
Iran-Israel War Update
Iran-Israel के बीच दुश्मनी: कारण, हाल के टकराव और युद्ध का प्रभाव
ईरान और इज़रायल, दो छोटे लेकिन प्रभावशाली देश, दशकों से एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बने हुए हैं। पश्चिम एशिया में चल रही कई जंगों और अशांतियों के पीछे इन दोनों की दुश्मनी का बड़ा हाथ है। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच तनाव और हमले तेज़ हुए हैं, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है। आइए, इस दुश्मनी की जड़ें, हाल के टकरावों के कारण और संभावित युद्ध (Iran-Israel War)के प्रभाव को विस्तार से समझते हैं।
दुश्मनी की शुरुआत: दोस्ती से दुश्मनी तक
1948 में इज़रायल के निर्माण के बाद, जब उसे अरब देशों के विरोध का सामना करना पड़ा, ईरान ने 1950 में इज़रायल को एक देश के रूप में मान्यता दी थी। 1970 के दशक तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक, सैन्य और तेल व्यापार के मजबूत संबंध थे। लेकिन 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति ने सब कुछ बदल दिया। अयातुल्ला ख़ुमैनी के नेतृत्व में शाह रज़ा पहलवी की सत्ता उखड़ गई और एक कट्टरपंथी शिया इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई। इस क्रांति ने ईरान को न केवल कट्टरपंथी इस्लामी राष्ट्र बनाया, बल्कि इज़रायल को “शैतान” और “कैंसर” घोषित कर इसे मिटाने की नीति अपनाई गई। इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते दुश्मनी में बदल गए।
दुश्मनी के कारण
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धार्मिक और वैचारिक मतभेद
ईरान एक शिया बहुल इस्लामी गणराज्य है, जो खुद को इस्लामी दुनिया का रहनुमा मानता है। यह फ़िलिस्तीन को इज़रायल द्वारा कब्ज़ा किया हुआ क्षेत्र मानता है और इस्लामी हुकूमत की स्थापना का समर्थन करता है। दूसरी ओर, इज़रायल एक यहूदी राष्ट्र है, जो अपनी सुरक्षा और अस्तित्व को सर्वोपरि मानता है। ईरान के नेता, अयातुल्ला ख़ुमैनी से लेकर अयातुल्ला अली खामेनेई तक, इज़रायल को मिटाने की बात करते रहे हैं, जिसे इज़रायल अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है।
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प्रॉक्सी वॉर और क्षेत्रीय वर्चस्व
ईरान और इज़रायल सीधे युद्ध से बचते हैं, लेकिन दोनों दशकों से छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) में शामिल हैं। ईरान लेबनान में हिज़्बुल्लाह, ग़ज़ा में हमास, और सीरिया व इराक में शिया मिलिशिया जैसे संगठनों को समर्थन देता है, जो इज़रायल पर रॉकेट हमले, घुसपैठ और आत्मघाती हमले करते हैं। जवाब में, इज़रायल इन संगठनों और ईरान समर्थित ठिकानों पर हवाई हमले करता है। उदाहरण के लिए, इज़रायल ने ग़ज़ा में हमास, लेबनान में हिज़्बुल्लाह और सीरिया में ईरान समर्थित ठिकानों को निशाना बनाया है।
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ईरान का परमाणु कार्यक्रम
इज़रायल के लिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम सबसे बड़ा खतरा है। ईरान का दावा है कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम शांतिपूर्ण है, लेकिन इज़रायल और पश्चिमी देश इसे परमाणु हथियार बनाने की कोशिश मानते हैं। इज़रायल की नीति स्पष्ट है: वह किसी भी दुश्मन देश को परमाणु हथियार बनाने की अनुमति नहीं देगा। इसके लिए इज़रायल ने अतीत में इराक (1981) और सीरिया (2007) के परमाणु रिएक्टरों को नष्ट किया था। हाल के वर्षों में, इज़रायल ने ईरान के नतांज़ परमाणु केंद्र पर साइबर हमले (जैसे स्टक्सनेट) और हवाई हमले किए हैं।
हाल के टकराव
हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच तनाव और हमले तेज़ हुए हैं। कुछ प्रमुख घटनाएँ:
- अप्रैल 2024: इज़रायल ने दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर मिसाइल हमला किया, जिसमें कई वरिष्ठ ईरानी अधिकारी मारे गए। जवाब में, ईरान ने 13 अप्रैल 2024 को पहली बार इज़रायल पर 300 से अधिक ड्रोन और मिसाइलों से हमला किया। इज़रायल और उसके सहयोगियों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस) ने इनमें से अधिकांश को नष्ट कर दिया।
- जून 2025: इज़रायल ने ऑपरेशन राइज़िंग लायन के तहत ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों, जैसे नतांज़, तबरीज़ और करमानशाह, पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए। इन हमलों में ईरान के शीर्ष सैन्य कमांडर और वैज्ञानिक मारे गए। जवाब में, ईरान ने ऑपरेशन सीवियर पनिशमेंट के तहत तेल अवीव, यरुशलम और वेस्ट बैंक पर 150 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिससे इज़रायल में भारी नुकसान हुआ।
युद्ध का प्रभाव
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क्षेत्रीय अस्थिरता
ईरान और इज़रायल के बीच युद्ध पश्चिम एशिया में बड़े पैमाने पर अस्थिरता ला सकता है। यमन, लेबनान, सीरिया और इराक जैसे देश इसकी चपेट में आ सकते हैं। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी प्रभावित हो सकते हैं।
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वैश्विक अर्थव्यवस्था
ईरान दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है और स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज़ के पास उसकी भौगोलिक स्थिति महत्वपूर्ण है। युद्ध के कारण तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे वैश्विक तेल कीमतें बढ़ेंगी। भारत जैसे देश, जो ईरान से पिस्ता और किशमिश जैसे उत्पाद आयात करते हैं, पर भी इसका असर पड़ेगा।
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भारत पर प्रभाव
भारत के ईरान और इज़रायल दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। युद्ध की स्थिति में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर खतरा मंडरा सकता है। तेल की कीमतों में उछाल और शिपिंग रूट्स पर असर भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है। भारत ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है।
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वैश्विक समीकरण
अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश इज़रायल का समर्थन करते हैं, जबकि रूस और चीन ईरान के पक्ष में हैं। अरब देशों में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने इज़रायल के साथ संबंध सामान्य किए हैं, लेकिन जॉर्डन और क़तर जैसे देश फ़िलिस्तीन के समर्थन में हैं। यह युद्ध वैश्विक कूटनीति को और जटिल कर सकता है।
सुलह की संभावना
ईरान और इज़रायल की दुश्मनी धर्म, राजनीति, क्षेत्रीय वर्चस्व और सुरक्षा के मुद्दों पर आधारित है। जब तक फ़िलिस्तीन मुद्दा हल नहीं होता, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को नहीं रोकता और दोनों अपने कट्टरपंथी रुख में बदलाव नहीं करते, सुलह की संभावना न के बराबर है।
विनाशकारी होंगे परिणाम !
ईरान और इज़रायल की दुश्मनी न केवल पश्चिम एशिया, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा है। दोनों देशों के बीच हाल के हमले, विशेष रूप से इज़रायल के परमाणु ठिकानों पर हमले और ईरान की जवाबी कार्रवाई, युद्ध की आशंका को बढ़ा रहे हैं। वैश्विक समुदाय को इस टकराव को रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज़ करने होंगे, वरना इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।