kanpur rape: घाटमपुर में मासूम से हैवानियत, लचर कानून और समाज की मानसिकता पर सवाल
मासूम की चीखें, समाज की खामोशी
वो सिर्फ 5 साल की थी। एक छोटी-सी बच्ची, जो अपनी मासूम मुस्कान के साथ परचून की दुकान जा रही थी। उसे क्या पता था कि पड़ोस का वह “अंकल” जिसे वो भरोसे से देखती थी, उसकी जिंदगी को नरक बना देगा? कानपुर के घाटमपुर में मंगलवार की शाम एक ऐसी घटना हुई, जिसने हर इंसान के रोंगटे खड़े कर दिए (kanpur rape)। पड़ोस में रहने वाले हैवान कल्लू ने बच्ची को उठाया, मजार के पीछे ले जाकर रेप किया। जब बच्ची चीखी, तो उसके मुंह में पत्ते और मिट्टी ठूंस दी। मामला खुलने के डर से उसने बच्ची के सिर पर ईंटों से ताबड़तोड़ वार किए, उसे मरा समझकर छोड़ दिया।
मां की गोद में सिमटी वो बच्ची खून से सनी थी। उसने आखिरी ताकत से अपनी मां को आरोपी की ओर इशारा किया और बेहोश हो गई। 13 घंटे से ज्यादा बीत चुके हैं, हैलट अस्पताल के आईसीयू में उसकी जिंदगी की जंग जारी है। मां की चीखें, गांव का गुस्सा, और समाज की चुप्पी—यह कानपुर रेप का वह दर्दनाक सच है, जो हर किसी को झकझोर रहा है। लेकिन सवाल यह है—क्या हमारा समाज और कानून इस मासूम को इंसाफ दे पाएंगे?
kanpur rape: यूपी में 2025 के रेप के मामले, आंकड़े चीख रहे हैं
कानपुर रेप कोई अकेली घटना नहीं है। 2025 में उत्तर प्रदेश रेप के मामलों से दहल रहा है। कुछ प्रमुख मामले जो समाज को शर्मसार कर रहे हैं:
कानपुर (जून 2025): घाटमपुर में 5 साल की बच्ची से रेप और हत्या की कोशिश। आरोपी फरार, पुलिस तलाश में।
कौशांबी (जून 2025): 8 साल की बच्ची से रेप, आरोपी गिरफ्तार, लेकिन पीड़ित परिवार को ही जेल भेजने के आरोप।
लखनऊ (जून 2025): 3 साल की बच्ची से रेप, आरोपी दीपक वर्मा पुलिस एनकाउंटर में ढेर।
जौनपुर (अप्रैल 2025): 5 साल की बच्ची से दुष्कर्म, कोर्ट ने 26 दिन में 25 साल की सजा सुनाई।
कानपुर (जनवरी 2025): 13 साल की छात्रा की रेप के बाद हत्या, शव खेत में मिला।
अयोध्या (अगस्त 2024): 4 साल की दलित बच्ची से रेप, आरोपी फरार।
मेरठ (जून 2025): सैन्यकर्मी की नाबालिग बेटी से रेप, आरोपी गिरफ्तार
कानपुर (मार्च 2025): आईआईटी छात्रा से रेप, आरोपी एसीपी मोहसिन खान सस्पेंड।
2024 के आंकड़ों के अनुसार, 1 जुलाई से 31 अगस्त तक यूपी में 149 रेप केस दर्ज हुए, जिनमें 93 मामले 13-18 साल की बच्चियों के थे। 2025 में यह आंकड़ा और बढ़ा है, लेकिन सटीक आंकड़े अभी सामने नहीं आए। क्या ये आंकड़े सिर्फ आंकड़े हैं, या हर संख्या के पीछे एक मासूम की टूटी जिंदगी छिपी है?
kanpur rape:पुलिस की कार्रवाई: तत्परता या लापरवाही?
कानपुर रेप मामले में घाटमपुर पुलिस ने देर रात FIR दर्ज की और बच्ची को ग्रीन कॉरिडोर बनाकर हैलट अस्पताल भेजा। चार टीमें आरोपी की तलाश में जुटी हैं, लेकिन वह अभी फरार है। यह तत्परता सराहनीय है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह काफी है? अन्य मामलों में पुलिस की कार्रवाई पर नजर डालें:
लखनऊ मामले में पुलिस ने 24 घंटे में आरोपी को एनकाउंटर में मार गिराया, लेकिन क्या हर मामले में एनकाउंटर ही समाधान है?
कौशांबी मामले में पुलिस पर जातिगत पक्षपात और पीड़ित परिवार को धमकाने के आरोप लगे।
जौनपुर मामले में त्वरित सुनवाई हुई और 26 दिन में सजा सुनाई गई, लेकिन ऐसे मामले अपवाद क्यों हैं?
