 
                  Ladakh violence के आरोपी Sonam Wangchuk पर सरकार के गंभीर आरोप
लद्दाख, जो भारत की सामरिक दृष्टि से सबसे संवेदनशील जगहों में गिना जाता है, इन दिनों उथल-पुथल से गुजर रहा है। कभी देशभर के युवाओं के लिए प्रेरणा बने सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) आज विवादों के घेरे में हैं। 26 सितंबर को लेह पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। यह कदम 24 सितंबर को हुई हिंसक झड़पों के बाद उठाया गया, जिसमें चार लोगों की मौत और 80 से अधिक लोग घायल हुए थे। सरकार का आरोप है कि वांगचुक के बयानों ने भीड़ को भड़काया और लद्दाख में शांति भंग हुई। ऐसे में सरकार के पक्ष को मानने के बावजूद भी सवाल सरकार पर भी उठते हैं कि अगर सोनम वांगचुक हिंसा भड़का सकते हैं, तो जिस सरकार के पास पूरी मशीनरी थी, खुफिया विभाग था, पूरा का पूरा एक सरकारी सिस्टम था, वो सरकार सोनम वांगचुक के आंदोलन की दिशा को वक्त रहते भांप क्यों नहीं पाई ? क्या सरकारी सिस्टम सिर्फ और सिर्फ फाइलों में उलझा हुआ था ? या फिर लद्दाख प्रशासन को संभाल रहे सारे के सारे हुक्मरान सिर्फ और सिर्फ अपनी कुर्सी पर बुत बनकर बैठे हुए थे ?

वांगचुक की पहचान एक इनोवेटिव इंजीनियर और पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में रही है। 1988 में उन्होंने SECMOL (स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख) की स्थापना की थी। 2018 में उन्हें एशिया का “नोबेल पुरस्कार” कहे जाने वाले रेमन मैगसेसे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। लेकिन मौजूदा हालात में वे सवालों के घेरे में हैं। आइए उन पांच बिंदुओं को समझें, जो इस पूरे विवाद की जड़ हैं।
1. लद्दाख की स्टेटहुड और ऑटोनॉमी की मांग
शुरुआत में सोनम वांगचुक सिर्फ छठे शेड्यूल की मांग कर रहे थे, लेकिन अब उन्होंने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग भी उठाई है। यह इलाका भारत की सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम है क्योंकि इसकी सीमाएं सीधे चीन और पाकिस्तान से लगती हैं। इतनी कम आबादी (करीब 3 लाख) और बड़े भूभाग वाले क्षेत्र को स्टेटहुड देना फिलहाल सुरक्षा जोखिम माना जा रहा है।
कई वीडियो में उनके ऐसे बयान भी सामने आए, जिनमें सेना और सीमा से जुड़े विवादास्पद संकेत मिलते हैं। भले ही उनका उद्देश्य सरकार का ध्यान खींचना हो, लेकिन ऐसे शब्द सामरिक दृष्टि से संवेदनशील माने जाते हैं।
2. विकास बनाम रोजगार
वांगचुक लगातार कहते रहे हैं कि कॉरपोरेट दखल के बिना लद्दाख का विकास होना चाहिए। लेकिन सवाल उठता है कि रोजगार केवल सरकारी नौकरियों से कैसे संभव होगा? यहां की भौगोलिक चुनौतियां—ऊंचाई, बर्फ, ग्लेशियरों का पिघलना—पहले से ही मुश्किलें बढ़ा रही हैं।
लद्दाख खनिज संपदा से भरपूर है। यहां सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए जरूरी सिलिका, यूरेनियम और थोरियम जैसे खनिज पाए जाते हैं। यदि इन संसाधनों के इस्तेमाल को रोका गया तो बेरोजगारी और बढ़ सकती है। इसीलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि वांगचुक का रुख यहां निवेश और विकास की राह रोक सकता है।

3. उकसावे वाले बयान और हिंसा
सरकार का आरोप है कि सोनम वांगचुक के भाषणों ने विरोध को भड़काया। उन्होंने कई बार ‘अरब स्प्रिंग’ और ‘नेपाल के विद्रोह’ का जिक्र किया। 24 सितंबर को जब LAB की बंदी हुई तो भीड़ हिंसक हो गई—BJP कार्यालय और वाहनों को आग लगा दी गई। पुलिस फायरिंग में मौतें भी हुईं।
हालांकि वांगचुक ने हिंसा की निंदा की और शांति की अपील का दावा किया, लेकिन केंद्र का कहना है कि उन्होंने मौके पर हालात संभालने के बजाय खुद को अलग कर लिया।
4. विदेशी फंडिंग पर सवाल
25 सितंबर को केंद्र ने SECMOL का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया। आरोप है कि विदेशी फंड का इस्तेमाल गैर-अनुमत गतिविधियों में किया गया।
- स्वीडिश संगठन से ₹4.93 लाख की फंडिंग
- HIAL (हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख) को 6–15 करोड़ का दान
- इनमें से कुछ रकम उनकी निजी फर्म में ट्रांसफर होने का आरोप
 यह सब वांगचुक की छवि पर संदेह पैदा करता है। हालांकि उन्होंने इसे “बिजनेस ट्रांजैक्शन” बताया है और कहा कि टैक्स भरा गया है।
5. पाकिस्तान यात्रा पर विवाद
फरवरी 2025 में सोनम वांगचुक पाकिस्तान के एक कथित जलवायु सम्मेलन में गए थे। केंद्र ने सवाल उठाया कि वहां ऐसा कौन सा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन था, जिसकी वैधता साबित हो। यह भी आरोप है कि यह यात्रा विदेशी फंडिंग और पड़ोसी देशों से प्रभावित एजेंडा का हिस्सा हो सकती है।
भले ही उन्होंने इसे व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरणीय पहल बताया, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र में सक्रिय किसी भी कार्यकर्ता की यह गतिविधि सुरक्षा एजेंसियों की नजर में संदिग्ध मानी जाती है।
Sonam Wangchuk पर संदेह और गंभीर आरोप
सोनम वांगचुक कभी ‘देश के नायक’ कहे जाते थे, लेकिन अब उन पर संदेह की परत चढ़ चुकी है। लद्दाख में हिंसा, विदेशी फंडिंग, विवादास्पद बयान और पाकिस्तान यात्रा ने उनकी छवि को धूमिल किया है। वे दोषी हैं या नहीं, यह जांच और अदालत तय करेगी। लेकिन इतना साफ है कि लद्दाख जैसे सामरिक क्षेत्र में आंदोलन और बयानबाजी को लेकर सरकार किसी भी तरह का जोखिम उठाने के मूड में नहीं है।

 
         
         
         
        
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