना के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया। इस ऑपरेशन की टाइमिंग ऐसे वक्त हुई जब देश का राजनीतिक तापमान बिहार चुनाव 2025 के कारण पहले से ही गर्म था। बीजेपी ने इसे ‘मजबूत नेतृत्व’ और ‘राष्ट्र की सुरक्षा को प्राथमिकता’ देने का उदाहरण बताया है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि फिर एक बार एक दृढ़ निर्णय लेने वाले नेता के रूप में उभरी है।

वहीं, विपक्ष ने इसे एक रणनीतिक प्रचार कदम करार दिया है, जो चुनावों से ठीक पहले जनता की भावना को भुनाने के लिए डिजाइन किया गया है। हालांकि सेना की भूमिका पर किसी ने सवाल नहीं उठाया, लेकिन यह जरूर कहा गया कि इसे जिस तरह मीडिया में पेश किया गया, वह पूरी तरह चुनाव-प्रेरित था। इस बयानबाज़ी के चलते बिहार की जनता के बीच भी इस ऑपरेशन को लेकर बहस शुरू हो गई है – क्या ये असली सुरक्षा नीति थी या चुनावी स्क्रिप्ट? BJP इसे बिहार चुनाव में राष्ट्रवाद के मुद्दे के रूप में भुनाने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने इस सैन्य कार्रवाई को “नए भारत” की ताकत और आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के प्रतीक के रूप में पेश किया है।

🔷 पाकिस्तान के साथ सीजफायर: शांति का कदम या जनता को भ्रम?
‘Operation Sindoor’ के कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान के साथ औपचारिक सीजफायर की घोषणा ने सभी को चौंका दिया। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों ने साझा बयान जारी कर सीमा पर शांति बनाए रखने की बात की। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह एक बड़ा कूटनीतिक कदम था, लेकिन इसकी टाइमिंग ने इस पर भी राजनीतिक संदेह खड़े कर दिए। राष्ट्रवाद की गर्मी के बाद अचानक आई ‘शांति’ की ठंडक ने बीजेपी की रणनीति को थोड़ा उलझा दिया है।बीजेपी इसे ‘डिप्लोमैटिक संतुलन’ बता रही है — पहले सैन्य शक्ति का प्रदर्शन और फिर वार्ता की पहल। लेकिन विपक्ष इसे दोहरे चेहरे की राजनीति कह रहा है।

कांग्रेस ने तीखे शब्दों में कहा, “जब सैनिक जान दे रहे थे, तब सरकार सीजफायर की बात कर रही थी।”कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सवाल उठाया है कि, “ऑपरेशन सिंदूर को किसके दबाव में अचानक रोक दिया गया?” उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर तंज कसते हुए कहा, “क्या जयशंकर नए दौर के जयचंद हैं?” कांग्रेस ने PM मोदी पर “फोटो-ऑप” का आरोप लगाया और दावा किया कि ऑपरेशन सिंदूर को केवल चुनावी लाभ के लिए बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ऑपरेशन के दौरान खोए गए भारतीय वायुसेना के जेट विमानों की संख्या पर सवाल उठाए, जिसे BJP ने “राष्ट्रीय हितों के खिलाफ” और “पाकिस्तान की भाषा बोलने” वाला बताया।

BJP प्रवक्ता गौरव भाटिया ने राहुल गांधी को “निशान-ए-पाकिस्तान” करार देते हुए उनकी टिप्पणियों को गैर-जिम्मेदाराना बताया।विपक्ष का यह भी आरोप है कि BJP ऑपरेशन सिंदूर को बिहार चुनाव में वोटों के लिए इस्तेमाल कर रही है, जिससे स्थानीय मुद्दे जैसे बेरोजगारी, पलायन और बुनियादी ढांचे की कमी पीछे छूट रहे हैं।
सोशल मीडिया पर भी ‘Operation Sindoor’की जंग
🔴 बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर ‘Operation Sindoor’की बुआई
बिहार में चुनावों की दिशा कई बार सिर्फ स्थानीय मुद्दों से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय घटनाओं से भी तय होती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बालाकोट स्ट्राइक के बाद बीजेपी को राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जबरदस्त समर्थन मिला था। अब एक बार फिर उसी मॉडल को ‘Operation Sindoor’ और उसके बाद पाकिस्तान के साथ सीजफायर के रूप में दोहराने की कोशिश की जा रही है। बीजेपी इसे “राष्ट्र पहले” के नैरेटिव से जोड़ रही है, जबकि विपक्ष इस तर्क को “चुनावी पाखंड” कहकर खारिज कर रहा है।

इसमें दो राय नहीं कि,ऑपरेशन सिंदूर ने BJP और NDA को एक मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा का नैरेटिव दिया है, जो शहरी और युवा मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है। जानकारों का कहना है कि पहलगाम हमले के बाद जनता में पाकिस्तान को लेकर गुस्सा है, और यह राष्ट्रवाद का माहौल NDA के पक्ष में जा सकता है।

🔵 NDA बनाम विपक्ष: रणनीति, सोशल मीडिया और ज़मीन की सच्चाई
NDA ने ऑपरेशन सिंदूर को हाईलाइट करने के लिए सोशल मीडिया पर #OperationSindoor और #ModiSecurityDoctrine जैसे हैशटैग्स ट्रेंड करवाए हैं। बीजेपी के नेता रैलियों में इसका ज़िक्र कर रहे हैं और इसे “मोदी के नेतृत्व की ताकत” कह रहे हैं। उधर कांग्रेस, RJD और वाम दलों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि “अगर सीजफायर ही करना था तो ऑपरेशन क्यों किया गया?”

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती है — अपने संदेश को ज़मीन पर ले जाना। अगर वे गांव-गांव जाकर यह समझा पाए कि यह ऑपरेशन और सीजफायर दोनों चुनावी स्टंट हैं, तो वे लाभ कमा सकते हैं। लेकिन अगर बीजेपी इस नैरेटिव को जनता तक पहले और प्रभावी तरीके से पहुँचा देती है, तो विपक्ष का हमला फीका पड़ सकता है।। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह राष्ट्रवादी नैरेटिव इन पारंपरिक समीकरणों को तोड़ने में सक्षम होगा? या फिर यह मुद्दा जनता के ज़हन में सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी तक सीमित रह जाएगा?चुनाव का परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन सा गठबंधन अपने नैरेटिव को मतदाताओं तक प्रभावी ढंग से पहुंचा पाता है। अगर BJP राष्ट्रवाद और सामाजिक न्याय के मिश्रण को सही तरीके से पेश कर पाई, तो उसे लाभ हो सकता है। लेकिन अगर विपक्ष स्थानीय मुद्दों और सीजफायर की आलोचना को प्रभावी ढंग से उठा पाया, तो BJP के लिए यह महंगा पड़ सकता है।
Yes, you are right in your thinking.