Nepal Protest: PM OLI वो गलतियां, जिसने नेपाल को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया !
Nepal Protest Update
Nepal Protest:नेपाल एक बार फिर राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। राजधानी काठमांडू की सड़कों पर हजारों युवा उतरे हैं, सरकार के खिलाफ नारे लग रहे हैं, और ‘Gen-Z Revolution’ नामक यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैलता जा रहा है। इसका केंद्रबिंदु है सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और उससे उपजा असंतोष। लेकिन यह असंतोष केवल एक फैसले तक सीमित नहीं है, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कुछ अहम नीतिगत और राजनीतिक गलतियां आज उनकी कुर्सी पर संकट बनकर मंडरा रही हैं।
1. सोशल मीडिया बैन: युवा शक्ति की अनदेखी
पिछले हफ्ते नेपाल सरकार ने फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाया। सरकार का दावा था कि ये कंपनियां नेपाल की आईटी नीतियों के तहत पंजीकृत नहीं हैं, लेकिन जनता ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना। खासकर युवा वर्ग ने इसे अपनी आवाज़ दबाने की कोशिश समझा, और सड़कों पर उतर आया।
अब तक 20 से अधिक प्रदर्शनकारी मारे जा चुके हैं, सैकड़ों घायल हुए हैं, और हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि सरकार का यह कदम जनता से कटाव और जनमत की अनदेखी का परिणाम है।
2. भारत से तनाव, चीन से यारी: असंतुलित विदेश नीति
भारत और नेपाल सदियों से सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यापारिक साझेदार रहे हैं। लेकिन ओली सरकार ने भारत के साथ सीमा विवाद को हवा देते हुए नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें भारत के कुछ क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा बताया गया। इससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव आया, और नेपाल को आर्थिक एवं कूटनीतिक नुकसान उठाना पड़ा।
वहीं चीन से नजदीकियां बढ़ाने के चक्कर में नेपाल ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसे कर्ज-आधारित प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी, जिससे देश पर आर्थिक बोझ बढ़ गया। यह नीति नेपाल की संप्रभुता और पारदर्शिता के लिए घातक सिद्ध हो रही है।

3. हिंदू राष्ट्र की मांग को अनदेखा करना
नेपाल, जो कभी दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र हुआ करता था, आज धर्मनिरपेक्ष गणराज्य है। लेकिन बहुसंख्यक जनता की ओर से हिंदू राष्ट्र की मांग लगातार उठती रही है। ओली सरकार ने इस मांग को दरकिनार कर धर्मनिरपेक्षता को मजबूती देने वाले कदम उठाए, जिससे उनके पारंपरिक वोट बैंक में नाराज़गी फैली।
इस मुद्दे ने खासकर ग्रामीण और पारंपरिक मतदाताओं में असंतोष बढ़ाया है और विपक्ष इसे लगातार भुना रहा है।
4. राजनीतिक संस्थाओं का दुरुपयोग
पीएम ओली पर संविधान और संस्थाओं के दुरुपयोग के भी गंभीर आरोप हैं। 2021 में संसद को भंग करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक ठहराया। इसके अलावा, विपक्षी नेताओं पर मुकदमे, निर्वाचन आयोग और न्यायपालिका पर दबाव डालने जैसे कदमों से ओली की लोकतांत्रिक छवि को नुकसान पहुंचा।
यह सत्ता की केंद्रीकरण की कोशिश मानी गई, जिसने ना सिर्फ विपक्ष, बल्कि आम जनता और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को भी सरकार के खिलाफ कर दिया।
5. भ्रष्टाचार और बेरोजगारी: जनता का टूटता विश्वास
नेपाल में भ्रष्टाचार के मामलों ने जनता का भरोसा सरकार से छीन लिया है। टेलीकॉम घोटाले से लेकर एयरपोर्ट निर्माण में भ्रष्टाचार और वीजा स्कैम तक – ओली सरकार सवालों के घेरे में रही है।
देश की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी है, रोजगार के अवसर घटे हैं, और महंगाई बढ़ी है। ऐसे में, जब सरकार चीन के प्रोजेक्ट्स और विदेश नीति पर ज्यादा ध्यान देती है, तो आम जनता खुद को उपेक्षित महसूस करती है। यही कारण है कि युवा वर्ग आज सड़कों पर आकर अपने भविष्य के लिए आवाज़ उठा रहा है।
Nepal Protest और चुनौती
प्रधानमंत्री ओली की सरकार आज जिन चुनौतियों का सामना कर रही है, वो अचानक नहीं आईं। यह जनता से संवाद की कमी, युवाओं की अनदेखी, असंतुलित विदेश नीति और भ्रष्टाचार की श्रृंखला का परिणाम है। अगर समय रहते इन गलतियों को नहीं सुधारा गया, तो यह आंदोलन केवल सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक दिशा को भी बदल सकता है।
