Morarji Desai, Former Prime Minister
Morarji Ranchhodji Desai. देसाई ने क्यों कहा था चौधरी चरण सिंह का चूरण बना दूंगा? कैसे दो बार टूटा था PM बनने का सपना? Inside Story||
New Delhi – Prime Minister Series के अपने पिछले एपिसोड में हमने आपको बताया कि कैसे दो बार मोरारजी देसाई का PM बनने का सपना टूट चुका था. वो दो बार देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए. क्योंकि उनके अड़ियल रवैय्ये की वजह से Congress Syndicate के लोग उन्हे पसंद नहीं करते थे. लेकिन अब देसाई का सपना साकार होने जा रहा था. कांग्रेस में रहते न सही, तो कांग्रेस के बिना ही सही. आखिरकार उनका 25 साल पुराना ख्वाब पूरा हो रहा था. ये बात 1975 की है जब इंदिरा गांधी ने अपनी तानाशाही के चलते देश पर ज़बरदस्ती देश पर इमरजेंसी थोपी थी. करीब 2 साल तक इमरजेंसी का दंश झेलने की वजह से देश के लोगों में इंदिरा के खिलाफ काफी गुस्सा था. वो इंदिरा से नफरत करने लगे थे. साल 1977 आया तो Indira Gandhi ने देश में आम चुनाव कराए. इंदिरा को ये भी अंदाज़ा नहीं था कि ना सिर्फ विपक्षी दल बल्कि देश की जनता भी उन्हे अब प्रधानमंत्री पद पर नहीं देखना चाहती. वहीं दूसरी तरफ इंदिरा को सत्ता से हटाने के लिए तमाम विपक्षी दल एक साथ आ चुके थे. Indira का खेल बिगाड़ने के लिए सबने जनता पार्टी से हाथ मिला लिया था. तब आम चुनाव में Janta Party को 345 सीटें मिली थीं और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनने जा रही थी.
जगजीवन राम ने अटल बिहारी को दिया डिप्टी पीएम का ऑफर

कांग्रेस को करारी शिकस्त देकर जनता पार्टी की सरकार तो बन गई लेकिन हाल एक अनार सौ बीमार वाला था. क्योंकि जीत के बाद हर पार्टी का नेता देश का प्रधानमंत्री बनना चाहता था. पीएम की रेस में सबसे आगे फिर से Morarji Desai, Babu Jagjivan Ram, Chaudhary Charan Singh और Chandrashekhar जैसे कुछ बड़े नाम थे. देसाई तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब सजा चुके थे. नेहरू और शास्त्री की मौत के बाद भी वो खुद के पीएम बनने का दावा कर चुके थे, लेकिन कांगेस सिंडिकेट ने उनके सपनों पर फानी फेर दिया था. अब जनता पार्टी गठबंधन में वो सिंडिकेट तो नहीं था लेकिन वहां से टूट कर आए कुछे नेता ज़रूर थे, जो नहीं चाहते थे कि देसाई PM बनें… बताया जाता है कि उस वक्त जनता पार्टी गठबंधन में भारतीय जनसंघ गुट को 345 में से 102 सांसद मिले थे. लेकिन उसने पीएम पद के लिए दावा नहीं किया. RSS ने तब Wait & Watch की रणनीति अपनाई थी. कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का सबसे बुरा हाल हुआ जिसे सिर्फ 28 सीटें ही मिली थीं. जगजीवन राम को भारतीय जनसंघ के 102 सांसदों के साथ सोशलिस्ट ब्लॉक के 35 सांसदों का भी समर्थन मिला हुआ था. उनका कहना था कि उन्हें पूरे देश में हरिजन और दलितों का समर्थन प्राप्त है. उन्होने दावा किया कि उन्होंने इंदिरा सरकार से इस्तीफा दिया था तभी कांग्रेस हारी थी… इस वजह से उन्हे पीएम बनने का मौका दिया जाना चाहिए. जगजीवन राम ने अटल बिहारी वाजपेयी से भी वादा किया था कि अगर वो उन्हें समर्थन देते हैं तो वाजपेयी को डिप्टी पीएम बना देंगे.
