
Haryana Congress Org. Deadline. जो संगठन 11 साल में नहीं बना वो 25 दिन में कैसे बनेगा? Rahul की Deadline से पहले खड़ा होगा संगठन?
Chandigarh : कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी इन दिनों काफी एक्टिव मोड में नजर आ रहे हैं और लगातार दौरे पर दौरे कर रहे हैं. पिछले साल के अंत में हुए Haryana Assembly Elections में कांग्रेस की करारी हार के 8 महीने बाद Rahul Gandhi ने प्रदेश में पार्टी संगठन को लेकर काम शुरू कर दिया है. इसी के चलते कांग्रेस नेता ने 4 जून को चंडीगढ़ के पार्टी प्रदेश मुख्यालय में एक अहम बैठक की. बैठक का नाम ‘संगठन सृजन कार्यक्रम’ रखा गया जिसमें आए सभी पर्यवेक्षकों को Rahul Gandhi ने 30 जून तक हरियाणा के सभी जिलों में अध्यक्ष बनाने का टारगेट दिया. मतलब साफ है कि अगले 25 दिनों में Haryana Congress के नेताओं को ये काम करना होगा.
3 बार लिस्ट बनी पर मुहर नहीं लगी

बताया जा रहा है कि हर जिले में 6 नामों का पैनल बनाया जाएगा. जिसमें 35 से 55 साल के लोगों के नाम होंगे जो जिला अध्यक्ष बन सकते हैं. इस टारगेट को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने सभी 22 जिलों में 90 नेताओं को काम पर लगाया है. जिसमें केंद्रीय पर्यवेक्षकों के अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 66 पर्यवेक्षक भी हैं. इनकी अहम भूमिका जिलाध्यक्ष का नाम तय करने की होगी. आपको बता दें हरियाणा में Phool Chand Mullana के कार्यकाल में साल 2013 में आखिरी बार जिलों में कार्यकारिणी बनी थी. 2014 में फूलचंद मुलाना ने पद छोड़ा जिसके बाद से संगठन आज तक खड़ा नहीं हो पाया है. पहले अशोक तंवर और फिर कुमारी सैलजा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे. उनके बाद चौधरी उदयभान का कार्यकाल भी 3 साल का हो चुका है. तीनों ने अपने कार्यकाल में पार्टी हाईकमान को लिस्ट सौंपी लेकिन उस पर कभी सहमति नहीं बन सकी. माना जाता है कि संगठन ना बन पाने की वजह से ही पहले 2019 में और अब 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता का सूखा देखना पड़ रहा है.
साल 2014 – अशोक तंवर
साल 2014 में कांग्रेस की ओर से फूलचंद मुलाना के बाद अशोक तंवर को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था. दिल्ली दरबार में उनकी अच्छी खासी पहुंच थी. अशोक तंवर की पत्नी अवंतिका कांग्रेस के दिग्गज अजय माकन की बहन हैं. लिहाज़ा Rahul Gandhi के कोटे से युवा नेता Ashok Tanwar को मौका मिल गया. उन्होने दो साल खूब मेहनत की और साल 2016 में हाईकमान को संगठन की लिस्ट सौंपी. लेकिन ये लिस्ट कभी जारी ना हो सकी. उसी साल दिल्ली की एक रैली में हुड्डा और तंवर समर्थकों की आपस में झड़प हो गई. वो खटास इतनी बढ़ गई कि 2019 विधानसभा चुनाव के वक्त टिकट वितरण में जब तंवर से ज्यादा हुड्डा की चली हो उन्होने पार्टी ही छोड़ दी. नतीजा ये हुआ कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस बिना संगठन के उतरी और चुनाव हार गई. हालांकि उस वक्त भी कांग्रस को हरियाणा में 31 सीटें मिली थीं जिसके बाद ये माना गया कि अगर वक्त रहते संगठन बन गया होता और गुटबाज़ी हावी ना होती तो शायद सरकार भी बन सकती थी.
साल 2019 – कुमारी सैलजा
2019 विधानसभा चुनाव से पहले टिकट वितरण को लेकर हुड्डा और तंवर गुट में झड़प के बाद तंवर ने पार्टी छोड़ दी. ऐसे में कांग्रेस ने नेशनल पॉलीटिक्स में एक्टिव और पुरानी नेता कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया और हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंपी. हाईकमान ने सैलजा को भी संगठन बनाने की जिम्मेदारी दी. तंवर को Out करवा चुके पूर्व सीएम हुड्डा गुट के लोगों की कुछ दिनों में सैलजा से भी खटपट शुरू हो गई. केंद्र की जगह प्रदेश की राजनीति में पांव जमाने की आस रखने वाली Kumari Selja ने भी संगठन की लिस्ट बनाई और हाईकमान तक पहुंचाई. मगर संगठन तब भी नहीं बन पाया. वजह थी कि सैलजा गांधी परिवार की तो भरोसेमंद थीं लेकिन हुड्डा के साथ उनकी नहीं बन रही थी. गुटबाज़ी बढ़ती चली गई तो मजबूरी में अप्रैल 2022 में सैलजा ने भी पद छोड़ दिया.
साल 2022 – चौधरी उदयभान
सैलजा ने कुर्सी छोड़ी तो पार्टी ने 27 अप्रैल 2022 को उदयभान को नया प्रदेशाध्यक्ष बनाया. उदयभान चार बार के विधायक रह चुके थे जिनकी गिनती हुड्डा के करीबियों में आज भी होती है. सभी गुटों को साधने और जातीय समीकरणों को बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने हरियाणा में पहली बार 4 कार्यकारी अध्यक्ष बनाए. सैलजा खेमे के रामकिशन गुर्जर, किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी, जितेंद्र भारद्वाज और सुरेश गुप्ता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया. अब उदयभान को भी हरियाणा की कमान संभालते 3 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन संगठन कहां है किसी को नहीं पता. उदयभान की मानें तो उन्होने संगठन की लिस्ट बनाकर पूर्व पार्टी प्रभारी दीपक बाबरिया को सौंपी थी. लेकिन उस पर भी मुहर आज तक नहीं लग पाई है. नतीजा ये रहा कि 2024 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की सरकार बनते बनते रह गई. पार्टी को 37 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा. नतीजों के बाद फिर से समीक्षा की गई और वही बात दोहराई गई कि अगर संगठन बन गया होता तो सरकार हमारी होती.
हाथ मिले पर मन नहीं मिले
हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस ने 10 में 5 सीटें जीत कर विधानसभा चुनाव के लिए दोगुने जोश के साथ काम किया. दिल्ली दरबार को लगा था कि अब हरियाणा में जीत की राह आसान हो जाएगी. लोकसभा के नतीजे देखते हुए हुड्डा को विधानसभा चुनाव में फ्री हैंड दिया गया. टिकट बंटवारे में भी हुड्डा की चली और सैलजा मुंह देखती रह गईं. चरम पर गुटबाजी साफ दिखाई दे रही थी. हुड्डा पर आरोप लगे कि उन्होंने सैलजा समर्थकों के टिकट कटवा कर अपने लोगों को दिलवा दिए. कुमारी सैलजा ने चुनाव प्रचार से दूरी बना ली. नुकसान होता देख राहुल गांधी ने अंबाला की एक जनसभा में सैलजा और हुड्डा के हाथ मिलवाए. हाथ तो दोनों नेताओं ने मिलाए लेकिन उनके मन नहीं मिल पाए. नतीजा ये रहा कि पूरी हवा होने के बावजूद हरियाणा कांग्रेस की गुटबाज़ी जीत गई और पार्टी चुनाव हार गई.