Ken Flood सिर्फ एक बाढ़ नहीं — बांदा के लिए वो एक डर है, जो तटबंध की बदहाली के साथ हर दिन बढ़ रहा है। समय रहते न चेते तो 1992 फिर लौटेगा — और इस बार जिम्मेदार कोई और नहीं, हम खुद होंगे।
मिट्टी चोरों का तांडव, प्रशासन की चुप्पी: क्या बांदा फिर डूबेगा 1992 के प्रलय में?
Banda में Ken Flood का बुलावा — अफसरों को न नींद से मतलब, न पानी से!
बांदा की केन नदी का तटबंध, जो कभी शहर का कवच था, आज मिट्टी चोरों के हवाले है। राजघाट पर तटबंध की हालत ऐसी है मानो कोई खंडहर चुपके से अपनी आखिरी सांसें गिन रहा हो। पत्थरों की पिचिंग के नीचे से मिट्टी खोदकर गड्ढे बना दिए गए हैं, और बलुई मिट्टी का कटाव बाढ़ को खुला न्योता दे रहा है। बाढ़ का खतरा इतना बढ़ गया है कि स्थानीय लोग कहते हैं, “तटबंध नहीं, ये तो अब चोरों की खदान बन गया है!
वहीं बांदा के अफसरों को देखिए — केन नदी का तटबंध खंड-खंड होकर धड़ाम कहने की तैयारी में है और साहब लोग अब भी AC कमरों में मीटिंग की सेल्फी डाल रहे हैं। 1992 में जो Ken Flood आया था, उसने आधी बांदा को बहा दिया — लेकिन अफसरों की याददाश्त पर तो ताले लगे हैं!” प्रशासन की नींद इतनी गहरी है कि शायद बाढ़ का पानी ही इन्हें जगाए।
Ken Flood:मिट्टी-बालू चोर दिन में काटें, रात में प्रशासन सोए
तटबंध की मिट्टी-बालू चोरी खुलेआम चल रही है। धड़ल्ले से गहरे खड्डे खोदे जा रहे हैं — और मजेदार बात ये कि जिन्हें रोकना था, वही लंच ब्रेक पर हैं! सिंचाई विभाग की फाइलों में तटबंध एकदम ‘Safe’ दिखाया जा रहा है, लेकिन जमीन पर तो तटबंध को दीमक खा रही हैं — और अफसर कह रहे हैं, “सब कंट्रोल में है”।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक, भारत में 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र बाढ़ प्रवण है, जिसमें उत्तर प्रदेश का बांदा जैसे जिले शामिल हैं। 1992 और 2005 की बाढ़ ने बांदा में करीब 10,000 हेक्टेयर कृषि भूमि को बर्बाद किया था, और लाखों रुपये की संपत्ति तबाह हुई थी। 2005 में केन की बाढ़ ने 50 से अधिक गांवों को जलमग्न कर दिया, जिसमें 200 से ज्यादा मवेशी मरे और 10,000 लोग विस्थापित हुए। अगर तटबंध की मरम्मत नहीं हुई, तो इस बार Flood Risk 1.5 लाख लोगों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें 30% शहरी और 70% ग्रामीण आबादी शामिल है।
Ken Flood के नाम पर बह जाएगा सारा विकास!
जिन पत्थरों की पिचिंग करोड़ों खर्च करके लगाई थी, उसके नीचे से मिट्टी खिसक गई है — अब पानी सीधे पिचिंग को लात मारने वाला है। जब Ken Flood आएगा तो गड्ढे, दरारें, उखड़ी सड़कें — सब बह जाएंगी। बस बहेंगे नहीं तो अफसरों के बयान — वो तो बहाव के बाद भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में तैरते मिलेंगे!
1992 और 2005 में केन नदी ने बांदा को ऐसा सबक सिखाया कि लोग आज भी उस मंजर को याद कर कांप उठते हैं। रातों-रात बांधों से छोड़ा गया पानी, डूबे हुए गांव, और लबालब भरे शहर ने बांदा को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया था। 1992 में 500 से अधिक घर ध्वस्त हुए, और 2005 में 20 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे। आज तटबंध की हालत देखकर लगता है कि प्रशासन उस इतिहास को दोहराने का इंतजाम कर रहा है।
मजे में डूबा Banda प्रशासन, जागेगा कब?
