किसानों की बैठक में हंगामा
Naresh Tikait के भांजे की मौजूदगी से किसान दिवस ने अपना असली रंग दिखा दिया—खून, पसीना, और कुछ ज़्यादा ही एक्शन! बागपत के विकास भवन में बुधवार को किसान दिवस मनाया जाना था, लेकिन मनाते-मनाते माहौल कुछ ऐसा बना कि कुर्सियां सर के ऊपर से और बयान सोशल मीडिया पर उड़ने लगे। किसान दिवस, जहां मसलों पर चर्चा होनी थी, वहां हाथों की चर्चा हो गई।
Naresh Tikait के भांजे यानी राजेंद्र चौधरी और उनके साथी बिजेंद्र प्रधान पर आरोप है कि उन्होंने भाकियू अराजनीतिक के जिलाध्यक्ष और रिटायर्ड दरोगा चौ. नरेशपाल सिंह पर किसानी कुश्ती का ऐसा दांव चला दिया कि दरोगा जी खुद ‘संवेदनशील अंग’ पकड़कर बैठ गए। और हां, ये सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि साजिशन ‘मारो’ प्लान लग रहा है, क्योंकि 12 अज्ञात भी थे लाइन में, जैसे कोई पंचायत की प्रैक्टिस चल रही हो।
मुकदमा दर्ज, Tikait परिवार में फिर बखेड़ा
Naresh Tikait के भांजे पर मुकदमा दर्ज होते ही पूरे इलाके में व्हाट्सएप यूनिवर्स जल उठा। कोतवाली पुलिस ने कार्रवाई की और मौजिजाबाद नांगल के प्रधान बिजेंद्र और दोघट निवासी राजेंद्र के नाम पर केस लिखा, मतलब अब ये ‘किसान दिवस मामला’ सीधे FIR तक पहुंच गया। अब देखना ये होगा कि ये मामला कितने एपिसोड तक खिंचता है और इसका क्लाइमेक्स हाई कोर्ट में होता है या सोशल मीडिया की अदालत में।
भांजा बोले – “मैं तो मुजफ्फरनगर में था!”
Naresh Tikait के भांजे राजेंद्र चौधरी ने इस पूरे हंगामे को लेकर बयान दिया जो किसी टीवी सीरियल की एंट्री जैसा लगा—“मैं तो किसान दिवस में था ही नहीं! मैं तो मुजफ्फरनगर में था, काम से!” मतलब, ये वही एंट्री है जहां हीरो को फंसाने की पूरी साजिश चल रही हो और वो मासूमियत से कैमरे में देखकर कहे: “मैं तो सीन में आया ही नहीं था!”
अब सवाल ये है कि जब भांजा वहां नहीं था तो उसका नाम कैसे आ गया? कहीं ये राजनीति की पुरानी स्क्रिप्ट तो नहीं, जहां हर कांड में भांजा/भतीजा ही फंसता है और असली विलेन पान चबाते हुए दूर से तमाशा देखता है?
किसान दिवस या WWF लाइव?
Naresh Tikait के भांजे की एंट्री ने इस बार किसान दिवस को किसानों की समस्याओं से निकालकर सीधे WWE स्टाइल एंटरटेनमेंट में बदल दिया। रिटायर्ड दरोगा को चोट भी आई, संवेदनशील अंगों पर वार भी हुआ, और FIR भी दर्ज हो गई — क्या चाहिए एक कंप्लीट पॉलिटिकल ड्रामा के लिए?
ध्यान दीजिए, इस पूरे मामले में Naresh Tikait के भांजे का नाम हर जगह गूंज रहा है, जैसे वो किसी चुनावी मंच पर नहीं, बल्कि मुक्केबाज़ी के अखाड़े में उतर चुके हों।
अगली बार जब आप किसान दिवस पर विकास भवन जाएं, तो हेलमेट पहनकर और दस्ताने लगाकर ही जाएं। क्योंकि अब मुद्दे नहीं, मुक्के चलते हैं — और भांजे का नाम आते ही माहौल अराजनीतिक नहीं, पूरी तरह ‘आक्रामक’ हो जाता है!
बागपत। राहुल चौहान।
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