Kanwar Yatra शिवसेना का जिलाधिकारी दरबार
Kanwar Yatra के दौरान शिवसेना ने बिजनौर में जिला प्रशासन से मीट की दुकानों और मुस्लिम ढाबों के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल दिया है। हरिद्वार से आने वाले कांवड़ियों की आस्था को बचाना इनका मिशन है।
जिला कलेक्ट्रेट में शिवसेना का ‘कांवड़’ दरबार!
सावन के आते ही हरिद्वार से लेकर नगीना हाईवे तक ‘Kanwar Yatra’ का काफिला निकलेगा, ये तो तय था। लेकिन कबाड़ा तब फंसा जब बिजनौर कलेक्ट्रेट में शिवसेना वालों ने अचानक हाजिरी लगा दी। हाथ में प्रार्थना पत्र, चेहरे पर चिंता और दिल में मिशन – कांवड़ यात्रा को बेदाग और बिना मीट की खुशबू वाला बनाने का!
Kanwar Yatra-मीट की दुकानें बनी शिवसेना की हड्डी
कहते हैं ना – कांवड़ियों का रास्ता सीधा होना चाहिए, लेकिन बिजनौर में तो मीट की दुकानें बीच में हड्डी बन गईं। शिवसेना वालों को चिंता सता रही है कि Haridwar से आने वाले हजारों Kanwar Yatra वाले मीट की दुकानों से ‘भटक’ सकते हैं।
बस फिर क्या, जिलाधिकारी से गुहार – “भैया, मीट वालों को हटाओ, काबड़ वालों को बचाओ!”
Kanwar Yatra-नाम में क्या रखा है?

कहते हैं, नाम में कुछ नहीं रखा। लेकिन शिवसेना वालों ने साबित कर दिया कि नाम में बहुत कुछ रखा है। आरोप है कि मुस्लिम व्यापारी हिंदू नाम से ढाबे खोलकर कांवड़ियों को ‘मासाहारी’ बना रहे हैं।
अब बताइए, सावन में भोलेनाथ के भक्त को अगर नॉनवेज मिल जाए तो फिर कांवड़ यात्रा Kanwar Yatra कम और कबाड़ यात्रा ज्यादा हो जाएगी!
सात जिलों का काफिला, एक ही चिंता
आपको बता दें कि हरिद्वार वाया नगीना हाईवे से सात जिलों के कांवड़िये गुजरते हैं। रास्ते में सैकड़ों ढाबे, जिनमें से कई ढाबों ने अपना असली नाम छुपाकर भोले भक्तों को ‘काटने’ की तैयारी कर रखी है – ऐसा आरोप है।
Kanwar Yatra-अतिक्रमण हटाओ, आस्था बचाओ!
शिवसेना ने साफ कर दिया – Kanwar Yatra में अगर रास्ते में अतिक्रमण रहा, तो भक्तों का रास्ता मुश्किल होगा। इसलिए मीट की दुकानों के साथ-साथ रोड से अतिक्रमण भी हटाने का अल्टीमेटम दे दिया गया है।
जिलाधिकारी ने सुनी ‘काबड़ यात्रा’ की फरियाद
बिजनौर कलेक्ट्रेट में शिवसेना के सैकड़ों पदाधिकारी जमा हुए। जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। मीट हटाओ, कबाड़ी हटाओ, नाम बदलो, आस्था बचाओ – पूरा माजरा यही था।
Kanwar Yatra-सावन में राजनीति भी भीगी
सावन का महीना शुरू होते ही Kanwar Yatra सिर्फ आस्था नहीं, सियासत का भी रास्ता बन गई है। अब देखना होगा कि जिलाधिकारी साहब शिवसेना की फरियाद पर कब तक एक्शन लेते हैं।
अब आगे क्या? कांवड़ या कबाड़?
अब देखना दिलचस्प होगा कि शिवसेना की इस ‘कांवड़ मुहिम’ का क्या नतीजा निकलता है। मीट की दुकानें हटेंगी या नहीं, ढाबों के बोर्ड बदलेंगे या नहीं — सब कुछ जिला प्रशासन की ‘कलीम’ पर टिका है। फिलहाल तो सावन में Kanwar Yatra के साथ-साथ बिजनौर में सियासी तंदूर भी खूब गर्म है। अगले आदेश तक भक्तों को सलाह दी जाती है — कांवड़ उठाओ, कबाड़ से बचाओ!
