Journalist Murder Saharanpur
Journalist Murder Saharanpur: 6 साल बाद मिला ‘इंसाफ’ या धोखा?
सहारनपुर के Journalist Murder केस में आखिरकार 6 साल बाद अदालत ने तीन हत्यारों को उम्रकैद सुना दी। 18 अगस्त 2019 की वो दोपहर कौन भूल सकता है, जब माधव नगर में पत्रकार आशीष धीमान को दिनदहाड़े घर में घुसकर गोलियों से छलनी कर दिया गया था। 6 साल तक पुलिस फाइलें पलटती रही, परिवार कोर्ट के चक्कर काटता रहा, पत्रकार सड़कों पर नारे लगाते रहे — और अब कोर्ट ने महिपाल सैनी, सूरज सैनी और बिमलेश को उम्रकैद और 1,95,050 रुपये जुर्माने से नवाज़ दिया। लेकिन सवाल ये है कि Journalist Murder सिर्फ एक कत्ल था या लोकतंत्र का गला घोंटना?
Journalist Murder Saharanpur: पत्रकार बोले- ये न्याय नहीं, मजाक है!
Journalist Murder पर कोर्ट का ये फैसला सुनने के बाद पत्रकारों का गुस्सा और उबाल पर है। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष आलोक तनेजा से लेकर मान्यता प्राप्त पत्रकार नवाज़िश खान तक सबने साफ कह दिया — उम्रकैद से कुछ नहीं होगा! लोकतंत्र के पहरेदार को मारने वालों को फांसी चाहिए। Journalist Murder के गुनहगारों को फांसी की मांग अब और बुलंद हो रही है। पत्रकार समाज पूछ रहा है — क्या कलम की आवाज़ कुचलने वालों को जेल में खाना खिलाना ही इंसाफ है? Journalist Murder में कोई माफीनामा नहीं, फांसीनामा चाहिए!
Journalist Murder Saharanpur: अब सवाल पत्रकार सुरक्षा कानून का!
Journalist Murder केस ने ये भी साफ कर दिया कि ‘ऑपरेशन कन्विक्शन’ से फैसले तो मिल सकते हैं, लेकिन जान नहीं बचती। एसएसपी की निगरानी, सरकारी वकील अमित त्यागी की दलीलें, विवेचक विरेशपाल गिरी की मेहनत — सब सही। लेकिन सवाल बड़ा है — कब तक कलम पर गोली चलेगी? कब बनेगा Journalist Security Law? पत्रकार रोज सड़क पर, माफिया के निशाने पर — और सरकार बस मुआवजा और फोटो खिंचवाकर चुप! Journalist Murder पर न्याय तभी पूरा होगा जब दोषियों को फांसी मिलेगी और बाकी पत्रकारों को सुरक्षा की गारंटी।
Journalist Murder Saharanpur: 6 साल बाद भी डर कायम
Journalist Murder ने ये भी दिखा दिया कि इस मुल्क में सच बोलना अब भी जानलेवा है। आशीष धीमान की हत्या को 6 साल बीत गए, लेकिन सच कहने वालों का डर आज भी वैसा ही है। कौन जाने अगला Journalist Murder किसके घर में घुसेगा? और कब कोई महिपाल, सूरज या बिमलेश ‘ऑपरेशन कन्विक्शन’ की फाइलों में नई एंट्री बन जाएगा? लोकतंत्र में पत्रकार की कलम से बड़ा कोई हथियार नहीं — और वही हथियार आज भी सबसे ज्यादा निशाने पर है।
Journalist Murder Saharanpur: कलम की ताकत या कोर्ट का तमाचा?
Journalist Murder का ये फैसला कोर्ट ने दिया है या कोई समझौता हुआ है? पत्रकार समाज सवाल कर रहा है। क्योंकि ये सज़ा उतनी बड़ी नहीं, जितनी बड़ी ये साजिश थी। 6 साल से परिवार को कौन लौटाएगा? उस मां की गोद कौन भरेगा? उस कलम की स्याही कौन लौटाएगा? Journalist Murder पर अब एक ही नारा है — इंसाफ चाहिए, मगर पूरा चाहिए। उम्रकैद नहीं, सीधा फांसी दो — ताकि कल कोई और हिम्मत न करे सच्चाई के मसीहाओं पर गोली चलाने की।
Written by khabarilal.digital Desk
🎤 संवाददाता: पारस पंवार
📍 लोकेशन: सहारनपुर, यूपी
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