 
                  Muradabad NEWS–लोकसभा स्पीकर ओम बिरला मुरादाबाद पहुंचे और संविधान-साहित्य पाठ वाटिका का लोकार्पण किया। उन्होंने शहर की ऐतिहासिक और साहित्यिक विरासत की तारीफ की और मुरादाबाद को आत्मनिर्भर भारत की आत्मा बताया। लेकिन इस चमचमाते आयोजन के बीच सवाल अब भी वही हैं—क्या संविधान की वाटिका से भूख, बेरोजगारी और सड़कों के गड्ढे भरेंगे या फिर यह सिर्फ सियासी सजावट का एक और अध्याय है?
मुरादाबाद में ओम बिरला का ‘संविधान-साहित्य पाठ वाटिका’ लोकार्पण: पीतल की माला में फूंक-फूंक कर पढ़े गए अनुच्छेद!
Muradabad NEWS। जहां एक तरफ शहर के मज़दूर आज भी टूटी सड़कों पर हाड़तोड़ मेहनत करके पेट पालते हैं, वहीं मंगलवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला जी संविधान और साहित्य की महकती वाटिका का लोकार्पण करने चले आए। जी हां, वही मुरादाबाद, जिसे नेता चुनावी मौसम में ‘पीतल नगरी’ कहकर खूब चमकाते हैं, मगर मानसून आते ही जहां की गलियां कीचड़ से लबालब हो जाती हैं। संविधान अब वाटिका में पढ़ाया जाएगा – ताकि जनता पेड़ के नीचे बैठकर अनुच्छेद 14 के सपने देख सके!
Muradabad NEWS-पीतल के शहर में अब संविधान की माला: वोटर नहीं, अब पाठक तैयार कीजिए!

ओम बिरला जी ने जब माइक पकड़ा, तो ऐसे बोले मानो संविधान की आत्मा उनके अंदर समा गई हो। बोले, “मुरादाबाद आत्मनिर्भर भारत की आत्मा है!” अब ये आत्मा सड़क किनारे खोमचे लगाते युवक में कितनी समाई है, ये तो वही जानें, जिसे रोज़ पटरी से हटाया जाता है। लेकिन वाटिका ज़रूर बनेगी – जहां बच्चे ‘संविधान’ पढ़ेंगे और बड़े ‘रोज़गार’ ढूंढते-ढूंढते साहित्य के दोहे याद करने लगेंगे। वाह री योजना!
साहित्यिक गाथा या सियासी शंखनाद? वाटिका से जागेगा वोटर का विवेक या नेता की लोकप्रियता?
कार्यक्रम के दौरान शहर की ‘साहित्यिक विरासत’ की खूब तारीफ हुई – जैसे हर नुक्कड़ पर कोई निराला या प्रेमचंद बैठा हो! ओम बिरला बोले, “मुरादाबाद की मिट्टी में आत्मनिर्भर भारत की आत्मा बसती है।” अब बताइए, मिट्टी में आत्मा और आत्मा में मिट्टी – दोनों का ऐसा मेल कि रोजगार की बात करते-करते लोग कविता लिखने लगें। कहने को तो संविधान-साहित्य वाटिका है, लेकिन चुनाव नजदीक हों तो हर पौधा वोटर लिस्ट से जुड़ा दिखता है।
Muradabad NEWS-1857 की क्रांति और 2025 की वाटिका: बीच का सफर गड्ढों से भरा है!
ओम बिरला ने कहा कि मुरादाबाद 1857 की क्रांति की गवाह रहा है। बिल्कुल सही! लेकिन तब भी जनता हथियारों से लड़ी थी, और आज गड्ढों, बेरोजगारी और अस्पतालों की बदहाली से जूझ रही है। फर्क बस इतना है कि तब अंग्रेज़ थे, अब अफसरशाही है। तब तलवारें थीं, अब फाइलें हैं। और इन सबसे निपटने के लिए अब संविधान वाटिका तैयार है – जहां जाकर जनता अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) पढ़ सकती है, लेकिन अस्पताल में इलाज की तारीख़ फिर भी अगले महीने मिलेगी।
बच्चों को संविधान पढ़ाइए, नेताओं को याद दिलाइए!
बताया गया कि इस वाटिका में आने वाली पीढ़ियों को संविधान और साहित्य की शिक्षा दी जाएगी। वाह! अब बच्चे अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता) पढ़ेंगे, और फिर ट्यूशन के बाद सड़कों पर ट्रैफिक पुलिस से पूछेंगे – “सर, क्या मैं यहां स्वतंत्र रूप से चल सकता हूं?” वहीं नेता अनुच्छेद 44 (समान नागरिक संहिता) पर भाषण देंगे, लेकिन खुद तीन-तीन पेंशनें लेते रहेंगे।
Muradabad NEWS-वाटिका तो बन गई, अब विचारों में खाद कौन डालेगा?
मुरादाबाद की इस संविधान-साहित्य वाटिका का लोकार्पण भले ही एक भव्य आयोजन रहा हो, लेकिन असल सवाल यही है – क्या इससे जनता की ज़िंदगी बदलेगी या सिर्फ मंचों की स्क्रिप्ट? क्या इस वाटिका में उम्मीदों के पौधे उगेंगे या फिर घोषणाओं की बेलें ही लिपटी रहेंगी?
क्योंकि संविधान पढ़ना अच्छी बात है, लेकिन जब पेट खाली हो, तब साहित्य भी भूख की कविता बन जाता है।

 
         
         
         
        