
Indira Gandhi, Former Prime Minister
Indira – The Iron Lady. कैसे हुआ India is Indira और Indira is India नारे का अंत? Inside Story||
New Delhi – भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री… The Iron Lady – Indira Gandhi. कहते हैं उन्हे अपनी मौत का एहसास पहले से हो चुका था. इसीलिए शायद उन्होने अपनी मौत से एक दिन पहले उड़ीसा के भुवनेश्वर में वो ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसमें कहा था “मेरे खून का एक-एक कतरा देश को मज़बूत करेगा”. इस भाषण के अगले ही दिन दिल्ली में उनके निवास स्थान पर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई. उस घटना ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिला डाला था.
कैसे Indira ‘गूंगी गुड़िया’ से बन गईं Iron Lady?

प्रधानमंत्री पर हमारी खास सीरीज़ के पिछले आर्टिकल में हमने बात की थी देश के दूसरे Prime Minister Lal Bahadur Shastri की. आज बात करेंगे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री Indira Gandhi की जिन्हे दुनियाभर के लोग IRON LADY के नाम से भी जानते हैं. कुछ लोग उन्हे सख्त मिज़ाज तो कुछ उन्हे तानाशाह भी बुलाते हैं. लेकिन जिस महिला को कभी उनकी कैबिनेट के लोग ही गूंगी गुड़िया बुलाते थे आखिर कैसे वो देश की लौह महिला बन गईं जिसने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था. दरअसल 1964 में नेहरू की मौत के बाद जैसे-तैसे शास्त्री जी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. लेकिन 1966 में ताशकंद में उनकी रहस्यमयी मौत ने पार्टी को फिर धर्म संकट में डाल दिया. ‘Indira इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर’ किताब लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सागरिका घोष लिखती हैं कि शास्त्री जी के निधन के बाद एक बार फिर सिंडिकेट एक्टिव हो गया था. जो कांग्रेस अध्यक्ष K. Kamraj को प्रधानमंत्री पद पर काबिज़ होने के लिए मना रहा था. लेकिन कामराज का कहना था कि मुझे रहने दो… मैं न तो ठीक से हिंदी जानता हूं और ना अंग्रेजी. फिर कैसे पीएम बन सकता हूं.? सिंडिकेट कामराज की बात से सहमत हो गया. लेकिन वो मोरारजी देसाई को PM की कुर्सी से दूर रखना चाहते थे. सिंडिकेट का ये मानना था कि मोरारजी PM बन गए तो वो अपनी मनमर्जी करेंगे. ये वो समय था, जब इंदिरा गांधी सूचना प्रसारण मंत्री थीं. संसद में किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में उनके हाथ-पैर कांपते थे. सिंडिकेट के लोग उन्हें गूंगी गुड़िया कहते थे. इसलिए उन्हे लगता था कि ये गूंगी गुड़िया PM पद के लिए परफेक्ट चॉइस है. उनके ज़रिए सिंडिकेट सरकार में अपनी मनमानी कर सकता था. और नेहरू की बेटी होने की वजह से उन्हें कोई मना भी नहीं कर सकता. 1967 के आम चुनाव में 13 महीने बाकी थे. Indira Gandhi राष्ट्रीय चेहरा थीं. उनके चेहरे पर आसानी से वोट भी मांगे जा सकते थे. 19 जनवरी 1966 को इंदिरा और मोरारजी के बीच चुनाव हुआ. नतीजे वही आए जो सिडिकेट चाहता था. इंदिरा को 355 और मोरारजी को कुल 169 वोट मिले. इस तरह से वो PM चुन ली गईं. 24 जनवरी 1966 को शपथ लेने के साथ ही इंदिरा देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. इसके बाद 1967, 1971 और 1980 के चुनावों में जीतकर फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठीं.
ये मेरा नहीं, देश का अपमान है – Indira

जिस वक्त Indira ने देश की बागडोर संभाली थी तब देश भयंकर सूखे की मार झेल रहा था. 65 की जंग के बाद अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान दोनों की मदद करना बंद कर दिया था. इस वजह से इंदिरा पहली बार प्रधानमंत्री के तौर पर विदेश दौरे पर अमेरिका गईं. तब अमेरिकन अखबारों ने लिखा था – New Indian Leader Comes Begging. मतलब – भारत की नई नेता भीख मांगने चली आई. अगले साल ही देश में चौथी बार लोकसभा चुनाव होने जा रहे थे जिसके लिए फरवरी में इंदिरा गांधी जोरदार चुनाव प्रचार कर रही थीं. 8 फरवरी को इंदिरा भुवनेश्वर में एक रैली को संबोधित कर रही थीं. ओडिशा में स्वतंत्र दल वालों का दखल ज्यादा था. उन्हें पूरा भरोसा था कि वे बहुमत से जीतेंगे. लेकिन वो लोग Indira के भाषण से काफी नाराज थे. कुछ लोगों ने सभा में हंगामा शुरू किया और इंदिरा के भाषण के दौरान ही पत्थरों की बरसात होने लगी. एक पत्थर Indira Gandhi की नाक पर आकर लगा और खून बहने लगा. वहां मौजूद सुरक्षा अधिकारी और स्थानीय कांग्रेसी नेता इंदिरा को मंच से पीछे हटने को कहा लेकिन इंदिरा नही मानीं और मंच पर ही डटी रहीं. उनकी नाक से लगातार खून बह रहा था. उन्होने उस हालात में भी नाक पर रूमाल रखा और उपद्रवियों को ललकारते हुए कहा- ये मेरा नहीं देश का अपमान है… क्योंकि मैं प्रधानमंत्री होने के नाते देश का प्रतिनिधित्व करती हूं.
पाकिस्तान ने किया हमला तो Indira ने घुटनों पर ला दिया

