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Mathura Vrindavan Rail Line Closure सिर्फ एक रेलवे प्रोजेक्ट का रद्द होना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत पर सत्ता की बुलडोज़र मानसिकता का ट्रेलर है। डेढ़ सौ साल पुरानी रेल लाइन को पहले ब्रॉड गेज में बदलने का सपना दिखाया गया और फिर चुपचाप उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लोगों का आरोप है कि जैसे ही अमीरों के मकान रेलवे ज़मीन पर चिह्नित हुए, विरोध की स्क्रिप्ट तैयार हो गई और Mathura Vrindavan Rail Line Closure को “जनविरोध” का नाम देकर बंद करा दिया गया। अब जनता पूछ रही है — विकास की पटरियां आखिर किसके लिए बिछाई जा रही हैं?
✍संवाददाता-अमित शर्मा
21 जून 2025।Mathura Vrindavan Rail Line – मथुरा-वृंदावन की पावन भूमि, जहां राधा-कृष्ण की बंसी की तान गूंजती थी, वहां आज आक्रोश के स्वर गूंज रहे हैं। रेल मंत्रालय ने Mathura Vrindavan Rail Line को मीटर गेज से ब्रॉड गेज में बदलने की 402 करोड़ की महत्वाकांक्षी योजना को स्थायी रूप से बंद कर दिया। और इस फैसले का ठीकरा स्थानीय लोग सांसद हेमा मालिनी के सिर फोड़ रहे हैं। रविवार को वृंदावनवासियों ने रंगनाथ मंदिर के सिंह द्वार से नगर निगम चौराहे तक पैदल मार्च निकाला, हाथों में तख्तियां और बैनर लिए नारे लगाए— “हेमा मालिनी वापस जाओ, वृंदावन की धरोहर बचाओ!”
Mathura vrindavan rail line-लोगों का गुस्सा: धरोहर पर चोट
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि डेढ़ सदी पुरानी मथुरा-वृंदावन रेल लाइन सिर्फ परिवहन का साधन नहीं, बल्कि ब्रज की सांस्कृतिक धरोहर थी। जयपुर के राजा माधो सिंह ने राधा माधव मंदिर के लिए यह रेल लाइन बनवाई थी, जिस पर पत्थर ढोए गए और बाद में यात्री ट्रेनें चलीं। “राधा रानी मेल” के नाम से मशहूर इस ट्रेन ने लाखों श्रद्धालुओं को ठाकुरजी के दर्शन कराए। लेकिन अब, यह ऐतिहासिक लाइन इतिहास के पन्नों में सिमट गई। प्रदर्शनकारी संजीव बाबा ने तंज कसते हुए कहा, “कुछ रसूखदारों के भवनों की खातिर रेलवे की जमीन बचाई गई, और हमारी धरोहर को घाटे का सौदा बता कर कुर्बान कर दिया गया!”
Mathura vrindavan rail line-हेमा मालिनी पर क्यों भड़के लोग?

वृंदावनवासियों का गुस्सा सांसद हेमा मालिनी पर इसलिए फूटा, क्योंकि इस प्रोजेक्ट को शुरू कराने में उनकी अहम भूमिका थी। 2023 में 403 करोड़ की लागत से शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट 50% तक पूरा हो चुका था। रेलवे ने पुराने ट्रैक हटाए, स्टेशन तोड़े, और नए ट्रैक के लिए मिट्टी डाली। लेकिन जब कुछ प्रभावशाली लोगों के भवनों पर बुलडोजर की छाया पड़ी, तो विरोध शुरू हुआ। सांसद ने पहले इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी, फिर जनविरोध देखकर इसे रुकवाने में भूमिका निभाई। अब लोग पूछ रहे हैं, “धरोहर की बात करने वाली ड्रीम गर्ल आखिर किसके दबाव में झुकीं?
बांके बिहारी कॉरिडोर से तुलना: डबल गेम?
यहां मजेदार मोड़ आता है। एक तरफ हेमा मालिनी बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर का समर्थन कर रही हैं, जिसका गोस्वामी समाज और स्थानीय लोग जमकर विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ, रेल लाइन प्रोजेक्ट को बंद करवाने में उनकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। लोग तंज कस रहे हैं, “कॉरिडोर बनवाओ, धरोहर मिटाओ, हेमा जी का डबल गेम समझ नहीं आता!” प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पहले वृंदावन की ऐतिहासिक नगर पालिका खत्म कर मथुरा-वृंदावन नगर निगम बनाया गया, और अब रेल लाइन बंद कर ब्रज की एक और निशानी मिटा दी गई।
रेलवे का पक्ष: घाटा या मजबूरी?
रेल मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट को “अलाभकारी” बताकर बंद किया। अधिकारियों का कहना है कि स्थानीय विरोध के कारण काम रोकना पड़ा। पहले मीटर गेज पर रेल बस की धीमी गति से लोग आसानी से ट्रैक पार कर लेते थे, लेकिन ब्रॉड गेज और ऊंचे तटबंध से गांवों का संपर्क टूटने का खतरा था। सांसद ने सुझाव दिया कि रेलवे की जमीन पर सड़क बनाई जाए और ऊपर एलिवेटेड ट्रैक चलाया जाए, लेकिन यह प्रस्ताव अभी ठंडे बस्ते में है।
Mathura-vrindavan-rail-line-closure-protest-धरोहर या विकास?

मथुरा-वृंदावन रेल लाइन का बंद होना सिर्फ एक प्रोजेक्ट का अंत नहीं, बल्कि ब्रज की सांस्कृतिक पहचान पर चोट है। लोग पूछ रहे हैं कि क्या विकास के नाम पर धरोहरों को मिटाना जरूरी है? हेमा मालिनी पर कॉरिडोर और रेल लाइन को लेकर दोहरी नीति का आरोप लग रहा है। अब सवाल यह है कि क्या सांसद इस आक्रोश को शांत कर पाएंगी, या वृंदावन की गलियों में नारों की गूंज और तेज होगी? 

 
         
         
         
        