 
                  India-China के करीब आने से America को कितना होगा नुकसान? समझिए पूरी कहानी
India-China Relations News
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी चीन यात्रा और शी जिनपिंग से मुलाकात की ख़बरों ने वैश्विक कूटनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। एक ऐसा दौर, जब अमेरिका, रूस, चीन और भारत जैसे शक्तिशाली देश नई रणनीतिक चालें चल रहे हैं—ऐसे में भारत और चीन (India-China) का एक-दूसरे के करीब आना अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन सकता है। आइए, 5 प्वाइंट्स में समझते हैं कि भारत-चीन के बीच संबंधों में सुधार से अमेरिका को कितना और कैसे नुकसान हो सकता है।
1. अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति भारत को चीन के करीब धकेल रही है
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका की विदेश नीति में बड़ा बदलाव आया है।
- भारत पर रूसी तेल खरीदने को लेकर दबाव बनाया जा रहा है और भारी टैरिफ लगाए गए हैं।
- अमेरिका ने H-1B वीजा, व्यापारिक नियमों और रक्षा सौदों में भी भारत के लिए अड़चनें खड़ी की हैं।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार फैसले लेगा, न कि किसी बाहरी दबाव में।
नतीजा? भारत धीरे-धीरे रूस और चीन जैसे देशों के साथ विकल्प तलाश रहा है।
अगर यह रुख गहराया, तो अमेरिका की एशिया-केंद्रित रणनीति कमजोर हो सकती है।
2. India-China संबंधों में ‘तनाव से संवाद’ की ओर बढ़ता रुख
- गलवान संघर्ष (2020) के बाद पहली बार मोदी चीन यात्रा पर जा रहे हैं।
- डेमचोक और देपसांग जैसे विवादित इलाकों से सेनाएं पीछे हटी हैं।
- कैलाश मानसरोवर यात्रा, व्यापार और तकनीकी सहयोग पर फिर से बातचीत शुरू हो रही है।
यह सब दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच रचनात्मक संवाद की संभावना फिर से बढ़ी है।
अगर भारत और चीन के रिश्तों में स्थिरता आती है, तो अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति और Quad की प्रभावशीलता पर असर पड़ सकता है।

3. आर्थिक मोर्चे पर भारत-चीन नजदीकी से अमेरिका को चुनौती
- भारत-चीन व्यापार 2024-25 में $120 अरब डॉलर पार कर गया है।
- BYD, Xiaomi जैसी चीनी कंपनियों को भारत में निवेश की अनुमति मिल रही है।
- इससे भारत को 2-3% तक अतिरिक्त आर्थिक विकास मिल सकता है।
हालांकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है (150 अरब डॉलर वार्षिक), लेकिन अगर भारत को सस्ते निवेश और तकनीकी साझेदारी चीन से मिलने लगे, तो अमेरिका की इकॉनोमिक एक्सेसिवनेस कम हो सकती है।
4. तीन शक्तियों का समीकरण: भारत-चीन-रूस मिलकर अमेरिका को घेर सकते हैं
- तियानजिन सम्मेलन में मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग की एक साथ मौजूदगी अमेरिका को रणनीतिक रूप से परेशान कर सकती है।
- ऊर्जा, सुरक्षा, और तकनीक के क्षेत्र में यदि भारत-चीन-रूस कोई गंभीर गठबंधन बनाते हैं, तो अमेरिका की दक्षिण एशिया नीति को झटका लग सकता है।
- डॉलर की जगह स्थानीय मुद्राओं में व्यापार, ऊर्जा बाजार में नए समीकरण और वैश्विक सप्लाई चेन में एशिया की भूमिका बढ़ना— ये सब अमेरिका के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं।
5. भारत की रणनीति: संतुलन साधने की कूटनीति
- भारत ने स्पष्ट किया है कि वह QUAD और चीन—दोनों को अलग-अलग ट्रैक पर देखता है।
- सीमा पर शांति से भारत को अपने रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा अन्य विकास कार्यों में लगाने का अवसर मिलेगा।
- चीन से शांतिपूर्ण संबंध, भारत के लिए आंतरिक विकास की राह आसान कर सकते हैं।
पूर्व आर्मी चीफ और CDS जनरल बिपिन रावत भी कह चुके हैं, “चीन के साथ शांति भारत की रक्षा रणनीति के लिए अनिवार्य है।”
क्या भारत की नई दिशा अमेरिका के लिए सिरदर्द बनेगी?
भारत-चीन के करीब आने से अमेरिका को रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक स्तर पर नुकसान हो सकता है:
- इंडो-पैसिफिक में अमेरिका का प्रभाव घटेगा।
- QUAD कमजोर हो सकता है।
- ऊर्जा बाजार और व्यापार संतुलन अमेरिका के खिलाफ झुक सकता है।
हालांकि भारत फिलहाल संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अगर अमेरिका अपनी नीतियों में लचीलापन नहीं लाता, तो भारत का झुकाव चीन की ओर बढ़ना अमेरिका के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता है।
भारत की विदेश नीति अब बहुध्रुवीय विश्व की ओर इशारा कर रही है—जहां देश केवल एक धड़े का हिस्सा नहीं, बल्कि स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और रणनीतिक रूप से लचीले होंगे।

 
         
         
        