
Humanity शर्मसार, सिस्टम बेहाल
Humanity:”जहां सिस्टम ने हांफ लिया, वहां ‘पहलवान’ ने थाम लिया!”
Humanity:जमुना बासफोर। नाम तो सुना ही होगा… नहीं सुना? तो सुन लीजिए। ये वही हैं जो गोबरचोता गांव के मिट्टी से लिपे घर में अपने सात बच्चों के साथ ज़िंदगी को हर रोज़ मज़दूरी की रस्सी से खींचकर घसीटते हैं। तीन बेटे, चार बेटियां और घर का ताज – गरीबी, जो दहेज में नहीं, पर पीढ़ियों से विरासत में मिली है।
अब कहानी के असली हीरो पर आते हैं – रोहित बासफोर। गरीब का बेटा था, इसलिए सपने देखने का हक नहीं मिला। दिल्ली गया, मजदूरी की, ट्रेन पकड़ी… और वही ट्रेन एक दिन उसे पकड़ गई। बायां पैर ले उड़ी। और फिर?
फिर वही हुआ जो इस देश में अक्सर होता है – “जनप्रतिनिधियों” की चौखट पर फरियादी के फटे कपड़ों में इंसान नहीं, सिर्फ वोटर दिखता है। वैशाखी मांगता रहा रोहित, नेता जी मुस्कुराते रहे जैसे कह रहे हों, “बेटा, हमारी राजनीति तुम्हारी लाचारी से ही तो जिंदा है!”
💪 ‘Shivprakash पहलवान’ – जब समाज सेवा ने कुश्ती का अखाड़ा देखा
और तभी एंट्री हुई – पहलवान साहब की! नहीं, ये कोई चुनावी झंडा लेकर आए नेता नहीं, ये आए वैशाखी लेकर।
शिवप्रकाश यादव – समाजसेवी, राज्य स्तरीय पहलवान, और अब गरीबी के अखाड़े में उम्मीद का दांव।
ना फोटोशूट, ना सोशल मीडिया लाइव। सीधे पहुंचे रोहित के घर, चप्पल उतारी, हाल पूछा, और वैशाखी थमाई। उस वक़्त रोहित की आंखों में जो चमक थी, वो नेताओं की गाड़ियों की हेडलाइट से कहीं ज़्यादा तेज़ थी।
🤼 समाज में जब ‘पहलवान’ बनता है मसीहा और ‘प्रतिनिधि’ बनते हैं गूंगे दर्शक
अब सवाल उठता है – क्या वैशाखी देना बहुत बड़ा काम था?
शायद नहीं, पर जब समाज में नेताओं की बुलेटप्रूफ गाड़ियां 20 लाख की होती हैं और एक वैशाखी देने में 2 महीने लगते हैं, तो हां – ये काम बहुत बड़ा हो जाता है।
शिवप्रकाश पहलवान ने वो कर दिखाया जो सिस्टम नहीं कर सका –
“समय पर मदद।”
और ये वो चीज़ है जो आज के लोकतंत्र में VVIP मूड के बगैर नहीं मिलती।
नेताजी की परिभाषा – ‘हमेशा उपलब्ध, सिवाय ज़रूरत के समय के’
जनप्रतिनिधि तो हर गांव के होते हैं। लेकिन जब किसी की टांग कट जाए, तो सारे जनप्रतिनिधि “मौसम खराब है” कहकर फोन नहीं उठाते।
गांव की दीवारों पर “प्रधानमंत्री आवास योजना” के बड़े-बड़े बोर्ड लगे हैं, लेकिन उन दीवारों की छांव में रहने वाले रोहित के लिए एक वैशाखी तक नसीब नहीं हुई।
ये वही नेता हैं जो हर पांच साल में बर्फी और बुलेट दोनों बांटते हैं, पर एक वैशाखी देने के लिए चंदा मांगने की एक्टिंग करते हैं।
🌿 ‘मानवता की सेवा’ – अब राजनीति का टेंडर नहीं, पहलवान का Punch बन चुका है
समाजसेवी अजीत यादव ने मौके पर कहा कि “दिव्यांगों की सेवा से आत्मा को संतोष मिलता है।”
बिल्कुल सही कहा, पर यही शब्द अगर ‘नेता जी’ के मुंह से निकलते तो 5 कैमरे साथ आते।
पहलवान ने ना भाषण दिया, ना पोस्टर छपवाया – बस मानवता की कुश्ती में सच्ची जीत दिला दी।
जब सरकार बहरी हो जाए, तब एक आम इंसान ही सबसे बड़ा ‘सिस्टम’ होता है
इस कहानी की सबसे बड़ी विडंबना ये है कि एक वैशाखी के लिए भी रोहित को कई बार गिड़गिड़ाना पड़ा,
और सबसे बड़ी सीख ये कि समाज बदलने के लिए कुर्सी नहीं, ‘किसी का सहारा बनने का जज़्बा’ चाहिए।
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