मोरारजी देसाई के नाम पर मंथन शुरू हुआ
कुल मिलाकर हर कोई नेता खुद को स्वयं-भू प्रधानमंत्री मान चुका था. ये सब देख कर चौधरी चरण सिंह ने आचार्य जेबी कृपलानी को बुलाया और कहा कि जनता गठबंधन की राजनीति पूरी तरह से उनके दिमाग की उपज है. जनता पार्टी को बड़ी जीत उनकी वजह से ही मिली है. इसीलिए उन्हें ही प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए. उस समय जेपी नारायण और जेबी कृपलानी मार्गदर्शक और निर्णायक की भूमिका में थे. सरकार और प्रधानमंत्री बनाने का सारा काम चार गांधीवादी नेता के.एस राधाकृष्ण, नारायणभाई देसाई, सिद्धराज ढड्ढा और गोविंद राव देशपांडे के हाथ में था. राजनीतिक विश्लेषक रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद बताते हैं “मेरे मामा के.एस राधाकृष्ण गांधी शांति प्रतिष्ठान के प्रमुख थे. वे दशकों तक जेपी नारायण के सबसे करीबी सलाहकार थे. उन्होंने अपने साथियों नारायणभाई देसाई, सिद्धराज ढड्ढा और गोविंद राव देशपांडे के साथ मिलकर सोचा कि जगजीवन राम या चरण सिंह में से कोई भी प्रधानमंत्री के रूप में देश के लिए विनाशकारी हो सकता है. क्योंकि चरण सिंह और जगजीवन राम एक-दूसरे से नफरत करते थे. दोनों में से किसी एक को पीएम बनाया जाता है तो दूसरा उसे सत्ता से हटाने के लिए षडयंत्र रचता रहेगा. यही वजह थी कि JB Kriplani और JP Narayan ने इनके नाम पर सोच विचार करना ही बंद कर दिया. और मोरारजी देसाई के नाम पर मंथन किया जाने लगा”.
गांधीवादियों की चौकड़ी ने रची पूरी पटकथा

लेकिन अब एक समस्या और थी… मोरारजी और जेपी के बीच दशकों से व्यक्तित्व को लेकर टकराव चल रहा था. मोरारजी जेपी से छह साल बड़े थे और वो खुद को Jawaharlal Nehru का असली उत्तराधिकारी मानते थे. हालांकि फरवरी 1974 के बाद से मोरारजी और जेपी ने Indira को हराने के लिए आपसी कड़वाहट को किनारे रख दिया और हाथ मिला लिया था. शारदा प्रसाद बताते हैं कि गांधीवादी चौकड़ी ने ये भी तय किया कि नानाजी देशमुख को उपप्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए. जिन्होने जनता गठबंधन बनाने के लिए कई आज़ाद गुटों को एकजुट किया था. जेपी और जेबी सोचते थे कि मिलनसार और सबको एकजुट करने वाले नानाजी – घमंडी, अहंकारी, कठोर मिज़ाज के मोरारजी की कमियों को दूर करने में सहायक होंगे. वहीं बाबू जगजीवन को भरोसा था कि उन्हें 345 में से कम से कम 165 सांसदों का समर्थन प्राप्त है, लिहाज़ा उन्होने पीएम पद के लिए खुला चुनाव करवाने का प्रस्ताव रखा और कहा जिसके पास ज्यादा सांसद होंगे वो पीएम बनेगा. उनका ये प्रस्ताव गांधीवादियों चौकड़ी को पसंद नहीं आया. उन्होने जगजीवन राम को समझाया कि अगर ऐसा किया तो जनता पार्टी गठबंधन में दरार आ जाएगी और ये टूट जाएगा. रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद बताते हैं “वक्त गुज़रता जा रहा था… 24 मार्च 1977 तक नई सरकार का गठन होना था. 23 मार्च की शाम को मेरे मामा के.एस राधाकृष्ण ने मीडिया को बताया कि किसी तरह का आंतरिक चुनाव नहीं होगा. जल्द ही आचार्य जेबी कृपलानी और जेपी नारायण नए पीएम और कैबिनेट का ऐलान करेंगे”. इसके बाद गांधीवादी टीम ने मोरारजी देसाई के पक्ष में सर्वसम्मति कराने के लिए पूरी रात काम किया और भारतीय जनसंघ के लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाकात की गई. बताया जाता है कि बाबू जगजीवन राम को इस पूरे सियासी खेल की भनक तक नहीं लगी. वो जिन लोगों को अपना कट्टर समर्थक मान रहे थे, वो सब रातों रात मोरारजी के साथ खड़े हो गए. इस तरह से बाबू जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह को पछाड़कर मोरारजी देसाई देश के चौथे प्रधानमंत्री बन गए.