कानपुर आईआईटी रेप मामले में एसीपी मोहसिन खान को सस्पेंड किया गया, लेकिन जांच अभी तक अधूरी है।
पुलिस की कार्रवाई में देरी, लापरवाही, और कभी-कभी पक्षपात की शिकायतें आम हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी यूपी पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। कानपुर रेप जैसे मामलों में शुरुआती घंटे महत्वपूर्ण होते हैं, फिर भी आरोपी फरार है। क्या पुलिस की प्राथमिकता सिर्फ हाई-प्रोफाइल मामलों तक सीमित है? क्या सामान्य परिवारों की पुकार सुनी जाएगी?
kanpur rape:समाज की मानसिकता: वासना के भेड़िए क्यों पनप रहे हैं?
कानपुर रेप ने एक बार फिर समाज की उस गंदी मानसिकता को उजागर किया है, जो मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शती। पड़ोस का “अंकल” जिसे बच्ची भरोसे से देखती थी, वही उसका शिकारी बन गया। यह सिर्फ एक व्यक्ति की मानसिकता नहीं, बल्कि समाज के उस ताने-बाने का सवाल है, जहां वासना को पनपने का मौका मिलता है।
क्यों एक 5 साल की बच्ची भी सुरक्षित नहीं है?
क्यों समाज ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साध लेता है?
क्यों पीड़ित परिवार को ही शर्मिंदगी और डर का सामना करना पड़ता है?
शारदा प्रसाद, पूर्व NCRB निदेशक, का कहना है कि यूपी में रेप के मामलों की बढ़ोतरी का कारण सामंती विचारधारा और पितृसत्तात्मक मानसिकता है। समाज में रेप को अब भी शर्म और इज्जत से जोड़ा जाता है, जिसके चलते कई मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते। लेकिन जो मामले सामने आते हैं, उनमें भी न्याय की राह इतनी लंबी क्यों?
लचर कानून: कब तक मासूमों की चीखें अनसुनी रहेंगी?
कानपुर रेप जैसे मामलों में कानून की लचरता साफ दिखती है। निर्भया कांड के बाद 2013 में रेप कानूनों में बदलाव हुए, कस्टोडियल रेप को दंडनीय बनाया गया। 2018 में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के लिए फांसी का प्रावधान जोड़ा गया। फिर भी, 24 साल में सिर्फ 5 बलात्कारियों को फांसी हुई।
क्यों दो-तिहाई रेप केस में आरोपी बरी हो जाते हैं?
क्यों त्वरित सुनवाई हर मामले में नहीं होती?
क्यों पुलिस और कोर्ट की प्रक्रिया पीड़ित परिवारों को और तोड़ देती है?
पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था कि सिर्फ कानून बनाना काफी नहीं, उसका सख्ती से पालन जरूरी है। लेकिन कानपुर रेप जैसे मामलों में सजा की मिसाल क्यों नहीं बनती? क्या एक मासूम की चीखें कानून के कागजों में दबकर रह जाएंगी?
समाज को जागने की जरूरत
कानपुर रेप ने साबित कर दिया कि वासना के भेड़िए हमारे बीच ही छिपे हैं। यह सिर्फ पुलिस या कानून की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। हमें अपने बच्चों को सुरक्षित माहौल देना होगा। पड़ोसियों पर नजर रखनी होगी, बच्चों को जागरूक करना होगा, और सबसे जरूरी—इस मानसिकता को बदलना होगा, जो ऐसी घटनाओं को जन्म देती है।यहां सवाल उठता है कि,
क्या हम अपने बच्चों को बिना डर के घर से बाहर भेज सकते हैं?
क्या हमारा समाज ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तैयार है?
क्या हम चुप रहकर इन हैवानों को और मौका देंगे?
kanpur rape:अब और नहीं, इंसाफ दो!
कानपुर रेप की यह मासूम बच्ची आज जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है। उसकी चीखें, उसका खून से सना चेहरा, और उसकी मां की पुकार समाज के लिए एक चुनौती है। हम कब तक मासूमों की चीखें अनसुनी करेंगे? हम कब तक कानून की लचरता और समाज की चुप्पी को बर्दाश्त करेंगे? यह वक्त है कि वासना के इन भेड़ियों को ऐसी सजा दी जाए, जो मिसाल बने। यह वक्त है कि समाज जागे, कानून सख्त हो, और हर मासूम की मुस्कान सुरक्षित रहे। अब और नहीं—इंसाफ दो, ताकि कोई और बच्ची ऐसी हैवानियत का शिकार न बने!