वक्त आगे बढ़ा और साल आया 1971. जब पाकिस्तान ने तीन दिसंबर को ‘ऑपरेशन चंगेज खां’ चलाया और कश्मीर पर हमला कर दिया. पश्चिमी हिस्से से पाकिस्तानी वायुसेना ने बम गिराने शुरू कर दिए थे. ये वो दौर था जब पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब हम बांग्लादेश कहते हैं, वहां पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के चलते रोज एक लाख शरणार्थी भारत आ रहे थे. इससे भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह बिगड़ने लगी थी. अमेरिका ने भी इस पर दखल देने से मना कर दिया था. जब पाक ने हमला किया इंदिरा कलकत्ता में एक सभा में भाषण दे रही थीं. Sagarika Ghosh अपनी किताब में लिखती हैं कि “इंदिरा ने हमले की खबर सुनकर कहा कि Thank God उन्होंने हम पर हमला कर दिया. अब हमारे पास युद्ध करने की ठोस वजह है”. उस वक्त सारी दुनिया ने इंदिरा का लोहा मान लिया था. क्योंकि एक तरफ वो कूटनीतिक मोर्चे पर Pakistan को बेपर्दा कर रही थीं और दूसरी तरफ सेना को जवाबी कार्रवाई करने का आदेश दे चुकी थीं. इंदिरा का आदेश मिलते ही देश की सेना पाकिस्तान पर टूट पड़ी. India-Pakistan की जंग शुरू हो चुकी थी और अमेरिका उसकी पूरी मदद कर रहा था. 12 दिसंबर को इंदिरा ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक जनसंबोधन में कहा “हम किसी से डरेंगे नहीं, किसी के आगे झुकेंगे नहीं. हम अपनी आज़ादी के लिए लड़ते रहेंगे. जरूरत पड़ी तो दुश्मन का मुकाबला मुक्कों से भी करेंगे”. हालांकि 14 दिन में ही लड़ाई खत्म हो गई. अमेरिका का 7वां बेड़ा जब तक बंगाल की खाड़ी पहुंचा, उससे पहले ही पाकिस्तान भारत के आगे घुटने टेक चुका था. दुनिया के इतिहास में पहली बार 93 हजार सैनिकों ने एक साथ हथियार डाले थे. और इस तरह बांग्लादेश का जन्म हुआ था.
जेपी आंदोलन ने हिलाईं Indira की जड़ें

Indira की बात हो और Emergency का जिक्र ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है? साल आया 1975. Jayaprakash Narayan के नेतृत्व में देशभर में Indira Gandhi के खिलाफ प्रदर्शन किए जा रहे थे. इसे लोग जेपी आंदोलन के नाम से भी जानते हैं. इसी आंदोलन से आगे चलकर कई बड़े नेता निकले जैसे लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार. ये तमाम नेता आगे चलकर बड़े पदों तक पहुंचे. तो जैसा हम बता रहे थे – 12 जून 1975 को Allahabad High Court ने Indira Gandhi के चुनाव को अवैध घोषित करके 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. इंदिरा पर आरोप था कि उनके निजी सचिव यशपाल कपूर ने चुनाव के दौरान उनके एजेंट के तौर में काम किया जबकि वो एक सरकारी नौकर थे. कोर्ट ने जांच में ये भी पाया कि 1971 की चुनावी सभा के दौरान लाउडस्पीकर के लिए सरकारी बिजली इस्तेमाल की गई थी. कोर्ट के इस फैसले के बाद उन्हें पद से हटना था.
Indira ने नहीं दिया इस्तीफा और लगा दी Emergency