पाकिस्तान में Raw Agents को पकड़वाने का आरोप

मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री तो बन गए लेकिन उनकी छवि एक अड़ियल नेता की थी. उनके बारे में एक किस्सा लिखते हुए BBC के वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल बताते हैं कि साल 1977 में रॉ के जासूसों ने पता लगा लिया था कि Pakistan कहूटा में परमाणु प्लांट लगा चुका है. जिसका डिजाइन एक Raw Agent के हाथ लग जाता है. वो डिज़ाइन 10,000 डॉलर में भारत के हाथ लग सकता था. तब ये बात पीएम मोरारजी देसाई तो बताई गई तो उन्होने इस डिजाइन को खरीदने से मना कर दिया. और अपने बड़बोले मिज़ाज के चलते उन्होने Pakistani President General Zia ul Haq को फोन करके बता दिया कि हमे आपके परमाणु प्लांट की पूरी जानकारी है…….. अब सोचिए… एक पीएम रहते हुए किसी से ऐसी हरकत की कल्पना की जा सकती है क्या? उनकी इस एक हरतक ने पाकिस्तान को एक्टिव कर दिया और सबसे पहले उस रॉ एजेंट को पकड़ा गया. इतना ही नहीं देसाई की इस हरकत की वजह से पाकिस्तान में मौजूद कई रॉ एजेंट्स को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी.
मैं चरण सिंह का चूरण सिंह बना दूंगा – देसाई

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में मोरारजी और चौधरी चरण सिंह की दुश्मनी का एक किस्सा लिखा था. उन्होने बताया कि इन दोनों की पुरानी दुश्मनी थी लेकिन इंदिरा को सत्ता से हटाने के लिए ये दोनों एक साथ आए थे. और जैसे ही सत्ता हाथ आई इनकी दुश्मनी फिर शुरू हो गई. जब चौधरी चरण सिंह ने नाराज होकर समर्थन वापस लेने बात कही तो मैंने मोरारजी से कहा कि “आप चरण सिंह से बात करके उन्हें मना लीजिए. तब मोरारजी ने कहा कि मैं चरण सिंह का चूरण सिंह बना दूंगा… मैं उसे नहीं मनाऊंगा”. बस फिर क्या था… बात बढ़ते-बढ़ते इतनी बढ़ गई की चौधरी चरण सिंह ने जनता दल गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया और मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. देसाई ने 28 जुलाई 1979 के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपा और इस तरह 2 साल 126 दिन ही उन्होने प्रधानमंत्री के रूप में काम किया. इसके अगले ही साल हुए आम चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस की ज़बरदस्त वापसी हुई. इंदिरा वाली कांग्रेस (आई) ने 353 सीटें जीतीं और जनता पार्टी महज़ 31 सीटों पर सिमट कर रह गई. चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी (सेक्युलर) ने 41 सीटें जीतीं. और इस तरह जनता दल टुकड़ों में बंटता चला गया… जो फिर कभी एकजुट ना हो सका. अगली सीरीज़ में बाद देश के पांचवे प्रधानमंत्री की.
