Mathura Jagannath Rath Yatra के दौरान प्रशासन अलर्ट मोड में है। डीएम चंद्र प्रकाश सिंह और एसएसपी श्लोक कुमार ने पैदल मार्च कर रथ यात्रा मार्ग और कंस किला क्षेत्र का निरीक्षण किया। सुरक्षा, बैरिकेडिंग, स्ट्रीट लाइट और जल व्यवस्था की समीक्षा हुई। साथ ही मोहर्रम को लेकर पुलिस बल की तैनाती सुनिश्चित की गई। अब देखना है कि आस्था का यह रथ प्रशासनिक पहरे में कहां तक सुचारु रूप से चलता है।
जनपद-मथुरा। संवाददाता-अमित शर्मा
🛕 रथ की तैयारी में प्रशासन का रथ हिचकोले खाता नज़र आया।
मथुरा की तंग गलियों में इस बार न राधे-राधे की गूंज थी, न मुरली की तान… बल्कि चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती और डीएम-एसएसपी का पसीना बहाता ‘अलर्ट मार्च’। वजह? एक तरफ Mathura Jagannath Rath Yatra, तो दूसरी तरफ Moharram—दोनों त्योहार आमने-सामने। नतीजा? अधिकारी खुद डीग गेट से लेकर होली गेट तक पैदल निरीक्षण पर निकल पड़े, ताकि जनता को लगे कि सब ‘राम भरोसे’ नहीं, बल्कि ‘प्रशासन भरोसे’ है।
🏰 कंस किला से दर्शन और सियासी संतुलन। Mathura Jagannath Rath Yatra
भ्रमण के दौरान DM चंद्र प्रकाश सिंह ने 400 साल पुराने मंदिर और कंस किले का भी मुआयना किया। किले से यमुना के दर्शन किए गए, और फिर नोटबुक में लिखा गया – “सब कुछ सामान्य है।” अब जनता पूछ रही है, क्या सच में प्रशासन को सिर्फ त्यौहारों के वक्त ही यमुना की याद आती है? बाकी दिन तो कंस का किला भी खामोश रहता है और यमुना भी।
🚓 बैरिकेडिंग से लेकर बैरियर तक, पर जनता का भरोसा कहां? Mathura Jagannath Rath Yatra
SSP श्लोक कुमार और पुलिस कप्तान नगर राजीव कुमार ने ‘कड़क निर्देश’ दिए – “फोर्स समय पर पहुंचे।” लेकिन खबरीलाल पूछता है – “कब तक सिर्फ निर्देशों से काम चलेगा? क्या मथुरा की सड़कों और गलियों में सच में इतनी व्यवस्था है कि एक साथ रथ भी निकले और ताजिया भी?”
बात सिर्फ स्ट्रीट लाइट, शौचालय और पेयजल की नहीं है। सवाल है—क्या ये इंतज़ाम अस्थायी खानापूर्ति हैं, या वाकई एक स्थायी शांति का संदेश? जब साल भर गड्ढे और कचरे से भरी गलियां होती हैं, तो अचानक दो दिन के लिए कैसे स्वर्ग बन जाती हैं?
👮 मोहर्रम के बहाने एक और परीक्षा। Mathura Jagannath Rath Yatra
अब मोहर्रम भी शुरू हो रहा है। यानी त्योहार नहीं, प्रशासनिक तनाव की दोहरी खिचड़ी। पुलिस, महिला पुलिस, होमगार्ड्स सबका वादा कर दिया गया है। लेकिन हर साल की तरह इस बार भी सवाल यही रहेगा – “जब टकराव होता है, तब ये फोर्स होती कहां है?”
“जब रथ और ताजिया एक ही सड़क पर हों, तो सड़कों का चौड़ीकरण नहीं, नियति की चूक ही तय करती है कि क्या पहले निकलेगा – शांति या शोर?”
त्योहार तो आकर चले जाते हैं, लेकिन Mathura की गलियों में हर बार Jagannath Rath Yatra और Moharram जैसे आयोजनों के बहाने अफसरों का ‘इवेंट टूरिज्म’ जरूर हो जाता है। DM चंद्र प्रकाश सिंह और SSP श्लोक कुमार भले ही Kans Quila से यमुना के दर्शन करके लौट आए हों, लेकिन जनता अब व्यवस्था की नहीं, परिणामों की राह देख रही है। क्योंकि आज अगर रथ और ताजिया शांतिपूर्वक निकल जाएं तो इसे प्रशासन की सफलता नहीं, भगवान जगन्नाथ और अल्लाह की मेहर ही समझिए — वरना हमारे सिस्टम की ‘बैरिकेडिंग’ तो बहुत पहले ढह चुकी है।