इंदिरा की अच्छी दोस्त रहीं पपुल जयकर अपनी किताब ‘Indira Gandhi, A Biography’ में लिखती हैं कि “इंदिरा तो पद से हटने का मन बना चुकी थीं लेकिन उनका छोटा बेटा संजय जब अपनी मारुति कार के कारखाने से शाम को लौटा तो उन्होंने चीखते हुए कहा कि मां के इस्तीफा देने का कोई सवाल नहीं बनता… संजय ने कहा कि आज जो वफादारी की कसम खा रहे हैं. सत्ता हाथ आते ही पीठ में छुरा भोंक देंगे”. वहीं इंदिरा के निजी सचिव रह चुके RK Dhawan ने दावा किया कि इंदिरा अपना इस्तीफा टाइप करवा चुकी थीं… लेकिन उन्होंने कभी दस्तखत नहीं किए. इंदिरा के राजनीतिक सलाहकार रहे सिद्धार्थ शंकर रे ने भी बताया कि “इंदिरा पद से हटने का मन बना चुकी थीं. इस दौरान बाबू जगजीवन राम ने इंदिरा से कहा कि आपको इस्तीफा नहीं देना चाहिए. अगर आप पद छोड़ भी रही हैं तो आपके उत्तराधिकारी का चुनाव हम पर छोड़ दीजिए”. राजनतीति से जुड़े जानकार बताते हैं कि ये बात सुनने के बाद इंदिरा ने अपना इरादा बदल दिया और उन्हें संजय की बात पर भरोसा हो गया था. इसके बाद वो हुआ जिसकी देशवासियों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. 25 जून 1975 को इंदिरा ने देश में इमरजेंसी लगा दी. विपक्ष के सारे नेताओं को उठआ कर जेल में डाल दिया. प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई. नसबंदी जैसे कई कार्यक्रमों ने जनता को नाराज कर दिया. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक के 21 महीने भारत ने आपातकाल का दंश झेला था. जिसका खामियाज़ा Indira को अगले ही चुनाव में भुगतना पड़ा जब पहली बार कांग्रेस की इतनी बड़ी हार हुई थी.
देश में पहली बार बनी गैर कांग्रेसी सरकार

देश की जनता कांग्रेस से नाराज़ थी… जिसकी वजह से पहली बार देश में जनता पार्टी की सरकार बनी. मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया. लेकिन जनता सरकार में मंत्रालयों को लेकर आपसी झगड़े शुरू हो चुके थे. Indira Gandhi कुछ महीने चुप रहीं. इस दौरान बिहार में एक बड़े हत्याकांड की खबर सामने आई. बिहार के बेलछी में कुछ दंबगों ने दलितों पर गोली चलाई और 11 लोगों को जलाकर मार डाला. चार महीने पहले ही चुनाव में बुरी तरह हारीं इंदिरा के लिए पॉलीटिकल माइलेज का ये सुनहरा मौका था. लिहाज़ा वो बिना वक्त गंवाए बेलछी के लिए रवाना हो गईं. इंदिरा पटना तक ट्रेन से पहुंचीं… उसके बाद जीप से काफिला आगे बढ़ा. जीप रास्ते में फंस गई तो इंदिरा ट्रैक्टर पर सवार हो कर आगे बढ़ीं. ट्रैक्टर भी फंस गया तो इंदिरा ने साड़ी टखनों तक ऊपर की, और कीचड़ में ही चलने लगीं. इंदिरा के इस दौरे ने झटके में उनकी छवि बदल दी और देश की जनता ने उन्हे माफ भी कर दिया. जानकार बताते हैं बेलछी से लौटते वक्त इंदिरा ने अपने सबसे बड़े विरोधी JP Narayan से भी मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद जेपी जब तक जीवित रहे, उन्होंने कभी इंदिरा के खिलाफ बयानबाज़ी नहीं की. तीन साल बाद 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए और एक बार फिर इंदिरा गांधी ने 353 सीटों के साथ ज़बरदस्त वापसी की.
Operation Blue Star बना Indira की मौत वजह!

80 का दशक शुरू होते ही पंजाब में हालात बिगड़ने लगे थे. पंजाब में खालिस्तान की मांग जोर पकड़ चुकी थी. ये आंदोलन जरनैल सिंह भिंडरांवाले की अगुवाई में चल रहा था. भिंडरांवाले ने अमृतसर के Golden Temple यानि हरमंदिर साहिब को अपना अड्डा बना लिया था. उसे पकड़ने के लिए इंदिरा के आदेश पर सेना ने Sri Harmandir Sahib पर हमला कर दिया. बहुत खून खराबा हुआ था. इस घटना से सिख समुदाए के लोगों की भावनाएं काफी आहत हुईं. पंजाब के लोगों में इंदिरा को लेकर बहुत ज्यादा गुस्सा था. जिसे देखते हुए जांच एजेंसियों ने Indira की सुरक्षा में तैनात सिख जवानों को हटाने का सुझाव भी दिया था. लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया. 30 अक्टूबर 1984 का वो दिन था जब इंदिरा गांधी ने ओडिशा के भुवनेश्वर अपना वो ऐतिहासिक भाषण दिया था और कहा था “मेरे खून का एक-एक कतरा देश को मज़बूत करेगा”. इस भाषण को सुनकर मानों ऐसा लग रहा था कि उन्हे अपनी मौत का अंदाज़ा हो चुका था. भाषण के सिर्फ 24 घंटे के अंदर यानि 31 अक्टूबर 1984 के दिन दोपहर तक खबर आती है कि देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नहीं रहीं… उनके अपने 2 सिख गार्ड्स ने सुबह 9.30 बजे गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी. देश के लोग सन्न रह गए थे. दूरदर्शन पर उनकी मौत की खबर सुनाते वक्त न्यूज़ एंकर सलमा सुल्तान भी अपने आंसु उमड़ने से नहीं रोक पाई थीं. और इस तरह India is Indira और Indira is India नारे का भी अंत हो गया.