क्षेत्रीय लोग DM को चिट्ठी पर चिट्ठी लिख रहे हैं — साहब, कुछ कर लो! लेकिन DM ऑफिस में फाइलें गोल-गोल घूम रही हैं, अफसर मौके पर नहीं पहुंचते — पहुंचते भी हैं तो मिट्टी चोरों के चाय-पानी पर साइन करके चले आते हैं। Ken Flood तो बहकर जाएगा, लेकिन प्रशासन का घोंघा रेस जीत जाएगा — इतना तय है!
अगर केन नदी ने फिर से प्रलयंकारी रूप धारण किया, तो बांदा में तबाही का तांडव तय है। अनुमान है कि 50,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि डूब सकती है, जिससे 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान होगा। शहरी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को 100 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। बाढ़ के बाद हैजा, डेंगू, और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ेगा, जैसा कि 2005 में देखा गया था, जब 1,000 से अधिक लोग संक्रामक रोगों से प्रभावित हुए थे। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन की हानि और विस्थापन से 20,000 से ज्यादा परिवार बेघर हो सकते हैं।
Ken Flood:प्रशासन की नाकामी: नींद में डूबा बांदा
जिला प्रशासन और सिंचाई विभाग की उदासीनता बांदा के लिए अभिशाप बन चुकी है। मिट्टी चोरी की शिकायतें महीनों से आ रही हैं, लेकिन प्रशासन की कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित है। स्थानीय लोगों ने बताया कि राजघाट पर तटबंध की पिचिंग को 2010 में मजबूत किया गया था, लेकिन रखरखाव के अभाव में यह अब ढहने की कगार पर है। एक स्थानीय निवासी ने तंज कसते हुए कहा, “प्रशासन को शायद लगता है कि बाढ़ आएगी तो वो तटबंध की फाइलों पर बैठकर तैर जाएंगे!”
मिट्टी चोरों का राज: प्रशासन की मिलीभगत?
मिट्टी और बालू चोरों का तटबंध पर खुला खेल कोई नई बात नहीं है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि चोरों को प्रशासन का मौन समर्थन हासिल है। 2025 में ही X पर एक पोस्ट में दावा किया गया कि खनन माफिया तटबंध को छलनी कर रहे हैं, और प्रशासन बेपरवाह है। गड्ढों को भरने की कोशिश जरूर हुई, लेकिन यह बस आंखों में धूल झोंकने जैसा है। सवाल यह है कि जब चोरों की हिम्मत इतनी बढ़ गई है, तो प्रशासन की चुप्पी क्या संदेश देती है?
जिलाधिकारी को जगाओ, तटबंध बचाओ
केन तटबंध की कमजोरी और प्रशासन की लापरवाही बांदा को बाढ़ की आग में झोंक रही है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो बांदा फिर से 1992 और 2005 की त्रासदी का शिकार होगा। मिट्टी चोरों ने तटबंध को खोखला कर दिया है, और प्रशासन की नींद ने इसे और कमजोर कर दिया है। क्षेत्रीय लोग लगातार प्रशासन को चेतावनी दे रहे हैं — अगर अब भी केन तटबंध को संभाला नहीं गया तो अगली बाढ़ में नुकसान का हिसाब नहीं लगेगा। नहर की शक्ल ले चुकी कगारें, पिचिंग के नीचे से खोखला तटबंध — Ken Flood को न्योता दे रहे हैं।
Ken Flood न देखना पड़े, तो अभी सुध लो!
अगर आज तटबंध पर मरम्मत नहीं हुई, मिट्टी-बालू चोरी नहीं रुकी तो फिर 1992 जैसा मंजर कोई नहीं रोक पाएगा। नुकसान फिर से इंसान का होगा, पशु का होगा, खेत-खलिहान का होगा — और कुछ तो बह जाएगा ही!