
Mathura Kisan Andolan
Mathura Kisan Andolan ने डीएम दफ्तर पर बोला जोरदार हल्ला
किसानों ने मथुरा में बिजली संकट, स्मार्ट मीटर और अधिग्रहित जमीन के मुआवज़े जैसे मुद्दों पर कड़ा विरोध दर्ज कराया।
संवाददाता-अमित शर्मा
मथुरा में आज का दिन गर्मी से नहीं, किसानों की गर्जना से तप गया। Mathura Kisan Andolan ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब हलधारी खड़ा होता है, तो दिल्ली से लखनऊ तक कुर्सियां हिल जाती हैं। जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर किसानों का हुजूम, हाथ में तख्तियां, मुंह में सरकार के खिलाफ नारे और आंखों में न्याय की उम्मीद लिए डटा रहा।
भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने जब सीएम के नाम ज्ञापन सौंपा, तो डीएम ऑफिस का माहौल किसी पंचायत चुनावी चौपाल से कम नहीं लग रहा था। किसानों का कहना था कि “हमें मीटर नहीं, मुआवज़ा चाहिए। और मीटर भी स्मार्ट वाला नहीं, सरकार के दिमाग में स्मार्टनेस होनी चाहिए!”
Mathura Kisan Andolan:फोकस में बिजली का झटका और यमुना एक्सप्रेसवे का धक्का
Mathura Kisan Andolan की सबसे बड़ी पीड़ा बिजली है। न मीटर काम कर रहे हैं, न बिल में रहम है। पुराने मीटरों को बिना सुधारे सीधे स्मार्ट मीटर टांग दिए गए, जो चालू होते ही किसानों की जेब को शॉर्ट सर्किट कर देते हैं।
वहीं दूसरी ओर यमुना एक्सप्रेसवे के नाम पर किसानों की जमीनें तो हड़प ली गईं, लेकिन मुआवज़ा अब तक धूल खा रहा है। किसान बोले – “जिस सड़क पर कारें 150 की रफ्तार से दौड़ रही हैं, वहां हमारा भविष्य पैदल चल रहा है।”
और फिर आया विदेशी नमक – अमेरिका से हुआ कृषि करार। किसानों ने कहा – “भाई साहब, यहां प्याज के दाम का कोई भरोसा नहीं, और तुम विदेशी समझौते कर रहे हो? ये करार तो विदेशी कंपनियों को मुनाफा और हमें घाटा देगा।”
Mathura Kisan Andolan:DM ने कहा – भेजेंगे ऊपर, किसान बोले – कब नीचे आएगा समाधान?
जिलाधिकारी चंद्रप्रकाश सिंह ने सारी बातें सुनकर भरोसा दिया कि सब कुछ शासन तक भेजा जाएगा। किसान बोले – “हमने तो गाय ने भी चिठ्ठी पढ़ा दी थी, वो भी दो साल से जवाब नहीं दे रही!”
DM ने कहा कि जो भी प्रस्ताव पास होंगे, किसानों को बताया जाएगा। लेकिन किसानों की मांग है कि सिर्फ बातें नहीं, अब कार्रवाई चाहिए। वरना अगली बार प्रदर्शन नहीं, धरना स्थायी रूप से टेंट समेत लगेगा।
ये मथुरा है, यहां आंदोलन भी भक्तिरस में होता है!
Mathura किसान आंदोलन न सिर्फ किसानों की मांगों की लड़ाई है, बल्कि ये इस बात का भी संकेत है कि देश की आत्मा अभी जिंदा है। चाहे बिजली की मार हो, मुआवज़े की तकरार हो या अमेरिकी करार की बुनियाद, मथुरा का किसान अब चुप नहीं बैठेगा।
और सरकार को समझना होगा – यहां के किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं, आंदोलनदाता भी हैं। और जब वो सड़क पर उतरते हैं, तो खेत में नहीं, सत्ता में हल चलाते हैं।
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