Moradabad girl beating case
Moradabad girl beating case में उत्तर प्रदेश की शिक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था दोनों कठघरे में हैं। FIR होने के बावजूद आरोपी प्रधानाध्यापिका गीता खुलेआम धमकी देती घूम रही है। पीड़िता की आंख की रोशनी तो गई, लेकिन पुलिस की आंखें अब भी बंद हैं। बच्ची की मां न्याय के लिए दर-दर भटक रही है, जबकि अधिकारी चुप्पी ओढ़े बैठे हैं।
संवाददाता-सलमान युसूफ। मुरादाबाद
“मासूम की आंख गई, लेकिन अफसरों की नींद नहीं!”
FIR दर्ज, धमकी वायरल, पर आरोपी प्रधानाध्यापिका ‘बेफिक्र ब्रह्मा’ बनी बैठी है – मुरादाबाद पुलिस बस ‘संवेदनशीलता’ की चाय पी रही है
“जो करना है कर लो… मुझे कोई नहीं छू सकता” – शिक्षा की देवी की सीधे धमकी?
जब शिक्षा का मंदिर कुश्ती का अखाड़ा बन जाए, और टीचर चॉक की जगह धमकियों से “शिक्षा” देने लगे, तो समझ लीजिए आप मुरादाबाद में हैं – उत्तर प्रदेश का वो जिला, जहां FIR दर्ज होना मतलब “कागज़ पर शांति पाठ” और कार्रवाई… बस “नियुक्त अफसर की नींद की गारंटी”!
प्राथमिक विद्यालय मुरादाबाद की मासूम परी, जिसकी आंख में अब उजाला नहीं रहा… पर उसकी टीचर गीता जी के तेवर में तेज़ी ज़रूर है। बच्ची की एक आंख चली गई, लेकिन प्रशासन ने आंख तक नहीं झपकाई। शायद अफसरों को लग रहा हो कि बच्ची की आंख नहीं, बस “एक मामूली दृष्टिकोण” गया है।
FIR की धारें धाराशायी, गीता का अहंकार प्रशासन से भारी!Moradabad girl beating case
डीएम साहब के आदेश पर FIR 0226/2025 दर्ज हुई—धारा 173 BNS और 118(2)। लेकिन FIR से पहले भी आरोपी गीता को ‘खबर’ थी कि पुलिस तो उसकी जेब में है। इसलिए तो चौकी में ही पीड़िता को गालियां दी गईं और चेतावनी दी गई—“पैसे के बल पर सब रोक दूंगी”।
वाह री लोकतंत्र की चौकी! जहां पीड़िता को बुलाया गया और आरोपी VIP स्टाइल में पहले से विराजमान थी। लगता है पुलिस थानों में अब “अभियुक्त स्वागत कक्ष” खुल चुके हैं।
जब कानून की आंख पर पट्टी नहीं, आंख ही निकाल दी जाए! Moradabad girl beating case
इस केस ने देश की उस शिक्षा व्यवस्था को बेनकाब कर दिया है जो ‘बाल संरक्षण’ के नाम पर सिर्फ फाइलों में टहलती है। सवाल उठता है कि गीता जैसी प्रधानाध्यापिका अगर मासूम बच्ची की आंख फोड़ दे, फिर उस पर कार्रवाई भी न हो, तो अगली पीढ़ी को शिक्षा मिलेगी या सज़ा?
और हां, वो मां—ज्योति देवी, जो अब अकेली नहीं है। कलक्ट्रेट पहुंचकर उसने सिस्टम को ललकारा है—“अब न्याय नहीं, तो आंदोलन होगा!”। क्या प्रशासन उस आवाज़ को भी ‘अनसुना’ करने की कीमत समझता है?
सवाल खड़े हैं, और अफसरों की कुर्सियां भी… लेकिन जवाब नदारद!Moradabad girl beating case
क्या मुरादाबाद पुलिस अब गीता के बैंक बैलेंस से डरती है?
क्या डीएम के आदेश सिर्फ कागज़ पर उतरने के लिए होते हैं?
क्या एक बच्ची की आंख निकाल देना अब “सामान्य” अपराध है?
और सबसे अहम, क्या शिक्षक अब ‘गुंडई ट्रेंड’ में हैं?
“जब हाथ में रजिस्टर हो और ज़ुबान पर सत्ता का नशा, तो समझिए शिक्षक नहीं, साहूकार पढ़ा रहा है”
अब खबरीलाल पूछता है—क्या मुरादाबाद प्रशासन में अब भी संवेदनशीलता बाकी है या सब कुछ नोटों की मालिश में मर चुका है?
